क्या किसी के पास से कोई किताब मिलना किसी अपराध का सबूत हो सकता है? क्या किसी के पास माओ की किताब पाया जाना या पढ़ने से ही किसी को माओवादी साबित किया जा सकता है? जीएन साईबाबा से लेकर गौतम नवलखा, वर्नन गोंसाल्वेस जैसे एक्टिविस्टों पर आख़िर आरोप लगाने के लिए किताबों को सबूत के तौर पर क्यों पेश किया गया? इन मामलों में अदालतों का रुख एकदम साफ़ रहा है कि यह दोषी साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं हो सकता है।
क्या माओ की किताब रखने से कोई माओवादी हो जाता है?
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- 8 Mar, 2024
कथित माओवादी संबंधों के आरोप में जेल में बंद दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा जेल से बाहर आ गए। बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनको बरी कर दिया। इसी के साथ एक बड़ा सवाल है कि आख़िर किन वजहों से उनको जेल में रखा गया था और रिहाई की वजह क्या है?

ऐसे कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा है कि किताबें रखना या पढ़ना किसी को आरोपी साबित करने के लिए काफ़ी नहीं है। किन-किन मामलों में इस तरह की दलील देते हुए पुलिस और ऐसी ही एजेंसियों ने कार्रवाई की थी और सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर जीएन साईबाबा का मामला क्या है।