ऑटो इंडस्ट्री की मंदी को दूर करने के लिए उन्हें करों में रियायत, लोगों से पैसा लेकर भी घर नहीं दे पाने वाले भवन निर्माताओं को मंदी से उबारने के लिए 25000 करोड़ का पैकेज, बाज़ार में तेजी लाने के लिए कॉर्पोरेट्स टैक्स में बड़े पैमाने पर कटौती जैसे अनेक फ़ैसले हैं जो मोदी सरकार ने बीते एक साल के अंदर किये। लेकिन आज कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण देश के सभी राज्य लॉकडाउन हैं और करोड़ों की संख्या में दिहाड़ी मजदूर बिना काम के बैठे हैं, उनके बारे में अभी तक केंद्र सरकार ने कोई फ़ैसला नहीं लिया है। ये वे लोग हैं जो ‘रोज कमाओ-रोज खाओ’ वाली जिंदगी जीते हैं।
मोदी सरकार ने मैन्युफ़ैक्चरिंग क्षेत्र में नई कम्पनियों के लिए टैक्स को अप्रत्याशित रूप से कम करके 15% करने का ‘साहसिक ऐतिहासिक फ़ैसला’ किया और नई विद्युत उत्पादन कम्पनियों के लिए भी कर को घटाकर 15% किया गया। इसी तरह 100 करोड़ तक के टर्नओवर वाली स्टार्ट-अप कम्पनियों को भी 10 साल तक कोई कर नहीं देने, जैसे बड़े फ़ैसले भी किये। लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण के इस दौर में जब कामकाज पूरी तरह ठप है, तो दिहाड़ी मजदूर कैसे अपना पेट भर रहे होंगे, इस बारे में सोचने के लिये शायद सरकार के पास समय नहीं है।
देश में फिलहाल 31 मार्च तक लॉकडाउन घोषित किया गया है लेकिन जिस तरह से कोरोना के मामले हर दिन बढ़ रहे हैं, उसे देखकर कहा जा सकता है कि लॉकडाउन को अभी और बढ़ाया जायेगा और हालात सुधारने के लिए काफी कुछ करने की ज़रूरत है।
खामोश क्यों बैठे हैं भारतीय उद्योगपति?
हमारे कॉर्पोरेट घराने सरकार से मिलने वाली छूटों के दम पर अपना साल दर साल विस्तार किये जा रहे हैं, लेकिन देश के इतने ख़राब हालात में भी वे अभी तक खामोश बैठे हैं। महिंद्रा समूह के आनंद महिंद्रा के अलावा अब तक किसी भी उघोगपति ने सहयोग की कोई घोषणा तक नहीं की है जबकि कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में दुनिया भर के उद्यमियों ने अपने देश की सरकारों को जमकर पैसा दिया है। जैसे - बिल गेट्स ने 100 मिलियन डॉलर, जैक मा ने अमेरिका को 14 मिलियन डॉलर, पांच लाख टेस्टिंग किट और 10 लाख मास्क दिए, एप्पल कंपनी बेहतरीन क्वालिटी के लाखों मास्क अमेरिका के स्वास्थ्य विभाग को दे रही है।
सीएसआर फंड का क्या हुआ?
कहने को तो हमारे देश में कॉर्पोरेट-सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी (सीएसआर) नामक एक फंड का भी प्रावधान है लेकिन हकीक़त में इस फंड का इस्तेमाल समाज के लिए कुछ काम करने के बजाय टैक्स की हेरफेर के लिए ही ज्यादा होता दिखाई देता है। यदि यह फंड वर्तमान परिस्थितियों में देश की जनता के लिए काम नहीं आया तो कब काम आएगा? वैसे, सरकार और उसकी नीतियों द्वारा सींचा और उपजाया गया स्वास्थ्य सेवा का निजी मॉडल आज कोरोना के प्रति नमूने की जांच के लिये 4500 रुपया वसूल रहा है। देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को कमजोर बनाकर तथा स्वास्थ्य बीमा की योजनाओं को चलाकर निजी स्वास्थ्य सेवा के इस मॉडल को हमारे देश में बढ़ाया गया है और यह महामारी के वक्त किस प्रकार की स्वास्थ्य सेवा दे सकता है, वह साफ़ नजर आ रहा है।
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