दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को सलमान खुर्शीद की नई किताब 'सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन आवर टाइम्स' के प्रकाशन, प्रसार, बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया है। एक याचिका दाखिल कर इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। किताब में खुर्शीद ने कथित तौर पर हिंदुत्व की तुलना इसलामिक स्टेट और बोको हराम से की है।
याचिका पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा ने टिप्पणी की कि अगर लोगों को किताब पसंद नहीं है तो उनके पास इसे नहीं खरीदने का विकल्प है।
जस्टिस वर्मा ने याचिकाकर्ता को साफ़-साफ़ यह सुझाव दिया कि यदि इस किताब में इतनी ही ख़राब बातें लिखी हैं और उन्हें इसकी ज़्यादा चिंता है तो उन्हें क्या करना चाहिए। उन्होंने कहा, 'यदि आप लेखक से सहमत नहीं हैं, तो इसे न पढ़ें। कृपया लोगों को बताएँ कि पुस्तक बुरी तरह से लिखी गई है, कुछ बेहतर पढ़ें।'
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हम एक राजनीतिक सिद्धान्त के रूप में हिन्दुत्व से असहमत हो सकते हैं, लेकिन आईएसआईएस या जिहादी इसलाम से इसकी तुलना करना तथ्यात्मक रूप से ग़लत है और चीजों को बढ़ा चढ़ा कर कहने के समान है।
ग़ुलाम नबी आज़ाद, कांग्रेस नेता
इस पर राहुल गांधी का भी एक बयान आया था। उन्होंने कहा था कि हिंदुत्व और हिंदू धर्म दो अलग-अलग चीजें हैं और इस तरह के मतभेदों को तलाशने और समझने की ज़रूरत है।
दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता विनीत जिंदल की ओर से वकील राज किशोर चौधरी पेश हुए। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने यह तर्क देने की कोशिश की कि किताब से देश भर में सांप्रदायिक तनाव पैदा होगा और पहले से ही किताब के कारण हिंसा की घटनाएँ हो चुकी हैं। चौधरी ने कहा, 'यहां तक कि नैनीताल में लेखक का घर भी क्षतिग्रस्त हो गया है... हालाँकि अभी तक कोई बड़ी घटना नहीं हुई है, लेकिन ऐसा होने की आशंका है।'
चौधरी ने अनुरोध किया, 'मैं इस हिस्से को हटाने के लिए कह रहा हूँ। सांप्रदायिक दंगे ऐसे शुरू होते हैं। कम से कम नोटिस जारी किया जाना चाहिए।'
चौधरी के इस तर्क पर प्रतिक्रिया देते हुए कि खुर्शीद एक सार्वजनिक व्यक्ति हैं और उन्हें शांति बनाए रखने के लिए सचेत होना चाहिए, न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि अगर लोग आहत महसूस कर रहे हैं तो अदालत कुछ नहीं कर सकती।
उन्होंने कहा, 'अगर लोग इसे महसूस कर रहे हैं तो हम क्या कर सकते हैं। अगर उन्हें पसंद नहीं आया तो वे अध्याय छोड़ सकते हैं। अगर वे आहत हो रहे हैं तो वे अपनी आँखें बंद कर सकते हैं।' न्यायमूर्ति वर्मा ने चौधरी से पूछा कि क्या उनका कोई अन्य तर्क है और फिर उन्होंने याचिका खारिज कर दी।
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