पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू जैसे घनघोर महत्वाकांक्षी, सत्तालोलुप, आत्मकेंद्रित और तुनुकमिज़ाज यानी ‘क्षणे तुष्टा क्षणे रुष्टा’ टाइप नेता को सिर चढ़ा कर कांग्रेस नेतृत्व ने जो भयंकर नासमझी की, उसका नतीजा सामने है। चुनावी गणित में कांग्रेस की हालत पहले ही बीजेपी के आगे बहुत पतली है, ऐसे में पंजाब के इस तमाशे से सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और उनके दरबारियों को सिरदर्द, जगहँसाई और छीछालेदर के सिवाय हासिल क्या हुआ? लोकतांत्रिक होने का मतलब उदार और सहिष्णु होना तो है लेकिन क्या इतना ढीलाढाला होना भी है कि दुनिया की निगाह में कमज़ोर, हास्यास्पद और बेचारे दिखने लगें? न सिद्धू संभाले जा रहे हैं, न अमरिंदर।
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अमरिंदर और सिद्धू अपने पदों से इस्तीफ़ा देकर पार्टी में बने भी हुए हैं, खुल कर ऐसी बयानबाज़ी कर रहे हैं जिससे कुल मिलाकर कांग्रेस की ही मिट्टी पलीद हो रही है, गुटबाज़ी चरम पर है, उसे रोकने में नाकामी की वजह से पार्टी नेतृत्व की बचीखुची साख भी चौपट हो रही है। अमरिंदर भी आलाकमान पर तीर चला रहे हैं, कह रहे हैं कि जल्द बड़ा फ़ैसला लूँगा। उधर सिद्धू भी ताने दे रहे हैं, कह रहे हैं कि नैतिकता से समझौता नहीं, आलाकमान को गुमराह नहीं होने दूँगा।
यह उस राज्य का हाल है जहाँ पाँच महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। सत्तारूढ़ कांग्रेस ख़ुद को बहुत मज़बूत मान रही थी और अगले चुनावों में उसकी सत्ता में वापसी के बारे में विश्लेषकों को संदेह नहीं था। पार्टी के समर्थक इतनी भयंकर आपसी सिरफुटौवल के बाद भी दावे कर रहे हैं कि राज्य में विपक्ष कमज़ोर है और विकल्पहीनता की स्थिति में पंजाब के मतदाता फिर से कांग्रेस को ही चुनेंगे। यही बात अगर कोई केंद्र के स्तर पर मोदी और बीजेपी के बारे में कह दे तो सब तमक कर कहेंगे- जनता समझदार है, विकल्प बनाने और चुनने की समझ रखती है।
दिक़्क़त यह है कि कांग्रेस के समर्थक चाहते हैं कि पार्टी में चल रहे आपसी सिर फुटव्वल को भी आंतरिक लोकतंत्र मानकर जयजयकार करते रहा जाये कि भई वाह, बीजेपी में तानाशाही है और हमारे यहाँ सबको एक दूसरे के कपड़े फाड़ने की खुली छूट है।
ये सब लोग भी बीजेपी समर्थकों की तरह चाहते हैं कि उनके नेताओं के फ़ैसलों पर भीतर बाहर कहीं से कोई सवाल न उठाये जाएँ और अनिर्णय को भी दूरदर्शिता समझा जाए।
विचार से ख़ास
पंजाब के इन हालात के बीच राहुल गांधी केरल के दौरे पर हैं। इस बार सिद्धू को मनाने की कोशिश नहीं हो रही है। संभव है इस झगड़े-झंझट में अमरिंदर और सिद्धू दोनों से छुटकारा पाने की कोई ऐसी तरकीब निकले जिसे राहुल गांधी का मास्टर स्ट्रोक कहा जाये। पार्टी नेतृत्व को सोचना चाहिए कि तलत महमूद का गाना कहीं कांग्रेस की हक़ीक़त न बन जाये-
सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया।
(अमिताभ की फ़ेसबुक वाल से साभार।)
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