केंद्र सरकार ने मंगलवार को दिल्ली नगर निगम के वार्डों के परिसीमन को लेकर बनी कमेटी की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है और अब माना जा रहा है कि बहुत जल्द दिल्ली नगर निगम यानी एमसीडी के चुनावों का एलान हो सकता है।
बताना होगा कि एमसीडी के चुनाव इस साल मार्च में प्रस्तावित थे लेकिन केंद्र सरकार ने कहा था कि वह दिल्ली के तीनों नगर निगमों को एक करने जा रही है और इस वजह से एमसीडी के चुनाव लटक गए थे।
इसके बाद वार्डों का परिसीमन किया गया था। आम आदमी पार्टी ने वार्डों के परिसीमन का विरोध किया था और कहा था कि यह कदम राजनीति से प्रेरित है। आम आदमी पार्टी लगातार आरोप लगाती रही है कि बीजेपी शासित इन नगर निगमों में जबरदस्त भ्रष्टाचार है और ये बेहद जर्जर हालात में हैं।
पंजाब के विधानसभा चुनाव में मिली बड़ी जीत के बाद आम आदमी पार्टी जोर-शोर से इन चुनाव को लड़ना चाहती है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया सहित आम आदमी पार्टी के तमाम नेताओं ने मोदी सरकार और बीजेपी पर आरोप लगाया था कि वे जानबूझकर नगर निगम चुनाव में देरी कर रहे हैं।
बता दें कि साल 2012 तक दिल्ली में एकीकृत नगर निगम था लेकिन दिल्ली की तत्कालीन शीला दीक्षित सरकार ने इसे उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी नगर निगमों में बांट दिया था।
दक्षिणी दिल्ली नगर निगम, उत्तरी दिल्ली नगर निगम और पूर्वी दिल्ली नगर निगम का कार्यकाल इस साल मई में समाप्त हो गया था।
तीनों नगर निगमों को मिलाकर दिल्ली में कुल 272 वार्ड थे लेकिन वार्डों के परिसीमन के बाद अब 250 वार्ड होंगे। इनमें से 42 वार्ड महिलाओं, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होंगे।
कमजोर होगी दिल्ली सरकार?
2012 से पहले दिल्ली नगर निगम की आर्थिक ज़रूरतें गृह मंत्रालय के मार्फत केंद्र सरकार पूरी करती थी। कहा जा रहा है कि अब एक बार फिर नगर निगम को मज़बूत स्थिति में लाने की तैयारी है और और मेयर का पद बहुत मज़बूत और अहम हो जाएगा। लेकिन क्या तब दिल्ली में दो समानान्तर सरकारें नहीं चलने लगेंगी। अगर ऐसा होता है तो क्या दिल्ली सरकार की शक्तियां और कम हो जाएंगी?
यह सवाल उठता है कि क्या अब दिल्ली में नगर निगम को मज़बूत करके दिल्ली विधानसभा को पंगु बना दिया जाएगा या फिर उसका अस्तित्व ही ख़तरे में पड़ जाएगा? अगर ग़ौर किया जाए तो दिल्ली सरकार के पास आज भी यह अधिकार नहीं है कि वह अपनी मर्जी से दिल्ली के लिए कोई क़ानून पास कर सके।
कहने को तो दिल्ली सरकार के पास ज़मीन, पुलिस और क़ानून-व्यवस्था नहीं है लेकिन असल में उसे किसी भी विभाग के बारे में कोई बिल लाने का भी अधिकार नहीं है।
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