मजदूरी करने वाले मुफ्त का पांच किलो अनाज लेकर मौज में है। मध्यम वर्ग टैक्स चुपचाप निकालकर दे देता है। बड़े उद्योगपति करोड़ों लेकर फरार हो जाते हैं। तो लोग आख़िर मगन किस चीज को लेकर हैं?
क्या देश में दलित और मुस्लिम भी बाक़ी लोगों से उसी तरह घुले-मिले हैं जैसे बाक़ी के लोग? यदि ऐसा है तो फिर दलितों और मुस्लिमों की बसावट अलग-अलग क्यों? क्या उन क्षेत्रों में सुविधाएँ भी बाक़ी हिस्सों की तरह हैं?