भारत बायोटेक की कोवैक्सीन की मंजूरी पर विवाद और बढ़ गया है। जो सवाल कल मंजूरी दिए जाने के बाद उठाए जा रहे थे वही सवाल अब उस वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल करने वालों के बयान से भी उठ रहे हैं। वैज्ञानिक भी यही सवाल उठा रहे हैं और एक वैज्ञानिक ने तो कह दिया कि दुनिया में रूस, चीन के अलावा भारत तीसरा देश है जहाँ की वैक्सीन को मंजूरी दिए जाने की प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं। अब सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि कोवैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल में शामिल रहे विशेषज्ञों के पास ही कोई डेटा नहीं है। कई जगहों पर तीसरे चरण के ट्रायल में पहला डोज ही दिया गया है और दूसरा डोज दिया जा रहा है। यही वजह है कि सवाल उठ रहे हैं कि किस प्रक्रिया के तहत कोवैक्सीन को मंजूरी मिली।
ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया यानी डीसीजीआई ने एक दिन पहले ही रविवार को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की कोविशील्ड के साथ ही भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को 'सीमित इस्तेमाल' की मंजूरी दे दी है।
डीसीजीआई द्वारा इसको मंजूरी दिए जाने के बाद शशि थरूर, आनंद शर्मा, जयराम रमेश जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कोवैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े को लेकर सवाल उठाए थे।
अब विज्ञान से जुड़े लोग ही सवाल उठा रहे हैं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, कोवैक्सीन के पहले और दूसरे चरण के ट्रायल की जगह व तीसरे चरण से जुड़े रेडकर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर गोवा के डॉ. धनंजय लाड आश्चर्यचकित हैं। उन्होंने कहा, 'मुझे आश्चर्य है कि डीसीजीआई ने सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमिटी (एसईसी) की सिफारिश के आधार पर रातोरात निर्णय लिया। आदर्श रूप से डीसीजीआई एसईसी द्वारा सुझाए गए दस्तावेजों की समीक्षा करता है और इसमें कुछ दिन लग सकते हैं।'
कोरोना वैक्सीन के लिए तय विशेषज्ञ पैनल ने सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन को 1 जनवरी और भारत बायोटेक की वैक्सीन को 2 जनवरी को हरी झंडी दे दी थी। लेकिन डीसीजीआई ने एक दिन बाद ही तीन जनवरी को दोनों वैक्सीन को मंजूरी दे दी।
लाड ने यह भी कहा कि बुखार और दर्द जैसे छोटे-मोटे दुष्प्रभाव को छोड़कर वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है। लेकिन उन्होंने कहा कि तीसरे चरण का ट्रायल अभी जारी है और इसका प्रभाव कैसा रहेगा यह आँकड़ों के विश्लेषण के बाद पता चलेगा।
अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय के एक इंवेस्टिगेटर डॉ. मोहम्मद शमीम ने कहा कि, 'सोमवार तक हम सभी प्रतिभागियों की दूसरी खुराक पूरी कर लेंगे। लेकिन हम पहली खुराक के 42-45 दिनों के बाद ही प्रभाविकता का अध्ययन शुरू कर सकते हैं। यानी अब से 15 दिन बाद।' मुंबई के सायन अस्पताल और ग्रांट गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में पिछले हफ़्ते ही तीसरे चरण के लिए दूसरा डोज दिया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, एम्स पटना में डॉ. चंद्रमणि सिंह ने कहा कि उन्होंने 1,177 प्रतिभागियों को पहली खुराक दी है, लेकिन कुछ को ही दूसरी खुराक मिली है। उन्होंने कहा, 'हमें प्रभाविकता का अध्ययन शुरू करने में कुछ सप्ताह लगेंगे।'
इस तरह के उठते सवालों के बीच ही एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया और इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव का बयान आया है।
उन्होंने कहा है कि भारत बायोटेक और आईसीएमआर द्वारा विकसित स्वदेशी वैक्सीन का उपयोग 'बैक-अप' के रूप में किया जाएगा। उनके अनुसार, इसे केवल तभी इस्तेमाल किया जाएगा जब देश को बड़ी संख्या में लोगों को टीका लगाने के लिए अतिरिक्त खुराक की आवश्यकता हो। कोवैक्सीन का उपयोग केवल 'क्लिनिकल ट्रायल मोड' में किया जाएगा जहाँ साइड-इफेक्ट्स की निगरानी की जाएगी।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. गुलेरिया ने कहा, 'यह बैक-अप की तरह है। अगर हमें लगता है कि मामले नहीं बढ़ रहे हैं, तो हम अगले महीने की शुरुआत में भारत बायोटेक का डेटा आने तक सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन का ही इस्तेमाल करेंगे। यदि वह डेटा पर्याप्त रूप से ठीक पाया जाता है तो सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन की तरह ही स्वीकृति मिल जाएगी। परोक्ष रूप से सुरक्षा प्रोफ़ाइल को देखते हुए यह (कोवैक्सीन) एक सुरक्षित टीका है, हालाँकि हम नहीं जानते कि यह कितना प्रभावशाली है।'
आईसीएमआर के प्रमुख डॉ. भार्गव ने कहा है कि जहाँ तक कोवैक्सीन की प्रभाविकता का संबंध है तो छोटे और बड़े जानवरों पर बड़े पैमाने पर अध्ययन किया गया है। उन्होंने कहा कि बंदरों पर भी वैक्सीन की प्रभाविकता देखी गई है। डॉ. भार्गव ने यह भी कहा कि पहले चरण में 375 और दूसरे चरण में 380 लोगों पर ह्यूमन ट्रायल भी किया गया। उन्होंने कहा कि ट्रायल में भाग लेने वाले किसी भी व्यक्ति को कोरोना नहीं हुआ। तीसरे चरण के ट्रायल में शामिल 22500 लोगों में किसी तरह की सुरक्षा चिंता नहीं दिखी है।
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