केंद्र सरकार के कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली के बॉर्डर्स पर आंदोलन कर रहे किसान अब अपने आंदोलन को रफ़्तार देने जा रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि 22 जुलाई से किसान संसद के नज़दीक धरना देना शुरू करेंगे। सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती है क्योंकि 19 जुलाई से संसद का सत्र शुरू हो रहा है।
किसान यह पुरजोर एलान कर चुके हैं कि वे अब कृषि क़ानूनों के रद्द होने और एमएसपी को लेकर गारंटी एक्ट बनने से पहले दिल्ली के इन बॉर्डर्स को नहीं छोड़ेंगे, चाहे उन्हें यह आंदोलन 2024 तक चलाना पड़े। ऐसे में निश्चित रूप से केंद्र सरकार के सामने किसान आंदोलन बहुत बड़ी चुनौती है।
टिकैत ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा है कि 26 जनवरी को हुई हिंसा की जांच किसी निष्पक्ष एजेंसी से कराई जानी चाहिए। बता दें कि 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान हिंसा हुई थी। इसमें कई पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। हिंसा के मामले में कई अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया जा चुका है।
बिना शर्त हो बातचीत
टिकैत ने कहा है कि किसान कृषि क़ानूनों के मुद्दे पर सरकार से बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन इसमें कोई शर्त नहीं रखी जानी चाहिए। टिकैत कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के उस सवाल का जवाब दे रहे थे, जिसमें तोमर ने कहा है कि सरकार आंदोलनकारी किसानों से कृषि क़ानूनों को रद्द करने के अलावा बाक़ी मुद्दों पर बात करने के लिए तैयार है।
‘मिशन यूपी-उत्तराखंड’!
किसानों की नज़र अब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनावों पर है। किसान ‘मिशन यूपी-उत्तराखंड’ में जुटने जा रहे हैं। किसान मोर्चा के नेता दर्शन पाल ने कहा है कि जिस तरह किसानों ने पंजाब और हरियाणा में बीजेपी के नेताओं का विरोध किया है ठीक उसी तरह हम उत्तर प्रदेश में भी करेंगे।
इस मिशन के तहत किसान इन दोनों राज्यों में बीजेपी को हराने की अपील करेंगे। दोनों ही राज्यों में सात महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं और दोनों ही जगह बीजेपी की सरकार है। बता दें कि हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान भी किसानों ने इन चुनावी राज्यों का दौरा किया था और बीजेपी को वोट न देने की अपील की थी।
किसान आंदोलन के कारण बीजेपी के नेताओं का अपने ही गांवों में निकलना मुश्किल हो गया है और किसान इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबक सिखाने का इंतजार कर रहे हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे ही हालात हरियाणा और पंजाब में भी हैं। यहां भी बीजेपी और हरियाणा में उसकी सहयोगी जेजेपी के नेताओं को किसानों के लगातार विरोध का सामना करना पड़ रहा है। पंजाब में भी सात महीने के बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं और किसान और उनके समर्थक वहां भी बीजेपी को हराने के लिए तैयार बैठे हैं।
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