देश में खाई अमीरी-गरीबी की ही नहीं है। गहरी खाई दलित बस्तियों और आम बस्तियों के बीच भी है। मुस्लिम बस्तियों और आम बस्तियों के बीच भी ऐसी ही खाई है। यह खाई दरअसल इन बस्तियों तक सुविधाओं की पहुँच को लेकर है। ये बस्तियाँ आम या मुख्य बस्तियों से इसलिए अलग-थलग हो जाती हैं कि उसमें अधिकतर उन्हीं समुदायों के लोग रहते हैं। दलित बस्तियों में अधिकतर दलित और मुस्लिम बस्तियों में अधिकतर मुस्लिम। यह खाई ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में है। ऐसी बस्तियों में स्कूल जैसी सामान्य नागरिक सुविधाएँ भी पहुँच नहीं पाती हैं। यह बात डेवलपमेंट डाटा लैब के शोध में सामने आयी है।
भारत में दलित, मुस्लिम बस्तियाँ अमेरिका में 'ब्लैक' जैसी अलग-थलग: शोध
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- 25 Jan, 2024
क्या देश में दलित और मुस्लिम भी बाक़ी लोगों से उसी तरह घुले-मिले हैं जैसे बाक़ी के लोग? यदि ऐसा है तो फिर दलितों और मुस्लिमों की बसावट अलग-अलग क्यों? क्या उन क्षेत्रों में सुविधाएँ भी बाक़ी हिस्सों की तरह हैं?

डेवलपमेंट डाटा लैब ने 'भारत में आवासीय अलगाव और स्थानीय सार्वजनिक सेवाओं तक असमान पहुंच' नाम से रिपोर्ट तैयार की है। 15 लाख घरों के सर्वे को आधार बनाया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह मौजूदा स्थिति का शोध नहीं है और इसका आकलन दस साल पहले किया गया था। इसने कहा है कि 2011-13 में पूरे भारत को कवर करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर पड़ोसी घरों के स्तर पर डेटा जुटाया गया।