क्या किसी के पास से कोई किताब मिलना किसी अपराध का सबूत हो सकता है? क्या किसी के पास माओ की किताब पाया जाना या पढ़ने से ही किसी को माओवादी साबित किया जा सकता है? जीएन साईबाबा से लेकर गौतम नवलखा, वर्नन गोंसाल्वेस जैसे एक्टिविस्टों पर आख़िर आरोप लगाने के लिए किताबों को सबूत के तौर पर क्यों पेश किया गया? इन मामलों में अदालतों का रुख एकदम साफ़ रहा है कि यह दोषी साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं हो सकता है।