सेना में भर्ती के लिए केंद्र सरकार की ओर से लाई गई अग्निपथ योजना के विरोध में वैसे तो देश के अधिकतर हिस्सों में प्रदर्शन हो रहा है, लेकिन कुछ जगहों पर यह हिंसात्मक रूप ले चुका है। कुछ राज्यों में ट्रेनों में आगजनी तो कुछ जगहों पर बसों में तोड़फोड़। कुछ जगहों पर तो सांकेतिक विरोध ही। आख़िर ऐसी प्रतिक्रिया क्यों आ रही है? जिस तरह का शांतिपूर्ण प्रदर्शन कुछ जगहों पर चल रहा है उस तरह का शांतिपूर्ण प्रदर्शन बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर भारत के राज्यों में क्यों नहीं? इन जगहों पर युवा ज़्यादा ग़ुस्से में क्यों हैं?
प्रदर्शन की आक्रामकता में अंतर क्या उन राज्यों में मौजूद हालातों की वजह से है? क्या इसके पीछे युवाओं की ज़्यादा बेरोजगारी वजह है? क्या आक्रामक प्रदर्शन के पीछे सेना में भर्ती होने वालों की संख्या भी वजह है? क्या यह प्रदर्शन उन राज्यों में हो रहा है जहाँ से सबसे ज़्यादा संख्या में युवा सेना में जाते हैं?
इन सवालों के जवाब ढूंढने से पहले यह जान लें कि कहाँ कैसे हालात बने हैं। बिहार से हिंसात्मक आंदोलन की शुरुआत हुई। लगातार तीसरे दिन ट्रेनों में आगजनी, बसों में तोड़फोड़, पुलिस पर पथराव और रास्तों को जाम करने की ख़बरें आईं। बिहार के समस्तीपुर जिले में बिहार संपर्क क्रांति के 10 डिब्बों को आग के हवाले कर दिया गया। समस्तीपुर में विक्रमशिला एक्सप्रेस को नुकसान पहुंचाया गया। इसके 12 डिब्बे जलकर राख हो गए। इसके बाद हिंसात्मक प्रदर्शन यूपी में पहुँच गया।
यूपी के बलिया, मथुरा और वाराणसी में हालात ज्यादा खराब हैं। अलीगढ़ में जट्टारी में पुलिस चौकी फूंक दी गई। अलीगढ़ में पलवल मार्ग पर यूपी रोडवेज की बस जला दी गई।
अग्निपथ योजना को लेकर तेलंगाना के सिकंदराबाद में हुए प्रदर्शन में एक शख्स की मौत हो गई है। शुक्रवार सुबह बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन पर जुटे और अग्निपथ योजना का विरोध किया। पुलिस को भीड़ को काबू करने के लिए गोलियां चलानी पड़ी जिसमें एक शख्स की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए।
बिहार, यूपी, तेलंगाना के अलावा हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और दिल्ली में भी इसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए हैं। प्रदर्शन की वजह से हरियाणा और पंजाब में भी स्थिति ख़राब होती जा रही है। हालाँकि, कुछ राज्यों में इसने वैसा हिंसा का रूप नहीं लिया है।
बेरोजगारी का असर तो नहीं?
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई के अनुसार अप्रैल में बेरोजगारी दर 7.83% हो गई है। यह मार्च में 7.60% थी। अप्रैल में शहरी बेरोजगारी दर बढ़कर 9.22% हो गई, जो पिछले महीने 8.28% थी। हालाँकि ग्रामीण बेरोजगारी दर 7.29% से घटकर 7.18% हो गई। सबसे अधिक 34.5% बेरोजगारी दर हरियाणा में दर्ज की गई। इसके बाद राजस्थान में 28.8% थी।
ये वे राज्य हैं जहाँ से सबसे ज़्यादा सैनिक चुने जाते हैं। पिछले साल मार्च में रक्षा मंत्रालय ने संसद में जानकारी दी थी कि उत्तर प्रदेश से क़रीब 1 लाख 67 हज़ार सैनिक सेना में योगदान करते हैं। वह सबसे ज़्यादा सैनिक भेजने वाले राज्यों की सूची में सबसे ऊपर है। देश का सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में देश की जनसंख्या का 16.5 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि सेना में इसका हिस्सा 14.5 प्रतिशत है।
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार तब रक्षा मंत्रालय ने संसद को बताया था कि महाराष्ट्र से क़रीब 87 हज़ार सैनिक और राजस्थान से क़रीब 79 हज़ार सैनिक हैं। पंजाब से सेना के जवानों की संख्या 89 हजार है। यह सेना के रैंक और फ़ाइल का 7.7 प्रतिशत है। पंजाब का राष्ट्रीय आबादी का हिस्सा 2.3 प्रतिशत है।
मंत्रालय के आँकड़ों से पता चलता है कि हरियाणा से क़रीब 65 हज़ार सैनिक हैं और यह 5.7 प्रतिशत हिस्सा है। जबकि राष्ट्रीय आबादी में हरियाणा का हिस्सा 2.09 प्रतिशत है। जम्मू और कश्मीर, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश के साथ क्रमशः 47 हज़ार और 46 हज़ार सैनिक हैं। पिछले साल आई उस रिपोर्ट के अनुसार सेना में कुल मिलाकर क़रीब 12 लाख 29 हज़ार पद स्वीकृत थे, लेकिन क़रीब 11 लाख 51 हज़ार सैनिकों के पद ही भरे थे।
तो सवाल है कि क्या ऐसा होते हुए सरकार इन राज्यों में युवाओं के ग़ुस्से का अंदाज़ा नहीं लगा पाई? क्या सरकार ने 'अग्निपथ' जैसी योजना लाने के लिए युवाओं को विश्वास में लेने और उन्हें संतुष्ट करने के लिए कुछ नहीं किया? क्या हालात का अंदाज़ा लगाया जाता तो स्थिति काफी अलग होती?
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