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सुप्रीम कोर्ट में फिर टली मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्ति विवाद की सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में आज 19 फरवरी को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्ति पैनल विवाद को लेकर सुनवाई नहीं हो सकी। अब सुनवाई कब होगी, सुप्रीम कोर्ट की बेंच या रजिस्ट्री ने अभी कुछ भी साफ नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट से याचिकाकर्ता कल से ही तत्काल सुनवाई का अनुरोध कर रहे हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने काम का दबाव होने की वजह से मामले को आज टाल दिया। 
सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही पहले कहा था कि मामले की सुनवाई 19 फरवरी को होगी। यह मामला आज के लिए लिस्ट भी था। लेकिन सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने आज अदालत से अनुरोध किया था कि सुनवाई टाल दी जाये। अदालत ने भी कहा कि वो संबंधित याचिकाओं पर अर्जेंट सुनवाई नहीं कर सकती।
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मोदी सरकार ने चुनाव आयोग में सीईसी की नियुक्त के पैनल के लिए नियम बदल दिये हैं। पैनल से सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को बतौर सदस्य हटा दिया गया। पैनल में अब सरकार का बोलबाला है। नेता विपक्ष सदस्य हैं लेकिन वो अकेले फैसलों को प्रभावित नहीं कर सकते। इसी मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। लेकिन इस दौरान सरकार ने एक काम यह किया कि 19 फरवरी की सुनवाई से पहले 17 फरवरी को नियुक्ति पैनल की बैठक बुलाई और उसमें ज्ञानेश कुमार के नाम पर बतौर सीईसी मोहर लगा दी। दूसरे चुनाव आयुक्त के रूप में हरियाणा से लाकर आईएएस विवेक जोशी को चुनाव आयुक्त बना दिया गया। 
पैनल के सदस्य नेता विपक्ष राहुल गांधी ने बैठक में अपना असहमति पत्र दिया और आग्रह किया कि नये सीईसी की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले न की जाये। सरकार ने राहुल गांधी की बात नहीं सुनी और आधी रात को नये सीईसी और नये चुनाव आयुक्त के नामों की घोषणा कर दी।

सुप्रीम कोर्ट में जब कल यह मामला आया तो याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने इसकी तत्काल सुनवाई की मांग की। उसी के बाद असम के एक एनकाउंटर मामले की सुनवाई होनी थी। प्रशांत भूषण उस केस की पैरवी कर रहे थे। भूषण ने कहा कि पहले सीईसी विवाद वाली सुनवाई कर ली जाये। असम वाली बाद में हो जायेगी। लेकिन अदालत ने कल भी सुनवाई आज के लिए टाल दी थी। इससे पिछली तारीख पर चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने बेंच से अपना इसलिए वापस लिया था कि मामला सीजेआई से जुड़ा हुआ है। इसलिए दूसरी बेंच सुनवाई करेगी।

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं, जिनमें सरकार के कदम को संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध बताया गया है। अदालत ने पहले 19 फरवरी को इस मामले की सुनवाई के लिए तारीख तय की थी, लेकिन अब इसे टाल दिया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सीईसी की नियुक्ति में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए चीफ जस्टिस को पैनल में शामिल करना आवश्यक है।
विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार ने चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को कमजोर करने का प्रयास किया है। उनका कहना है कि चीफ जस्टिस को पैनल से हटाने का फैसला संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है और इससे चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं।

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सरकार की ओर से इस कदम को सही ठहराते हुए कहा गया है कि यह निर्णय संविधान के प्रावधानों के अनुरूप है और इसमें किसी तरह की अनियमितता नहीं है। हालांकि, विपक्ष और कई संवैधानिक विशेषज्ञों का मानना है कि इससे चुनाव आयोग की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का अगला फैसला चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए महत्वपूर्ण होगा।

(रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी)
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