इलेक्टोरल बॉन्ड अवैध था। अपारदर्शी था। असंवैधानिक था। सुप्रीम कोर्ट ने ही इसपर मुहर लगा दी। वैसे, बीजेपी सरकार द्वारा लाए गए इस इलेक्टोरल बॉन्ड पर सरकार को छोड़कर सबको कभी न कभी आपत्ति रही। 2019 में चुनाव आयोग ने भी कड़ी आपत्ति थी। सुप्रीम कोर्ट में जब मामला गया तो इसने भी लगातार सवाल पूछे। विपक्षी पार्टियाँ गड़बड़ी का आरोप लगाती रहीं। चुनाव सुधार से जुड़े लोग इसको पीछे जाने वाला क़दम बताते रहे। तो सवाल है कि इतने विरोध के बावजूद यह अस्तित्व में क्यों और कैसे आ गया?