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राहुल गांधी से क्यों मिलना चाहता है आरएसएस?

आरएसएस ने आरोप लगाया है कि राहुल गांधी संघ के नेताओं से नहीं मिलते हैं। तो सवाल है कि आख़िर संघ के नेता राहुल गांधी से मिलना क्यों चाहते हैं? एक सवाल तो यह भी है कि संघ के नेताओं ने राहुल गांधी से मिलने के लिए क्या एप्वाइंटमेंट मांगा और राहुल गांधी की टीम की ओर से इनकार कर दिया गया? क्या उनसे ख़त लिखकर संपर्क करने की कोशिश की गई?

इन सवालों का जवाब ढूंढने से पहले यह जान लें कि आख़िर आरएसएस ने अब क्या कहा है। आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने शनिवार को कहा कि 'नफरत के बाजार' में 'मोहब्बत की दुकान' खोलने का दावा करने के बावजूद राहुल गांधी संघ के नेताओं से नहीं मिलते हैं। इस बात को लेकर उन्होंने राहुल गांधी पर परोक्ष रूप से हमला भी किया।

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मथुरा में हुई आरएसएस की वार्षिक बैठक के मौक़े पर होसबले ने कहा, 'आप नफ़रत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकान चलाना चाहते हैं, पर मिलना नहीं चाहते हैं। हम तो सबसे मिलना चाहते हैं।' होसबोले ने कहा कि आरएसएस प्यार फैला रहा है, लेकिन यह राहुल के लिए महज बयानबाजी है।

मोहन भागवत के बाद आरएसएस में दूसरे नंबर के नेता होसबले शनिवार को आरएसएस बैठक के आखिरी दिन मथुरा में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे और इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्या 2024 के संसदीय चुनावों से पहले उनके और भाजपा के बीच कुछ मतभेद हुए हैं। उन्होंने कहा, 'हम हर राजनीतिक दल के नेताओं, हर उद्योगपति, विभिन्न समुदायों के हर नेता से मिलते हैं। हमारा किसी के साथ कोई तनाव नहीं है, चाहे वह भाजपा नेता हों, कांग्रेस या अन्य संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग हों। मैं यहां नाम नहीं लेना चाहता क्योंकि यह अलग ख़बर बन जाएगी।'

आरएसएस नेता का यह बयान तब आया है जब राहुल गांधी लगातार संघ पर हमलावर रहे हैं। पिछले महीने ही अमेरिका दौरे के दौरान राहुल गांधी ने टेक्सास में एक कार्यक्रम में कहा था, 

संघ मानता है कि भारत ‘एक विचार’ है, जबकि हम मानते हैं कि भारत ‘कई विचारों’ से बना है। हम अमेरिका की तरह मानते हैं कि हर किसी को सपने देखने का अधिकार है, सबको भागीदारी का मौक़ा मिलना चाहिए और यही लड़ाई है।


राहुल गांधी, कांग्रेस नेता

उन्होंने आगे कहा कि महिला सशक्तिकरण बीजेपी और हमारे बीच वैचारिक संघर्ष का हिस्सा है। उन्होंने कहा, 'बीजेपी और आरएसएस का मानना ​​है कि महिलाओं को पारंपरिक भूमिकाओं तक ही सीमित रखा जाना चाहिए- घर पर रहना, खाना बनाना और कम बोलना। हमारा मानना ​​है कि महिलाओं को वह सब करने की आजादी होनी चाहिए, जो वे करना चाहती हैं।'

वह बीजेपी और आरएसएस पर सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप का आरोप भी लगाते रहे हैं। अगस्त महीने में राहुल गाँधी ने कहा था कि नरेंद्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के ज़रिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं।

राहुल ने अपने कई भाषणों में लगातार आरोप लगाया है कि आरएसएस और भाजपा धार्मिक नफरत फैला रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह नफ़रत की दुकान के बीच प्रेम की दुकान चला रहे हैं।

कांग्रेस नेता ने पिछले साल जनवरी में पंजाब के होशियारपुर में कहा था, 'मैं आरएसएस के दफ्तर में कभी नहीं जा सकता, चाहे आप मेरा गला ही काट दें।' सवाल है कि क्या आरएसएस ने फिलहाल जो मुलाकात की इच्छा जताई है, उसमें कांग्रेस को कुछ अजीब सी चीज लग रही है? मसलन, यह पशोपेश हो सकती है कि इसमें संघ की कोई चाल हो? शायद संघ यह भुनाने की कोशिश करे कि हम तो ऐसी संस्था है जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी आने से नहीं हिचकिचाते हैं? इस तरह के तर्क पहले से भी दिए जाते रहे हैं कि संघ ऐसी संस्था है कि महात्मा गांधी भी मिलते रहे थे। इसी तरह की मिसाल इंदिरा गांधी को लेकर दी जाती रही है। हाल में तो पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के आरएसएस के कार्यक्रम में जाने का ज़िक्र कर दावा पुष्ट किया जाता रहा है। 

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वैसे, कांग्रेस की एक और शख्सियत ने संघ प्रमुख से मिलने से इनकार कर दिया था। उस व्यक्ति का नाम जवाहरलाल नेहरू था। अपूर्वानंद लिखते हैं कि यह वक्त था गोलवलकर के जेल से बाहर आने का। आरएसएस प्रमुख को गाँधी की हत्या के बाद जेल में डाला गया था। कुछ वक्त गुजरने के बाद जब जेल से आरएसएस के लोगों को धीरे धीरे छोड़ा जाने लगा तो संघ प्रमुख ने बेतरह कोशिश करना शुरू किया कि किसी भी तरह नेहरू और सरदार पटेल की कृपा उसे मिल जाए। आरएसएस पर पाबंदी लग गई थी। वह किसी भी तरह खुले में आना चाहता था। लेकिन नेहरू उसे लेकर बहुत सख़्त थे। मिलने की गोलवलकर की बारंबार याचना का उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। यह सब धीरेंद्र झा ने गोलवलकर की अपनी जीवनी में बतलाया है।

अपूर्वानंद ने लिखा है कि इस इनकार के पहले नेहरू एक बार गोलवलकर से मिलने को तैयार हुए थे 1947 में। गोलवलकर के अनुरोध पर हुई उनकी यह मुलाक़ात काफ़ी तनावपूर्ण रही। गोलवलकर ने नेहरू को समझाने का प्रयास किया कि आरएसएस जैसे संगठन की भारत को ज़रूरत है ताकि वह विश्व पर अपना असर डाल सके। नेहरू ने इस पर गोलवलकर को डाँट लगाई और कहा कि ऐसी ताक़त को कभी शैतानी नहीं होना चाहिए। फिर गोलवलकर ने यह सिद्ध करने के लिए देर तक तर्क किया कि सांप्रदायिक हिंसा में संघ की कोई भूमिका नहीं है।

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क़मर वहीद नक़वी
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