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कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली के बॉर्डर्स पर आंदोलन कर रहे किसानों ने इसे तेज़ करने का फ़ैसला किया है। किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने फ़ैसला लिया है कि 29 नवंबर से हर दिन 500 किसान दिल्ली की ओर कूच करेंगे। बता दें कि 29 नवंबर से संसद का शीतकालीन सत्र भी शुरू हो रहा है।
किसान मोर्चा ने कहा है कि किसान ट्रैक्टर ट्रालियों के साथ संसद की ओर जाएंगे और संसद सत्र जारी रहने तक वे हर दिन ऐसा करेंगे। 26 नवंबर को किसानों के आंदोलन को एक साल का वक़्त पूरा होने वाला है।
इससे पहले अगस्त में किसानों ने संसद से कुछ दूरी पर स्थित जंतर-मंतर पर किसान संसद का आयोजन किया था।
एक साल के दौरान किसान ठंड, गर्मी और भयंकर बरसात से भी नहीं डिगे और खूंटा गाड़कर बैठे हैं। इस दौरान उन्होंने रेल रोको से लेकर भारत बंद तक कई आयोजन किए। ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर पश्चिम उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से आए किसान बैठे हैं जबकि टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर हरियाणा और पंजाब के किसानों का जमावड़ा है।
कुछ ही दिन पहले दिल्ली पुलिस ने टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर रखे गए सीमेंट के बड़े ब्लॉक्स, बैरिकेड्स और कंटीले तार को हटा दिया था।
किसानों का कहना है कि दिल्ली जाने के दौरान जहां भी पुलिस उन्हें रोकेगी, वे वहीं पर बैठ जाएंगे। किसानों ने चेताया था कि अगर 26 नवंबर तक कृषि क़ानून वापस नहीं लिए तो वे अपना आंदोलन तेज़ करेंगे।
किसान आंदोलन को लेकर पिछले एक साल से देश का सियासी माहौल बेहद गर्म है। तमाम विपक्षी दल किसानों की आवाज़ को संसद से लेकर सड़क तक उठा रहे हैं। मरकज़ी सरकार और किसानों के बीच 11 दौर की बातचीत भी हुई थी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला था।
बीजेपी को इस बात का डर है कि किसान आंदोलन के कारण उसे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के चुनाव में बड़ा सियासी घाटा हो सकता है।
किसानों का कहना है कि तीनों कृषि क़ानून रद्द होने और एमएसपी को लेकर गारंटी एक्ट बनाए जाने तक वे अपना आंदोलन जारी रखेंगे। तमाम विपक्षी दलों के किसान आंदोलन को समर्थन देने के बाद सरकार बुरी तरह घिर गई है।
यहां याद दिलाना होगा कि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पहले किसान आंदोलन के कारण सड़कों के बंद होने पर तीख़ी टिप्पणी की थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि किसानों को आंदोलन करने का हक़ है लेकिन सड़कों को अनिश्चित काल तक के लिए बंद करके नहीं रखा जा सकता है।
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