आज भारत समेत पूरी दुनिया अस्तित्व के गंभीर प्रश्नों से जूझ रही है। उपभोक्तावाद और हिंसा ने समूचे विश्व को एक निरंतर जारी युद्ध में धकेल दिया है, जिसमें हम एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़े हैं। पर्यावरण के सवाल दिनोंदिन तीखे होते जा रहे हैं, ज़मीन, नदियाँ सब हमारी भोगवादी नीतियों की बलि चढ़ती जा रही हैं।

महात्मा गांधी की जयंती पर सत्य हिन्दी की ख़ास पेशकश। पढ़े वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ का लेख।
आज दुनिया भर में एक बात देखी जा सकती है। भोगवादी संस्कृति की बढ़ती जकड़न और राज्यसत्ता की निरंतर बढ़ती हिंसा के बीच हम बाज़ार और राज्य दोनों की नाकामी देख रहे हैं। उपभोक्तावाद ने हमें बहुत लालची बना दिया है। हमारी भूख कभी शांत ही नहीं होती, हवस लगातार बढ़ती ही जा रही है। दुनिया में असमानता और असंतोष बढ़ते जाने के पीछे इंसान का लालच, उसकी हवस एक बहुत बड़ी वजह है।
ऐसे वैश्विक माहौल में सुकून की, प्यार-मोहब्बत की ज़िंदगी जीने के लिए और सारे समाज को आगे बढ़ाने वाला राजकाज चलाने के लिए महात्मा गांधी के रास्ते के अलावा कोई और रास्ता बचा है क्या ? या यूँ कह लीजिये कि जो भी रास्ता निकालने की कोशिश करेंगे, क्या उसमें गांधी जी की दिखाई-बताई बातों की रोशनी नहीं चमकेगी ?