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इलाहाबाद में बुलडोजर से कार्रवाई।

क्या यह फैसला 'बुलडोजर राज' से छुटकारा दिलाएगा

बीजेपी शासित राज्यों यूपी, एमपी, गुजरात, असम राज्यों में बुलडोजर से घर गिराने की कार्रवाई चर्चा में रही है। आरोपियों के खिलाफ अदालत का फैसला आए बिना उन राज्यों में पुलिस या जिला प्रशासन ने फौरन घर गिरवा दिए। इस पर विपक्ष ने सवाल उठाए। लेकिन वो इस मुद्दे पर कोई आंदोलन नहीं खड़ा कर पाया। विपक्ष के नेता बयान देकर चुप हो गए। अब गोहाटी हाईकोर्ट का एक फैसला इस बुलडोजर आतंक के खिलाफ आया है। जिसमें अदालत ने बुलडोजर से घर गिराने की कार्रवाई को अवैध ठहराया और पीड़ितों को मुआवजा देने, बुलडोजर से घर गिराने वाले पुलिसकर्मियों पर एक्शन का आदेश दिया है।

गोहाटी हाईकोर्ट ने हिरासत में कथित मौत के बाद एक पुलिस स्टेशन पर कथित आगजनी के मामले में पिछले साल मुस्लिम बहुल गांव में एक घर पर बुलडोजर चलाने की असम पुलिस की कार्रवाई को 'अवैध' करार दिया है। 
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यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुलडोजर को राजनीतिक डिक्शनरी में जगह दिला दी। यूपी में बुलडोजर के जरिए तमाम मकान और दुकानें गिराई गईं। कांग्रेस और सपा ने आरोप लगाया कि इसके जरिए सिर्फ मुस्लिमों को टारगेट किया गया। लेकिन योगी आदित्यनाथ जल्द ही बुलडोजर बाबा कहलाने लगे। 2022 के विधानसभा चुनाव में बुलडोजर लेकर बीजेपी और योगी आदित्यनाथ ने प्रचार तक किया। मध्य प्रदेश में भी ऐसी ही कार्रवाइयां हुईं और वहां के सीएम शिवराज सिंह चौहान बुलडोजर मामा कहलाने लगे। असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा भी इस रास्ते पर चल रहे थे। असम में तमाम घर और मदरसे अवैध बताकर सरकार ने बुलडोजर से गिरवा दिया। एक भी मामले में अदालत के फैसले का इंतजार नहीं किया गया। 
Bulldozer Baba and Bulldozer Mama: will this decision get rid of 'bulldozer raj' - Satya Hindi
यूपी विधानसभा के पिछले चुनाव में बुलडोजर के साथ प्रचार भी किया गया।
गुहाटी हाईकोर्ट के फैसले का असर अन्य राज्यों में ऐसी कार्रवाइयों पर पड़ सकता है। बहुत सारे मामले अदालतों में चैलेंज ही नहीं हुए। यूपी के इलाहाबाद में एक एक्टिविस्ट मोहम्मद जावेद पम्प की पत्नी का मकान इसी तरह जमींदोज किया गया था। उस समय भी तमाम पूर्व जजों ने इस कार्रवाई का विरोध किया था। यह मामला अभी निचली अदालत में चल रहा है। लेकिन इसके बाद कानपुर, लखनऊ, वाराणसी, अयोध्या, आगरा, गोरखपुर आदि में बुलडोजर से कई घर गिराए गए। 
मध्य प्रदेश में अभी हाल ही में एक शख्स को क्रिमिनल बताकर पूरा घर गिरा दिया गया। खरगौन में हिन्दू-मुस्लिम दंगा होने के बाद मुस्लिम के घर बुलडोजर से गिराए गए। वहां एक दिव्यांग के सरकारी घर को भी बुलडोजर से गिरा दिया गया। समझा जाता है कि अदालत में बुलडोजर से घर गिराने को चुनौती देने के मामलों में बढ़ोतरी हो सकती है।
बहरहाल, द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी शासित असम में 21 मई, 2022 को नौगांव जिले के बटाद्राबा पुलिस स्टेशन को जलाने के एक दिन बाद ही बुलडोजर से मुस्लिमों के घर गिराने की कार्रवाई की गई। पुलिस और राज्य सरकार ने आरोप लगाया कि जिन्होंने पुलिस स्टेशन को फूंका है, उन सभी के घर गिराए जाएंगे। इसके एक ही दिन बाद तमाम घर बुलडोजर से गिरा दिए गए। ये सभी घर मुसलमानों के थे। गुहाटी हाईकोर्ट ने अब बुलडोजर का शिकार हुए लोगों को मुआवजा देने का आदेश असम सरकार को दिया है।
गुहाटी हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस आरएम छाया और जस्टिस सौमित्र सैकिया ने हाल ही में जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका पर कार्रवाई करते हुए आदेश जारी किया। 
असम के एडवोकेट जनरल देवजीत सैकिया ने अदालत को भरोसा दिया कि एक समिति बुलडोजर की इस कार्रवाई की जांच कर रही है और अगले 15 दिनों में दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी। यह अवधि 18 जनवरी को खत्म होगी।
हाईकोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में कहा: ऐसे आश्वासन पर और इस तथ्य के मद्देनजर कि राज्य अब मामले को अपने कब्जे में ले चुका है, यह उम्मीद की जाती है कि राज्य की अवैध कार्रवाई से प्रभावित व्यक्तियों को मुआवजा देने के लिए भी उचित निर्णय लिया जाएगा। इस अदालत के सामने उसकी रिपोर्ट भी पेश की जाएगी।

अदालत ने गुहाटी हाईकोर्ट के वकील एच.के. दास को मामले पर नजर रखने का निर्देश दिया है।
बता दें कि इसी बेंच ने 19 नवंबर 2022 को थाने पर भीड़ के हमले के बाद "जांच की आड़ में" घर पर बुलडोजर चलाए जाने पर "नाराजगी" व्यक्त की थी, जिसमें पूछा गया था कि नौगांव के पुलिस अधीक्षक को "बुलडोजर चलाने का अधिकार" किसने दिया था।

टेलीग्राफ के मुताबिक पिछले साल 22 मई को पुलिस और नागरिक प्रशासन ने मुस्लिम बहुल इलाके में बुलडोजर से पांच घरों को तोड़ दिया था। एक दिन पहले, मछली व्यापारी 39 वर्षीय शफीकुल इस्लाम की पुलिस हिरासत में हुई मौत का विरोध कर रहे लोगों ने बटाद्राबा पुलिस थाने को कथित तौर पर आग के हवाले कर दिया था।  
पुलिस ने खुले तौर पर बुलडोजर अभियान को सही ठहराते हुए बटाद्राबा पुलिस स्टेशन पर आगजनी के हमले से नहीं जोड़ा। पुलिस ने कहा था कि सरकारी जमीन पर रहने वाले अतिक्रमणकारियों के खिलाफ बुलडोजर की कार्रवाई की गई थी और आगजनी में शामिल ज्यादातर लोग अतिक्रमणकारी थे। 
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हाईकोर्ट के दो वकीलों ए.एच. लश्कर और जुनैद खालिद ने 23 मई को अदालत में याचिका दायर की थी। जुलाई में मामला दर्ज किया गया था।

वकील खालिद ने द टेलीग्राफ को बताया: अदालत ने फैसला सुनाया है कि पिछले साल बटाद्राबा में घर का गिराना अवैध था। अदालत ने अवैध पुलिस कार्रवाई से प्रभावित लोगों को मुआवजा देने के पक्ष में भी फैसला सुनाया है। 
उन्होंने कहा: हम अदालत के आदेश के मद्देनजर बुलडोजर अभियान में शामिल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ होने वाली कार्रवाई आदि पर कड़ी नजर रखेंगे और यह भी देखेंगे कि पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान राज्य द्वारा किया गया है या नहीं।
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क़मर वहीद नक़वी
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