बेंगलुरू के के आर्चबिशप पीटर मचाडो ने गुरुवार को कहा कि बेंगलुरू के क्लेरेंस हाई स्कूल में बाइबल पढ़ाने को लेकर हुए विवाद से वह थोड़ा आहत हैं। स्कूल पर गैर-ईसाई छात्रों पर बाइबल थोपने का आरोप लगाया गया है। कुछ हिंदू समूहों ने शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिसमें कहा गया था कि स्कूल ने माता-पिता से वचन लिया था कि वे अपने बच्चों के बाइबल ले जाने पर आपत्ति नहीं करेंगे। शिकायत के आधार पर कर्नाटक सरकार ने जांच के आदेश दिए।बिशप ने कहा कि स्कूल पिछले 100 वर्षों से एक ईसाई अल्पसंख्यक संस्थान रहा है। चूंकि यह ईसाई छात्रों के लिए एक ईसाई स्कूल था और अब भी यहां के 75% छात्र ईसाई हैं, इसलिए हमारे यहां बाइबल पढ़ाई जाती थी। लेकिन पिछले साल से स्कूल ने बदलाव किए हैं।
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बिशप ने आगे कहा कि छात्रों को कुछ भी पढ़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाता है। सिर्फ बेंगलुरु के इस स्कूल ने बाइबल पढ़ाने की सिफारिश की है लेकिन सभी ईसाई स्कूलों की छवि इसी तरह बनाने का प्रयास किया गया है। हमें नहीं पता कि सरकार खुद ऐसा कर रही है या कुछ समूह। स्कूल ईसाई ग्रंथों से नैतिक मूल्यों की शिक्षा देता है।
मचाडो ने कहा कि बाइबल थोपने और धर्म परिवर्तन के आरोप झूठे और भ्रामक हैं और अल्पसंख्यक संस्थानों को हिंदू समूहों ने निशाना बनाया है।
कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने बुधवार को कहा था कि अल्पसंख्यक संस्थान होने की आड़ में गलतियों को कोई नहीं छिप सकता। उन्होंने कहा कि राज्य शिक्षा अधिनियम का असर सभी शिक्षण संस्थानों पर पड़ रहा है। अधिनियम के तहत, राज्य यह तय कर सकता है कि क्या पढ़ाया जा सकता है और क्या नहीं, और यह स्पष्ट है कि कोई भी धार्मिक पुस्तक नहीं पढ़ाई जा सकती हैं।
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बिशप ने गुरुवार को मंत्री की बातों का जवाब देते हुए कहा कि नैतिक शिक्षा की कक्षाएं सप्ताह में एक बार होती हैं। हमारे साथ जुड़ने से पहले हर छात्र को सूचित किया जाता है। गैर-ईसाई छात्रों को बाइबल पढ़ने की जरूरत नहीं है। हमारे संस्थान हमेशा से कानून का पालन करने वाले हैं और रहे हैं। हम सरकार के नोटिस का जवाब देंगे।
बिशप ने कहा कि राज्य के शिक्षा विभाग ने इस बात की जांच के आदेश दिए हैं कि हमारे (ईसाई) स्कूलों में बाइबल का इस्तेमाल होता है या धर्म पढ़ाया जाता है। उन्होंने कहा, मुझे बहुत दुख होता है। हम बहादुरी से कह सकते हैं कि हमारे स्कूल में दूसरे धर्म का कोई भी छात्र ईसाई नहीं बना है।
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