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गांधी जयंती : बाज़ार, हिंसा की जकड़न में फँसी दुनिया को राह दिखाते गाँधी

महात्मा गांधी की जयंती पर सत्य हिन्दी की ख़ास पेशकश। पढ़े वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ का लेख।
अमिताभ

आज भारत समेत पूरी दुनिया अस्तित्व के गंभीर प्रश्नों से जूझ रही है।  उपभोक्तावाद और हिंसा ने समूचे विश्व को एक निरंतर जारी युद्ध में धकेल दिया है, जिसमें हम एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़े हैं। पर्यावरण के सवाल दिनोंदिन तीखे होते जा रहे हैं, ज़मीन, नदियाँ सब हमारी भोगवादी नीतियों की बलि चढ़ती जा रही हैं।  

आज दुनिया भर में एक बात देखी जा सकती है। भोगवादी संस्कृति की बढ़ती जकड़न और राज्यसत्ता की निरंतर बढ़ती हिंसा के बीच हम बाज़ार और राज्य दोनों की नाकामी देख रहे हैं। उपभोक्तावाद ने हमें बहुत लालची बना दिया है। हमारी भूख कभी शांत ही नहीं होती, हवस लगातार बढ़ती ही जा रही है। दुनिया में असमानता और असंतोष बढ़ते जाने के पीछे इंसान का लालच, उसकी हवस एक बहुत बड़ी वजह है।  

ऐसे वैश्विक माहौल में सुकून की, प्यार-मोहब्बत की ज़िंदगी जीने के लिए और सारे समाज को आगे बढ़ाने वाला राजकाज चलाने के लिए महात्मा गांधी के रास्ते के अलावा कोई और रास्ता बचा है क्या ? या यूँ कह लीजिये कि जो भी रास्ता निकालने की कोशिश करेंगे, क्या उसमें गांधी जी की दिखाई-बताई बातों की रोशनी नहीं चमकेगी ? 

 

ख़ास ख़बरें
गांधी जी ने कहा था कि पृथ्वी में सब लोगों की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने की क्षमता है, लेकिन किसी एक आदमी के लालच के लिए सारे प्राकृतिक संसाधन भी कम पड़ जाएँगे।  
जैसे जैसे दुनिया में हिंसा का, युद्ध का, भोगवादी संस्कृति का, झूठ, भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ा है, गांधी की अहमियत भी बढ़ी है। गांधी के विचारों की गूँज पूरी दुनिया में है।

गांधी प्रासंगिक क्यों?

गांधी का सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह, अपरिग्रह, अस्तेय का सिद्धांत, उनके एकादश व्रत की बातें एक समतामूलक नैतिक समाज की स्थापना की बुनियाद बन सकती हैं इसमें संदेह की गुंजाइश नहीं रह गई है।  

गांधी आधुनिक विश्व में संभवत: इकलौते राजनीतिक चिंतक-विचारक और प्रयोगकर्ता हैं जिन्होंने राज्यसत्ता, बाज़ार यानी उपभोक्तावाद, समाज और अंततः व्यक्ति- चारों कोनों में जनसरोकार, त्याग, तपस्या, ईमानदारी, पवित्रता और लगातार श्रम की महत्ता पर ज़ोर दिया और सिर्फ़ कहा नहीं, इन पर अमल करके, इनके मुताबिक़ जीवन जीकर दिखाया। गांधी ने राजनीति को पवित्र बनाने, उसे आध्यात्मिक ऊँचाई देने के व्यावहारिक नुस्खे बताये हैं और ख़ुद अमल करके दिखाया है।  

gandhi birth anniversary : mahatma more relevant amid violence and consumerism - Satya Hindi

लालच

सौ साल से भी पहले लिखी अपनी किताब 'हिंद स्वराज' में उन्होंने साफ़ कहा था कि पैसे का लोभ और सत्याग्रह का पालन एक साथ नहीं चल सकते। गांधी मानते थे कि पैसे का लालच आदमी को लाचार बना देता है।

हिंद स्वराज में उन्होंने लिखा - "संसार में ऐसी दूसरी चीज़ विषय वासना है। ये दोनों चीज़ें विषमय हैं। इनका दंश साँप के दंश से भी भयानक है। साँप काटता है तो देह लेकर छोड़ देता है। पैसा अथवा विषय काटता है तब देह, मन और आत्मा सब कुछ लेकर भी नहीं छोड़ता।"  

गांधी ने यह नहीं कहा कि जिसके पास पैसा है, वह उसे फेंक दे। उन्होंने पैसे के प्रति आसक्ति को ख़त्म करने की हिदायत दी थी।

आज के ज़माने में वह सीख बहुत काम की है अगर हम अपनाना चाहें तो। आज मंदी के दौर में जब लाखों नौकरियाँ जा रही हैं, नये रोज़गार सृजित नहीं हो रहे हैं, समाज में आर्थिक विषमता बढ़ती ही जा रही है, तब गांधी जी का सादगी से रहने का सुझाव महज़ एक नैतिक आदर्श नहीं है, वह एक व्यावहारिक नज़रिया है। कम ख़र्च में कैसे जियें यह गांधी ख़ुद अमल करके बताते हैं।

हाँ, यह रास्ता बहुत मेहनत और तकलीफ वाला है, संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन दूसरों के आगे हाथ फैलाने की बेबसी और अपमान से बचा सकता है।  

gandhi birth anniversary : mahatma more relevant amid violence and consumerism - Satya Hindi

व्यक्ति का रूपांतरण

गांधी की अहिंसक संघर्ष की रणनीति इस मायने में बेहद अनूठी है कि वह सिर्फ़ राजनीतिक बदलाव के बारे में बात करके या नतीजे हासिल करके किनारे नहीं हो जाती कि काम ख़त्म हो गया, अब चलो इसे विश्राम दो। नहीं।

गांधी दरअसल व्यक्ति के रूपांतरण की लगातार कोशिश करते दिखते हैं। एक बेहतर मनुष्य के अनुसंधान, विकास के लिए लगातार प्रयत्न करते हुए।

व्यक्तिगत और सामाजिक नैतिकता एक ऐसी चीज़ है जिसकी अहमियत और ज़रूरत कभी ख़त्म नहीं होगी। हर इन्सान को और हर सामाजिक इकाई को , चाहे वह बहुत बड़ी हो या बहुत छोटी, नैतिकता के शाश्वत पैमानों पर ही कसा जाएगा।

इसलिए गांधी की बातें, उनके राजनीतिक और रचनात्मक कार्यक्रम आज पहले से भी ज़्यादा प्रासंगिक हैं और हमेशा रहेंगे।  

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अमिताभ
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