केंद्र सरकार भले ही कृषि क़ानूनों को वापस लेने पर राजी हो गई हो, इन क़ानूनों को लेकर इसकी राय नहीं बदली है और न ही वह यह मानने को तैयार है कि इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ बड़ा आन्दोलन हुआ ।
यह बात इससे साफ है कि सरकार ने इस मुद्दे पर सभी सांसदों को एक नोट भेजा है, जिसमें इन तीनों क़ानूनों को बिल्कुल सही ठहराया गया है और कहा गया है कि इससे किसानों का बहुत ही भला होता। इसके साथ ही सरकर ने यह भी कहा है कि एक छोटे समूह के किसान ही इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ थे।
इस नोट में कहा गया है कि मुट्ठी भर किसान, तमाम किसानों जिनमें छोटे व सीमांत किसान भी शामिल हैं, उनकी स्थिति सुधारने के लिए की जा रही कोशिशों की राह में रोड़ा बन कर खड़े हो गए।
क्या है नोट में?
कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर की ओर से जारी नोट में यह भी कहा गया है कि इन कृषि क़ानूनों के लागू होने से किसान अपने उत्पाद ऊँची कीमतों पर बेच पाते और वे आधुनिक तकनीकों का फ़ायदा उठा पाते।
बता दें कि केंद्र सरकार ने कहा है कि वह शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन यानी सोमवार को संसद में उस विधेयक को पेश करेगी, जिसके तहत तीनों विवादास्पद कृषि क़ानूनों को वापस ले लिया जाएगा।
लेकिन सरकार ने जो नोट जारी किया है, उसमें इन क़ानूनों को उचित ठहराया गया है और सिर्फ कुछ किसानों को इसके ख़िलाफ़ बताया गया है। सरकार यह स्वीकार नहीं करना चाहती है कि बीते साल भर से राजधानी दिल्ली के पास हज़ारों की संख्या में किसान धरने पर बैठे हुए हैं।
इसके अलावा हरियाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश समेत कई जगहों पर किसानों ने प्रदर्शन किए हैं, जिनमें लाखों लोगों ने शिरकत की है।
कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ एक साल से आन्दोलन चला रहे किसानों ने सोमवार को प्रस्तावित संसद मार्च टाल दिया है।
सरकार ने सोमवार को ही इन क़ानूनों को वापस लेने से जुड़ा विधेयक संसद में पेश करने का एलान किया है।
किसान नेता दर्शनपाल ने संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक के बाद कहा कि अगली बैठक 4 दिसंबर को होगी, जिसमें आन्दोलन के आगे की रूपरेखा पर विचार किया जाएगा।
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