मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एन. वी. रमना ने कहा है कि मानवाधिकारों के उल्लंघन और शारीरिक यंत्रणा की सबसे ज़्यादा आशंका थानों में ही है।
नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (नाल्सा) के एक कार्यक्रम को रविवार को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हिरासत में यंत्रणा और दूसरे तरह के अत्याचार अब भी होते हैं।
उन्होंने कहा कि मानवाधिकार सर्वोपरि है, उसका उल्लंघन किसी सूरत में नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन उल्लंघन होता है और इस मामले में पुलिस को और अधिक प्रशिक्षित करने और संवेदनशील बनाने की ज़रूरत है।
संविधान की गारंटी
उन्होंने कहा कि संविधान में मानवाधिकारों की रक्षा की गारंटी होने के बावजूद उसका उल्लंघन इसलिए भी होता है कि पुलिस थानों में क़ानून का कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं रहता है।
उन्होंने कहा कि थाने में किसी को लाए जाने के समय लिए गए फ़ैसलों पर यह निर्भर करता है कि अभियुक्त भविष्य में क़ानून के सामने अपना बचाव कैसे करता है।
जस्टिस रमना ने कहा कि हर थाने और जेल के बाहर और भीतर यह लिखा होना चाहिए कि क़ैदी और अभियुक्त के क्या अधिकार हैं। इसके अलावा पुलिस कर्मियों को भी अधिक संवेदनशील बनाए जाने की ज़रूरत है।
क़ानूनी सहायता
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि क़ानूनी सहायता के संवैधानिक अधिकार और मुफ़्त क़ानूनी सहायता सेवाओं की उपलब्धता के बारे में जानकारी का प्रसार पुलिस की ज़्यादतियों को रोकने के लिए आवश्यक है।
जस्टिस रमना ने कहा कि "अत्यधिक विशेषाधिकार प्राप्त और सबसे कमज़ोर लोगों के बीच न्याय तक पहुँच के अंतर को पाटना ज़रूरी है।"
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क़ानूनी सहायता
उन्होंने कहा, "यदि, एक संस्था के रूप में न्यायपालिका नागरिकों का विश्वास हासिल करना चाहती है, तो हमें सभी को आश्वस्त करना होगा कि हम उनके लिए मौजूद हैं। लंबे समय तक कमज़ोर आबादी न्याय प्रणाली से बाहर रही है।''
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ज़ोर देकर कहा कि अतीत से भविष्य का निर्धारण नहीं करना चाहिए और सभी को समानता लाने के लिए काम करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि क़ानूनी सहायता से जुड़ा मोबाइल ऐप ग़रीब और ज़रूरतमंद लोगों को क़ानूनी सहायता के लिए आवेदन करने और पीड़ितों को मुआवजे की माँग करने में मदद करेगा।
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