'महंगाई डायन खाए जात है...' यह नारा अब बीजेपी के पीछे पड़ा है। 2014 से पहले यह कांग्रेस के पीछे पड़ा था। क्या बीजेपी इस नारे से पीछा छुड़ाने की कोशिश करती दिख रही है? पेट्रोल-डीजल से लेकर रसोई गैस व खाने के तेलों के दामों को देखकर क्या लगता है? पेट्रोल के दाम आज लगातार सातवें दिन बढ़े हैं। दिल्ली में पेट्रोल 110.04 रुपए प्रति लीटर पर पहुँच गया है, वहीं डीजल 98.42 रुपए पर है। रसोई गैस सिलेंडर 900 रुपये का हो गया है और सरसों के तेल का दाम 260 रुपये प्रति किलो से भी ज़्यादा है। सब्जियों के दाम ने तो रसोई का बजट गड़बड़ाया ही है।
आज यानी 2 नवंबर को ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने पेट्रोल के दामों में फिर से 35 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की है। दिल्ली में पेट्रोल 110.04 रुपए प्रति लीटर पर पहुँच गया है। वहीं डीजल 98.42 रुपए पर स्थिर है। देश के महानगरों में सबसे महंगा पेट्रोल मुंबई में 115.85 रुपये प्रति लीटर है और डीजल 106.62 रुपये प्रति लीटर है। दाम बढ़ोतरी पर कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर एक सवाल दागा है।
सरकार से एक सवाल..
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) November 2, 2021
मई 2014 में पेट्रोल 71.41 रुपए और डीजल 55.49 रुपये था, तब कच्चा तेल 105.71 डॉलर/बैरल था..
नवंबर 2021 में पेट्रोल 109.69 और डीजल 98.42 रुपये प्रति लीटर है और कच्चा तेल 85 डॉलर/बैरल है..
जब कच्चा तेल अब पहले से सस्ता है तो पेट्रोल-पंप पर तेल क्यों महंगा है..?
उन्होंने ट्वीट में यह जताने की कोशिश की है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से 105.71 डॉलर प्रति बैरल में कच्चा तेल खरीदकर मई 2014 में पेट्रोल 71.41 रुपये और डीजल 55.49 रुपये में दिया जा रहा था तो अब यह इतना महंगा क्यों है? उन्होंने 2014 से तुलना करते हुए कहा है कि अभी तो अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चा तेल 85 डॉलर प्रति बैरल है तो फिर पेट्रोल क़रीब 110 और डीजल 98 रुपये प्रति लीटर क्यों?
गैस के दाम
रसोई गैस सिलेंडर का दाम क़रीब 900 रुपये है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इसके दाम दोगुने से भी ज़्यादा हो गए हैं। मार्च 2014 में जिस 14.2 किलोग्राम के रसोई गैस सिलेंडर के दाम दिल्ली में 410 रुपये थे उसकी क़ीमत अब 899.50 रुपये हो गई है।
खाने वाले तेल के दाम में भी ज़बरदस्त उछाल आया है। अभी कुछ महीने पहले ही रिपोर्ट आई थी कि एक साल में ही इनके दाम बेतहाशा बढ़े हैं।
28 मई 2020 से 28 मई 2021 के बीच के सरकारी आँकड़ों के मुताबिक मूंगफली का तेल बीस परसेंट, सरसों का तेल चवालीस परसेंट से ज्यादा, वनस्पति क़रीब पैंतालीस परसेंट, सोया तेल क़रीब तिरपन परसेंट, सूरजमुखी का तेल छप्पन परसेंट और पाम ऑयल क़रीब साढ़े चौवन परसेंट महंगा हुआ था।
इनमें से सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले सरसों के तेल के दाम बढ़ने पर तो सोशल मीडिया पर हंगामा मचा है। आजेडी नेता लालू यादव ने एक ही कंपनी के सरसों के तेल की 1-1 लीटर की दो बोतलों की तसवीर को ट्वीट किया है। इसमें देखा जा सकता है कि पैकेजिंग डेट में दो माह का फासला है और क़ीमतें 235 से बढ़कर 265 रुपये हो गई हैं।
सरसों के तेल का क्या भाव है?
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) November 1, 2021
क्या आप इससे खुश है?
रुकिए, तीन काले कृषि क़ानूनों का विपरीत प्रभाव अभी दो-चार वर्षों बाद और अधिक समझ में आएगा। pic.twitter.com/ihuRLngIEF
2014 में सरसों के तेल के दाम मौजूदा क़ीमतों से आधे से भी कम थे। 2015 में उपभोक्ता मामलों के विभाग के प्राइस मॉनिटरिंग सेल द्वारा संकलित डेटा में दिखाया गया था कि अक्टूबर 2014 से 2015 में इसका मूल्य 90 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 100 रुपये प्रति किलो हो गया था। यानी 2014 से मौजूदा क़ीमतों की तुलना करने पर यह क़रीब तीन गुना ज़्यादा हो गया है।
सब्जियों के दाम भी काफ़ी ज़्यादा बढ़े हैं। कहा जा रहा है कि पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने का भी असर सब्जियों पर पड़ा है। लेकिन इनके दाम कम करने के अभी तक कोई प्रयास नज़र नहीं आ रहे हैं। एक समस्या यह भी है कि कोरोना की वजह से कारोबार भी अटका है और पैदावार भी। लेकिन मांग में कमी की बजाय बढ़ोत्तरी हो रही है। सरकार बढ़ती क़ीमतों को रोकने के लिए क्या कुछ क़दम उठाएगी?
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