राकेश अस्थाना को दिल्ली का पुलिस कमिश्नर नियुक्त किए जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की याचिका दायर की गई है।
मोहन लाल शर्मा नामक वकील ने सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका में कहा है कि दिल्ली का पुलिस कमिश्नर नियुक्त करने में जानबूझ कर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन किया गया है।
याचिका में कहा गया है कि राकेश अस्थाना की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि सभी रिक्तियों के बारे में पहले संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को सूचित किया जाना चाहिए। इसमें यह भी कहा गया है कि छह महीने से कम नौकरी के दिन बचे होने की स्थिति में किसी भी अधिकारी को डीजीपी नहीं बनाया जाना चाहिए।
जनहित याचिका में दावा किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करने की वजह से मोदी और अमित शाह पद पर बने रहने का संवैधानिक अधिकार खो चुके हैं।
याचिकाकर्ता ने माँग की है कि इस मामले की जाँच कम से कम पाँच जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच को सौंपा जाना चाहिए वरना संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है और लोगों का देश में भरोसा ख़त्म हो सकता है।
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कौन हैं राकेश अस्थाना?
बता दें कि इस नियुक्ति के ठीक पहले राकेश अस्थाना बीएसएफ़ के महानिदेशक पद की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। वे 1984 बैच के गुजरात कैडर के आईपीएस अफ़सर हैं।
तीन दिन बाद वह सेवानिवृत्त होने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही उन्हें यह अहम जिम्मेदारी दी गई है।
अस्थाना सीबीआई प्रमुख की दौड़ में भी थे लेकिन उनकी जगह सुबोध जायसवाल इस पद पर चुने गए थे।
आलोक वर्मा से था झगड़ा
केंद्र सरकार ने राकेश अस्थाना को 2019 में सीबीआई के विशेष निदेशक पद से हटा दिया था। यहाँ उनका तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा से झगड़ा चल रहा था लेकिन केंद्र सरकार ने वर्मा को भी पद से हटा दिया था।
राकेश अस्थाना के बारे में कहा जाता है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नज़दीकी हैं और इसीलिए उन्हें सीबीआई में लाया गया था। विशेष निदेशक रहते हुए वह सीबीआई में तमाम बड़े और नीतिगत निर्णय लिया करते थे।लेकिन बाद में आलोक वर्मा की उनसे अनबन शुरू हो गई थी।
दोनों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ शिकायत की थी और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था। इसके बाद दोनों को ही पद से हटा दिया गया था। इस मामले से तब मोदी सरकार की ख़ासी किरकिरी हुई थी।
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