क्या जवाहरलाल नेहरू अपने पहले कैबिनेट में सरदार बल्लभ भाई पटेल को शामिल नहीं करना चाहते थे? इस पर ज़ोरदार और तीखी बहस शुरू हो गई है। हालांकि बीजेपी और उससे जुड़े लोग नेहरू और पटेल के बीच प्रतिद्वंद्विता की बात लगातार कर रहे हैं। वे बार-बार यह भी कह रहे हैं कि पटेल को वह नहीं सम्मान नहीं मिला, वे जिसके हक़दार थे। पर इस नई बात ने पूरी बहस को एक नई दिशा दे दी है और लोग पूछने लगे कि क्या यह सच है।
बहस की शुरुआत कैसे हुई?
इस बहस की शुरुआत विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने की है। उन्होंने देश के बंटवारे की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाने वाले व्यक्ति और गवर्नर जनरल के सलाहकार वी. पी. मेनन की जीवनी के हवाले से विस्फोटक दावा किया है।
उन्होंने कहा कि नारायणी बसु की लिखी इस जीवनी से पता चलता है कि नेहरू पटेल को अपनी पहली कैबिनेट में ही शामिल करना नहीं चाहते थे। उनकी पहली सूची में पटेल का नाम नहीं था, उनका नाम बाद में जोड़ा गया।
जयशंकर ने ट्वीट किया, ‘असली इतिहास पुरुष के साथ न्याय हुआ, जिसका इंतजार लंबे समय से हो रहा था। इस पुस्तक से मालूम हुआ कि नेहरू 1947 में अपनी पहली कैबिनेट में पटेल को शामिल नहीं करना चाहते थे, कैबिनेट मंत्रियों की उनकी सूची में पटेल का नाम छोड़ दिया गया था। साफ़ है, यह बहस का विषय है। लेखक अपने इस खुलासे पर टिकी हुई हैं।’
लेकिन चोटी के इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने तुरन्त इसे ग़लत बताया, इसके बाद गुहा और जयशंकर के बीच ट्विटर-युद्ध छिड़ गया। गुहा ने कहा कि ‘प्रोफ़ेसर श्रीनाथ राघवन ने इस मिथक को बहुत पहले ही पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है।’
गुहा ने ट्वीट किया, ‘फ़ेक न्यूज़ को बढ़ावा देना और देश निर्माताओं के बीच की प्रतिद्वंद्विता जो दरअसल थी ही नहीं, के बारे में कहना विदेश मंत्री का काम नहीं होता है। उन्हें यह काम बीजेपी के आईट सेल पर छोड़ देना चाहिए।’
ट्विटर युद्ध
जयशंकर ने पलटवार किया। उन्होंने ट्वीट किया कि कुछ विदेश मंत्री पुस्तकें भी पढ़ते हैं, अच्छा होगा कुछ लेखक भी यह आदत बना लें।
विदेश मंत्री ने किसी का नाम नहीं लिया, पर साफ़ है कि उन्होंने रामचंद्र गुहा पर ही तंज किया था। गुहा ने इस पर ज़ोरदार हमला बोला।
रामचंद्र गुहा ने 1 अगस्त, 1947 को पटेल को लिखी नेहरू की चिट्ठी ही पोस्ट कर दी। इस चिट्ठी में नेहरू ने पटेल को अपनी पहली कैबिनेट में शामिल होने का न्योता देते हुए उन्हें कैबिनेट का सबसे मजबूत स्तम्भ बताया था।
इस मशहूर इतिहासकार ने इसके साथ ही ट्वीट किया, 'चूंकि आपने जेएनयू से पीएच. डी. की है, आपने मुझसे अधिक किताबें पढ़ी होंगी, उसमें नेहरू और पेटल के बीच एक दूसरे को लिखी हुई चिट्ठियाँ और उनसे जुड़े काग़ज़ात भी ज़रूर रहे होंगे, नेहरू की लिखी वह चिट्ठी भी रही ही होगी, जिसमें उन्होंने पटेल को अपनी पहली कैबिनेट में शामिल होने का न्योता देते हुए उन्हें कैबिनेट का सबसे मजबूत स्तंभ बताया था। इन पुस्तकों को एक बार फिर देखें।' उन्होंने इसके आगे लिखा, 'क्या कोई यह जयशंकर को दिखा देगा?'
सबसे ऊपर था पटेल का नाम
कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने नेहरू की वह चिट्ठी ही ट्वीट में अटैच कर दी। इस चिट्ठी में नेहरू ने पटेल को लिखा, 'प्रिय बल्लभभाई, चूंकि कुछ हद तक औपचारिकताएं पूरी की जानी हैं, मैं आपको नई कैबिनेट में शामिल होने का न्योता दे रहा हूँ। यह लिखना ज़रूरत से ज़्यादा है क्योंकि आप कैबिनेट के सबसे मजबूत स्तंभ हैं।'
इसके साथ ही संभावित मंत्रियों की सूची भी शामिल है। इसमें मंत्रियों के आगे उनके विभागों के नाम है। इस सूची में जवाहलाल नेहरू का नाम सबसे ऊपर है, उनके नाम के आगे प्रधानमंत्री के अलावा विदेश मंत्रालय, कॉमनवेल्थ रिश्ते और वैज्ञानिक शोध हैं। उनके नाम के ठीक बाद सरदार पेटल का नाम है, जिन्हें गृह के अलावा सूचना व प्रसारण मंत्रालय और राज्यों के मामले हैं। यह अहम इसलिए भी है कि प्रधानमंत्री के ठीक नीचे पटेल का नाम है। उनके बाद ही राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और दूसरे लोगों के नाम हैं।
पटेल का नाम नेहरू के ठीक नीचे होने से यह साफ़ हो जाता है कि नेहरू उन्हें कितना महत्व देते थे। ऐसे में यह कहना कि नेहरू पटेल को कैबिनेट में शामिल करना ही नहीं चाहते थे, कहने वाले की नीयत पर ही सवाल खड़े कर देता है।
श्रीनाथ राघवन ने ‘द प्रिंट’ में लिखे एक लेख में दावा किया है कि नेहरू ने अपने मंत्रिमंडल के गठन में पटेल की सलाह ली थी। नहरू पटेल के संपर्क में बने रहे, उनसे पूछा कि किसे इसमें शामिल किया जाए।
नेहरू ने 30 जुलाई, 1947 को पटेल को एक चिट्ठी लिख कर बताया कि उन्होंने बी. आर. आंबेडकर से मुलाक़ात की और उन्हें क़ानून मंत्री बनने पर राजी किया। नेहरू ने कहा था कि उन्होंने रफ़ी अहमद किदवई से भी बात की है।
नेहरू ने पटेल की सलाह से बनाया मंत्रिमंडल
इसके बाद नेहरू ने पटेल से यह भी अनुरोध किया कि वह श्यामा प्रसाद मुखर्जी और आर. के. शनुमखम शेट्टी से भी बात करें। ये दोनों ही कांग्रेस से जुड़े हुए नहीं थे। नेहरू ने पटेल से यह भी आग्रह किया कि वह राजगोपालचारी को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनने के लिए राजी करें।
ऐसे में यह कहना कि नेहरू ने पटेल को मंत्रिमंडल में शुरू में शामिल ही नहीं किया, किसी की समझ से परे है। यह साफ़ तौर पर इतिहास से छेड़छाड़ और तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करना है।
बीजेपी ने नेहरू-पटेल का ऐसा नैरेटिव खड़ा कर दिया है मानो पूर्व प्रधानमंत्री ने पटेल का हक़ मार लिया हो और उनके साथ अन्याय किया हो। यह काम प्रधानमंत्री स्तर तक भी हुआ है। स्वयं नरेंद्र मोदी ने कई बार कहा है कि देश के पहले प्रधानमंत्री सरदार पटेल हुए होते तो देश का नक्शा कुछ और होता।
जयशंकर विदेश मंत्री बनने के पहले विदेश सचिव थे, वह भारतीय विदेश सेवा में थे और उन्होंने जेएनयू से पीएच. डी. की है। इसलिए जब उनके जैसा व्यक्ति इस तरह की बातें करता है और ग़लत इतिहास बताता है तो लोगों को ताज्जुब होता है।
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