आज भारत समेत पूरी दुनिया अस्तित्व के गंभीर प्रश्नों से जूझ रही है।  उपभोक्तावाद और हिंसा ने समूचे विश्व को एक निरंतर जारी युद्ध में धकेल दिया है, जिसमें हम एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़े हैं। पर्यावरण के सवाल दिनोंदिन तीखे होते जा रहे हैं, ज़मीन, नदियाँ सब हमारी भोगवादी नीतियों की बलि चढ़ती जा रही हैं।