हेमंत सोरेन
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पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व
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बजट भाषण में वित्त मंत्री जो कहते हैं कई बार उससे महत्वपूर्ण वह हो जाता है जो वे नहीं कहते हैं। इस बार निर्मला सीतारमण ने जिन मुद्दों पर चुप्पी साधे रखी बजट के वे हिस्से हैरान करने वाले हैं।
पूरे बजट भाषण में सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक यह रहा कि उन्होंने रक्षा ख़र्च पर कुछ नहीं बोला। भारत में सरकारी ख़र्च का सबसे बड़ा मद रक्षा में ही जाता है, इस लिहाज से भी इसका जिक्र जरूरी लगता है और फिर इस समय जिस तरह से चीन के साथ लग रही देश की सीमाओं पर लगातार तनाव है उसके चलते भी यह काफी महत्वपूर्ण है। यह तनाव न सिर्फ बरकरार है बल्कि चीन ने इसे सिक्किम तक विस्तार दे दिया है।
यह इसलिए भी अजीब लगता है कि भारतीय जनता पार्टी जब तक विपक्ष में रही उसने बजट के मौके पर तकरीबन सभी सरकारों पर रक्षा जरूरतों पर पर्याप्त ध्यान न देने का लगातार आरोप लगाया है।
बजट दस्तावेज के विस्तार में जाकर देखें तो इस बार रक्षा ख़र्च में जो बढ़ोतरी की गई है वह बहुत मामूली लगती है। पिछले वित्त वर्ष के रक्षा ख़र्च का संशोधित अनुमान 343822 करोड़ रुपये था जिसे इस बार बढ़ाकर 347088 करोड़ रुपये कर दिया गया है। रक्षा ख़र्च में हुई यह वास्तविक बढ़ोतरी तकरीबन नगण्य है।
इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि पिछले बजट के सरकारी व्यय में रक्षा ख़र्च की हिस्सेदारी आठ फीसदी थी, इस बार भी वह आठ फीसदी ही है। शायद इसीलिए यह मान लिया गया कि जब कुछ किया ही नहीं है तो इसका जिक्र ही क्यों करना।
लगभग यही बात शिक्षा ख़र्च के बारे में भी कही जा सकती है। वित्तमंत्री ने शिक्षा से जुड़ी तमाम योजनाओं का जिक्र किया, कुछ योजनाओं पर होने वाले सरकारी ख़र्च का भी जिक्र किया लेकिन बजट भाषण में यह नहीं बताया कि शिक्षा पर सरकार कुल कितना ख़र्च कर रही है। जबकि हैरान कर देने वाली बात यह है कि सरकार ने शिक्षा पर होने वाले बजटीय प्रावधान को घटा दिया है।
पिछले बजट में शिक्षा के लिए होने वाले प्रावधान को 99,312 करोड़ रुपये रखा गया था, लेकिन कोरोना और लाॅकडाउन की वजह से ख़र्च हुए सिर्फ 85089 करोड़ रुपये। अब अगले बजट के लिए शिक्षा पर होने वाले प्रावधान को काफी ज्यादा घटाकर 93224 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
इसी तरह स्वास्थ्य के लिए जो आंकड़ा दिया गया वह अगले छह साल का है और वह भी स्वास्थ्य इन्फ्रास्टक्चर का है। उसे छोड़ दें तो भी तकनीकी तौर पर यह दावा किया जा सकता है कि स्वास्थ्य के लिए बजटीय प्रावधान सरकार ने बढ़ा दिया है। यह कहा जा सकता है कि पिछले बजट में स्वास्थ्य के लिए 67848 करोड़ रुपये का प्रावधान था जो इस बजट में बढ़ाकर 74602 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
लेकिन पिछले बजट अनुमान और इस बजट अनुमान के बीच एक और आंकड़ा आता है जिसे हम कहते हैं पिछले बजट का संशोधित अनुमान। यह साल कोरोना संक्रमण का साल था इसलिए वास्तविक ख़र्च बजट अनुमान से ज्यादा होना ही था। यह संशोधित अनुमान है 82445 करोड़ रुपये, यानी हमने इस साल जितना ख़र्च किया अगले साल स्वास्थ्य पर उससे कहीं कम ख़र्च करने की योजना है। या फिर कोविड वैक्सीन के लिए 35 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान करने के बाद सरकार ने मान लिया है कि कोरोना वायरस अब देश के लिए कोई बड़ी समस्या नहीं रह गई।
यह हाल सिर्फ स्वास्थ्य का ही नहीं है, फूड सब्सिडी बिल को तो संशोधित अनुमान के मुकाबले लगभग आधा ही कर दिया गया है। इसी तरह ग्रामीण विकास के लिए होने वाले ख़र्च का प्रावधान भी संशोधित अनुमान से काफी नीचे चला गया है।
बजट पर देखिए चर्चा-
लेकिन रक्षा के बाद बजट भाषण में एक चीज जिसका जिक्र न होना सबसे ज्यादा खटकता है वह है मनरेगा। यह सच है कि मनरेगा इस सरकार की योजना नहीं थी इसलिए इसके तकरीबन सभी बजट में मनरेगा को अंडरप्ले किया गया।
लेकिन सरकार को यह भी पता था कि इसे खत्म करना राजनैतिक रूप से काफी घातक हो सकता है, इसलिए इसे जारी रहने दिया गया। लेकिन इस साल इसके खास जिक्र की उम्मीद इसलिए थी कि सरकार को मनरेगा पर काफी ख़र्च करना पड़ा था। और फिर वह मनरेगा ही थी जो कोरोनाकाल में शहरों से पलायन करके गांवों की ओर गए मजदूरों का आसरा बनी।
वित्त वर्ष 2019-20 में इस योजना पर ख़र्च हुए थे 71687 करोड़ रुपये। उस बार का संशोधित अनुमान भी इसी के आस-पास था। लेकिन पिछली बार बजटीय प्रावधान घटाकर 61500 करोड़ रुपये कर दिया गया। लेकिन कोरोना के दबाव में इसका दायरा बढ़ाना पड़ा और ख़र्च हुए 111500 करोड़ रुपये, और इसकी वजह से लगभग दस करोड़ लोगों को ग्रामीण इलाकों में आंशिक रोजगार दिया जा सका।
अब अगले साल के लिए यह प्रावधान घटाकर 7300 करोड़ रुपये पर पहुंचा दिया गया है। क्या सरकार यह मान चुकी है कि पूरी अर्थव्यवस्था अब पटरी पर लौट गई है और ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार गारंटी योजना के तहत अतिरिक्त कोशिश करने की जरूरत नहीं है।
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