प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक दिन के ‘जनता कर्फ्यू’ को देश के लोगों ने काफ़ी सराहा और कोरोना के ख़िलाफ़ उनकी इस पहल में सहयोग किया। तालियाँ, थालियाँ और घंटियाँ भी बजायीं। ‘जनता कर्फ्यू’ से पहले ही देश के अधिकाँश राज्यों में लॉकडाउन हो चुका था और जो राज्य बचे थे उनमें भी मंगलवार तक लॉकडाउन या कर्फ्यू की घोषणा हो चुकी थी। ऐसे में मंगलवार रात 8 बजे एक बार फिर प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन में देश में 21 दिन के कर्फ्यू की तरह लॉकडाउन की बात कही और लोगों से कहा कि आपके घर की चौखट लक्ष्मण रेखा जैसी है जिसे बहुत सोच-समझ कर पार करना है। कोरोना से लड़ने के लिए लॉकडाउन और सोशल दूरी बनाए रखना एक अहम् उपाय साबित हुआ है और उसके चलते प्रधानमंत्री की इस घोषणा का विरोध नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन राष्ट्र के नाम अपने इस संबोधन में उन्होंने उस पहलू को नहीं बताया कि इस दौरान क्या-क्या ज़रूरत की सुविधाएँ लोगों के लिए उपलब्ध रहेंगी। देश की एक बड़ी जनसंख्या जो रोज़ कमाने -रोज़ खाने जैसे हालात में जीवन बसर करने के लिए मजबूर है, उसका क्या होगा? काम-धंधे बंद हैं, कमाई का कोई ज़रिया नहीं, ऐसे में ये लोग अपना पेट कैसे भरेंगे?