1796 में ब्रिटिश वैज्ञानिक एडवर्ड जेनर ने 'काऊ पॉक्स' बीमारी से बचाव के लिए टीका या वैक्सीन की खोज की थी। तब से ही वैक्सीन-विरोधी टीके के बारे में भ्रमित तर्क देते रहे हैं। सोशल मीडिया के ज़माने में इन बेबुनियाद तर्कों को और बढ़ावा मिला है और आम जनता को भ्रमित करना और भी आसान हो गया है।

कोरोना की वैक्सीन बहुत कम समय में आने से वैक्सीन-संबंधित शंकाओं को बल मिला है। फ़ेसबुक, वाट्सऐप और ट्विटर पर वैक्सीन के बारे में अफ़वाहों, अवैज्ञानिक तर्कों और बेबुनियाद तथ्यों की भरमार है। जानिए, कैसा असर होगा।
कोरोना की वैक्सीन बहुत कम समय में आने से वैक्सीन-संबंधित शंकाओं को बल मिला है। फ़ेसबुक, वाट्सऐप और ट्विटर पर वैक्सीन के बारे में अफ़वाहों, अवैज्ञानिक तर्कों और बेबुनियाद तथ्यों की भरमार है, और जनता ज़्यादातर सही जानकारी के अभाव में इन ग़लत तथ्यों के झाँसे में आ जाती है।
ये ग़लत और फ़र्ज़ी जानकारियाँ आपकी जान को ख़तरा पहुँचा सकती हैं। इसलिए इस लेख के ज़रिए हमने वैक्सीन से जुड़े कुछ मिथकों को दूर करने की कोशिश की है। इससे पहले यह बताना ज़रूरी है कि आख़िर वैक्सीन काम कैसे करती हैं। वैक्सीन हमारे शरीर की प्राकृतिक रक्षणकारी ताक़तों की मदद से हमारे 'इम्यून सिस्टम' या प्रतिरक्षा तंत्र में 'ऐंटीबॉडीज़' का निर्माण करते हैं।