आख़िरकार चंडीगढ़ के मेयर का इलेक्शन बीजेपी ‘जीत’ गयी। लेकिन उसके समर्थक जब जयश्रीराम का नारा लगा रहे थे तो अट्टहास रावण कर रहा था। बीजेपी ने इस जीत के लिए जिस अनैतिकता का परिचय दिया, वह पिता के आदेश पर पल भर में भाई भरत के लिए अयोध्या का राजपाट छोड़ने वाले राम का रास्ता नहीं हो सकता। यह रास्ता है छल-बल से अपने भाई कुबेर से उसकी स्वर्णपुरी लंका और पुष्पक विमान छीन लेने वाले रावण का। बीजेपी के अयोध्या-कांड में छिपी ‘राम-भक्ति’ और उसके ‘राम-राज्य’ की हक़ीक़त यही है।
चंडीगढ़ में जो कुछ हुआ, उसे दिनदहाड़े डकैती कहा जा सकता है। बीजेपी के प्रत्याशी मनोज सोनकर का मुकाबला कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के संयुक्त प्रत्याशी कुलदीप कुमार से था। उन्हें 20 पार्षदों का समर्थन था लेकिन कुलदीप कुमार को महज 12 वोट मिले। उनके पक्ष में पड़े आठ वोट अवैध घोषित कर दिये गये। इस तरह 16 वोट पाकर बीजेपी जीत गयी। एक वीडियो वायरल है जिसमें आरोप है कि पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह मतपत्रों में छेड़छाड़ करते स्पष्ट नज़र आ रहे हैं। यह विपक्ष के वोटों को अवैध करने के लिये किया गया।
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कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के एक साथ आ जाने से बीजेपी की जीत का कोई कारण ही नहीं था। वोटों का गणित उंगलियों पर किया जा सकता थ। लेकिन बीजेपी नहीं चाहती थी कि लोकसभा चुनाव से पहले उसकी हार से जुड़ी कोई खबर जनता के बीच जाये। नतीजा ये हुआ कि पहले पीठासीन अधिकारी बीमार हो गये जिससे चुनाव टल गया। और हाईकोर्ट के आदेश पर जब 30 जनवरी को वोट पड़े तो उन्हीं पीठासीन अधिकारी यानी अनिल मसीह ने विपक्ष के आठ वोटों को अवैध घोषित कर दिया। अफ़सोस कि सरकारी तंत्र के सहयोग से लोकतंत्र की हत्या उस दिन की गयी जब देश का हर संवेदनशील आदमी महात्मा गाँधी की शहादत को याद करते हुए शोकमग्न था।
ज़ाहिर है, इस मुद्दे पर राजनीतिक विवाद होगा। आंदोलन से लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाने तक का दौर चलेगा, लेकिन इसन दुनिया भर के उन लोगों को एक बार फिर सही साबित किया है जो भारत के लोकतंत्र को संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं। यह संयोग नहीं कि हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दम भरते हैं लेकिन 2023 के लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत को 108वें स्थान पर रखा गया है। साल भर पहले भारत सौवें स्थान पर था। यह भारतीय लोकतंत्र के साल दर साल कमज़ोर होते जाने का सबूत है। बात तो यहाँ तक पहुँच चुकी है कि भारत को दोषपूर्ण लोकतंत्र देशों की सूची में रखा जा रहा है यानी यहाँ ‘आंशिक लोकतंत्र’ ही है। यह शासन के सर्वसत्तावादी होने का संकेत करता है।
बीजेपी इस समय राजनीतिक दल से ज्यादा येन-केन प्रकारेण सत्ता हथियाने की चुनावी मशीन में तब्दील हो गयी है। किसी नीति सिद्धांत का उसके लिए कोई अर्थ नहीं रह गया है। जिन नीतीश कुमार पर कल तक वो भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने का आरोप लगाती थी, उन्हें फिर अपने पाले में करके बिहार की सत्ता हथियाने में उसे कोई हिचक नहीं हुई। महाराष्ट्र में जिन अजित पवार पर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्तर हज़ार करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाया था आज वे बीजेपी के साथ मिलकर उपमुख्यमंत्री बतौर महाराष्ट्र की सरकार चला रहे हैं। असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा की कहानी सभी जानते हैं। बीजेपी ने उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए श्वेतपत्र जारी किया था पर वे साथ आ गये तो बीजेपी सारे आरोप भूल गयी। इस सूची में दर्जनों और नाम हैं जो उस दिन तक भ्रष्ट रहते हैं जिस दिन तक वे बीजेपी के पाले से बाहर रहते हैं। बीजेपी की वाशिंगमशीन में धुलकर भ्रष्टाचारी से लेकर बलात्कारी तक, कोई भी पवित्र हो सकता है।
चंडीगढ़ में जो हुआ उससे शक़ पैदा होता है कि बीजेपी 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिए क्या कुछ कर सकती है। ईवीएम को लेकर संदेहों की कड़ी अपनी जगह, सामान्य चुनावी प्रक्रिया को भी वह दूषित करने से बाज़ नहीं आयेगी।
बीजेपी अनीति और दुराचरण का यह अध्याय तब लिख रही है जब उसका दावा पूरे ‘भारत को राम-मय’ कर देने का है। पर राम क्या पत्थर की मूरत भर हैं या उनके साथ मर्यादा का भी कोई भाव है जिसे साधना रामभक्त कहने की ज़रूरी शर्त है? रामचरितमानस में चर्चा है कि राजतिलक के बजाय जब पिता दशरथ ने राम को 14 साल के वनवास का आदेश दिया तो कई लोग कैकेयी को दिये इस वचन से सहमत नहीं थे। ख़ुद लक्ष्मण क्रोधित हुए और उन्होंने राम से कहा कि “आप बाहुबल से अयोध्या का राज सिंहासन छीन लें। देखता हूँ कौन विरोध करता है।” लेकिन राम ने कहा, “अधर्म का सिंहासन मुझे नहीं चाहिए। मैं वन जाऊँगा। मेरे लिए तो जैसा राजसिंहासन, वैसा ही वन।”
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ये राम का आदर्श था। वे पिता को दिये वचन को पूरा करने के लिए भाई भरत के लिए सिंहासन त्याग देते हैं। अगर कोई राजनीति राम को अपना नारा बनाती है तो उसे इस मर्यादा का पालन करना होगा। वरना राम-राम तो मारीच से लेकर कालनेमि तक करते हैं जब तक कि उनका पर्दाफाश नहीं हो जाता है।
कोई और समय होता तो मीडिया चंडीगढ़ कांड को ज़ोर-शोर से उठाता और मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करता। वह नतीजा आने के बाद आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच केमेस्ट्री का सवाल उठाने को हास्यास्पद बताता क्योंकि विपक्ष के आठ वोट अवैध घोषित होने से केमेस्ट्री ख़राब होने का सबूत नहीं मिला, अलबत्ता गणित बिगाड़ने का खुला खेल फर्रुख़ाबादी ज़रूर नज़र आया। लेकिन इस राममय समय में बीजेपी या मोदी जी पर कोई सवाल नहीं खड़ा हो सकता। मीडिया की ओर से तो कतई नहीं। जबकि अयोध्या की राजगद्दी पर बैठने के बाद राम जनता से कहते हैं- जो अनीति कछु भाषौं भाई, तौ मोहि बरजहुँ भय बिसराई। (अगर मैं अनीति के रास्ते चलूँ तो मुझे निर्भय होकर टोका जाये।)
(लेखक कांग्रेस से जुड़े हैं)
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