तीन कृषि क़ानून बनने के बाद से यानी क़रीब 15 महीने से आंदोलन कर रहे किसानों ने आज तब आंदोलन ख़त्म करने के संकेत दिए हैं जब सरकार ने किसानों की क़रीब-क़रीब सभी मांगें मान ली हैं। हालाँकि, इसकी पुष्टि अभी आधिकारिक तौर पर नहीं हुई है, लेकिन इसको लेकर संयुक्त किसान मोर्चा और मीडिया में सूत्रों के हवाले से जो ख़बर आई है, उसमें सरकार किसानों की मांग मानती हुई दिखती है। हालाँकि इसमें कुछ पेच भी है और लगता है कि इसी वजह से संयुक्त किसान मोर्चा ने अब इस पर बुधवार को फ़ैसला लेने के लिए बैठक बुलाई है।
तो सवाल है कि आख़िर सरकार की तरफ़ से क्या-क्या मांगें मानी गई हैं और सरकार के उस प्रस्ताव में आख़िर क्या है?
ख़बर है कि केंद्र सरकार किसानों को एक लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार है कि एमएसपी जैसी उनकी मांगों को पूरा किया जाएगा।
सूत्रों के अनुसार- सरकार का प्रस्ताव
- केंद्र अपनी पेशकश के तहत एमएसपी मुद्दे पर फ़ैसला करने के लिए एक समिति बनाएगा। समिति में सरकारी अधिकारी, कृषि विशेषज्ञ और संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
- केंद्र किसानों के ख़िलाफ़ सभी पुलिस मामलों को हटाने के लिए सहमत हो गया है। इसमें पिछले कई महीनों में सुरक्षा बलों के साथ हिंसक झड़पों के संबंध में हरियाणा और उत्तर प्रदेश द्वारा दर्ज किए गए केस भी शामिल हैं।
- किसानों द्वारा खेतों में पराली जलाने को लेकर किए गए मामले भी हटाए जाएंगे।
- किसानों ने कहा है कि सरकार का प्रस्ताव कहता है कि जब हम आंदोलन समाप्त करेंगे, तभी वे किसानों के ख़िलाफ़ मामले वापस लेंगे।
सरकार के प्रस्ताव में केस वापस लेने वाले इस बिंदु पर उतनी स्पष्टता नहीं है। किसान मोर्चा ने कहा है कि वह इसके बारे में आशंकित है। किसानों ने कहा है कि सरकार को तुरंत मामले वापस लेने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।
किसानों की छह मांगें हैं-
- एमएसपी को लेकर गारंटी क़ानून बनाना
- आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज मुक़दमे वापस लेना
- बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेना
- केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी को बर्खास्त करना
- आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को मुआवज़ा देना
- पराली जलाने पर किसानों पर मुक़दमे का प्रावधान हटाना
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