केंद्र सरकार ने इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज के निदेशक प्रो. केएस जेम्स को निलंबित कर दिया है। प्राप्त सूचना के मुताबिक केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इसका कारण संस्थान में हुई कुछ नियुक्तियों-भर्तियों में अनियमिताओं की शिकायत मिलना बताया है। शिकायतो की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच होने के लिए किया गया निलंबन इसे बताया गया है। यह संस्थान इसी मंत्रालय के अधीन काम करता है।
यह निलंबन इसलिए भी चर्चा में है कि इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज या आईआईपीएस राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण तैयार करता है। इस सर्वे को संक्षेप में एनएफएचएस भी कहते हैं। इस सर्वे के डेटा के आधार पर सरकार अपनी कई तरह की नीतियां बनाती हैं। पिछला एनएफएचएस-5 भी इसी संस्थान ने तैयार किया था। यह संस्थान भारत सरकार के लिए ऐसे अन्य महत्वपूर्ण कार्य भी करता है।
सर्वे में सामने आए कुछ डेटा सेट से खुश नहीं थी सरकार
समाचार वेबसाइट द वायर की एक खबर के मुताबिक यह जानकारी दी गई है कि इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज के निदेशक केएस जेम्स को निलंबित कर दिया गया है। हालांकि मंत्रालय या संस्थान ने इसकी मीडिया में आधिकारिक रूप से पुष्टि अभी तक नहीं की है। खबर के मुताबिक आईआईपीएस के सूत्र ने इसकी पुष्टि कर दी है कि उनका निलंबन पत्र जारी किया जा चुका है और आगे का विवरण सोमवार को आएगा। द वायर की खबर में बताया गया है कि प्रो. केएस जेम्स को सरकार ने पहले इस्तीफा देने के लिए कहा था। इसके पीछे कारण बताया गया है कि सरकार आईआईपीएस द्वारा किए गए सर्वे में सामने आए कुछ डेटा सेट से खुश नहीं थी। प्रो. केएस जेम्स बताए जा रहे कारणों से पद छोड़ने के लिए अनिच्छुक थे। निलंबन का पत्र 28 जुलाई की शाम को जेम्स को भेजा गया है।
एनएफएचएस-5 के कुछ डेटा सरकारी दावों से अलग थे
रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकार चुनावी जीत के लिए 'सकारात्मक' डेटा में विश्वास करती है लेकिन एनएफएचएस-5 ने सरकार के लिए कुछ असुविधाजनक डेटा सेट पेश किए हैं। उदाहरण के लिए, इस सर्वे से पता चला कि भारत खुले में शौच से मुक्त होने के कहीं भी करीब नहीं है। जबकि इससे मुक्त होने का दावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत यह सरकार अक्सर करती रहती है। एनएफएचएस-5 ने बताया था कि 19 प्रतिशत परिवार किसी भी शौचालय सुविधा का उपयोग नहीं करते हैं। जिसका अर्थ है कि वे खुले में शौच करते हैं। इसमें कहा गया था कि लक्षद्वीप को छोड़कर एक भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश नहीं है, जहां 100 प्रतिशत आबादी के पास शौचालय है। एनएफएचएस-5 से उज्जवला योजना के दावों पर उठे सवाल
एनएफएचएस-5 में यह भी सामने आया था कि 40 प्रतिशत से अधिक घरों की खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन तक पहुंच नहीं थी। इस प्रकार उज्ज्वला योजना की सफलता के दावों पर भी इसने सवाल उठाए थे। इसमें कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आधी से अधिक आबादी, करीब 57 प्रतिशत, के पास एलपीजी या प्राकृतिक गैस तक पहुंच नहीं है। एनएफएचएस-5 ने यह भी सामने आया था कि भारत में एनीमिया बढ़ रहा है। कुछ हालिया रिपोर्टें आई हैं कि सरकार एनएफएचएस-6 के लिए एनीमिया माप को कम करने पर विचार कर रही है।
2018 में प्रो. जेम्स को किया गया था नियुक्त
प्रो. जेम्स को 2018 में मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज का निदेशक नियुक्त किया गया था। उनके पास हार्वर्ड सेंटर फॉर पॉपुलेशन एंड डेवलपमेंट से पोस्टडॉक्टरल की डिग्री है। आईआईपीएस में नियुक्त होने से पहले, वह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में जनसंख्या अध्ययन के प्रोफेसर थे, और कई अहम पदों पर रहे हैं। निदेशक के निलंबन पर यह कहा है सरकार ने
सूत्रों के मुताबिक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (आईआईपीएस), मुंबई के निदेशक और वरिष्ठ प्रोफेसर केएस जेम्स के निलंबन पर केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने जो कारण बताया है उसमें कहा गया है कि, इनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित है।
आईआईपीएस इस मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक संस्थान है। हाल ही में यहां हुई भर्तियों, नियुक्तियों में आरक्षण रोस्टर के अनुपालन के संबंध में विभिन्न शिकायतें प्राप्त हुई थीं, इनकी जांच के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया गया था।
कमेटी ने प्रत्येक शिकायतों की जांच की है और इसकी रिपोर्ट मंत्रालय को भेजी है। फैक्ट फाइंडिंग कमेटी को प्राप्त 35 शिकायतों में से 11 में प्रथम दृष्टया अनियमितताएं मिलीं है। ये अनियमितताएं मुख्य रूप से नियुक्तियों, फैकल्टी की भर्तियों,आरक्षण रोस्टर आदि में देखी गई खामियों के संबंध में थीं। कमेटी ने संबंधित रजिस्ट्रारों और संबंधित निदेशक के खिलाफ विस्तृत जांच की भी सिफारिश की है।
चूंकि आरोप गंभीर प्रकृति के हैं और संस्थान के निदेशक, संस्थान के प्रमुख होने के नाते पर्याप्त पर्यवेक्षण करने में विफलता के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार हैं। संस्थान के प्रमुख के रूप में उनकी उपस्थिति निष्पक्ष जांच और कार्यवाही में बाधा उत्पन्न कर सकती है। इसलिए, जांच की आगे की प्रक्रिया की अवधि के दौरान निदेशक को निलंबित करने का निर्णय लिया गया है।
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