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मोहन भागवत

भागवत ने दशहरे पर सांस्कृतिक मार्क्सवाद और डीप स्टेट से हिन्दुओं को डराया

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का कहना है कि भारत को जाति और समुदाय के आधार पर विभाजित करने के लिए डीप स्टेट काम कर रहा है। कुछ राजनीतिक दल अपने "स्वार्थ" के लिए इसमें मदद कर रहे हैं। भागवत ने शनिवार को हिंदू समाज से जातिगत मतभेदों को दूर करने का आग्रह किया। उन्होंने बांग्लादेश के हिन्दुओं का हवाला देते हुए भारत के हिन्दुओं को अपनी जाति वगैरह भूलकर एकजुट होने की अपील भी की। भागवत ने नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में अपने वार्षिक विजयादशमी भाषण में कई बातें कहीं।

भागवत ने भारत की विविधता पर हमला करते हुए कहा कि “हमारी विविधता इतनी हो गई है कि हमने अपने संतों और देवताओं को भी विभाजित कर दिया है। वाल्मिकी जयंती केवल वाल्मिकी कॉलोनी में ही क्यों मनाई जानी चाहिए? वाल्मिकी ने संपूर्ण हिंदू समाज के लिए रामायण लिखी। इसलिए सभी को मिलकर वाल्मिकी जयंती और रविदास जयंती मनानी चाहिए। समस्त हिन्दू समाज को सभी त्यौहार मिलजुल कर मनाना चाहिए। हम इस संदेश के साथ समाज के पास जाएंगे।”

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भाजपा ने ऐसा बयान क्यों दिया

भागवत पहले भी कई बार जाति विभाजन को पाटने की बात कह चुके हैं। लेकिन हिंदू एकता के मकसद को प्राप्त करने के लिए हिंदू समाज को क्या करने की जरूरत है, इस पर पहली बार इतना विस्तार से अपनी बात कही है। 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बाद भागवत द्वारा सामाजिक सद्भाव के लिए यह पहला ऐसा विस्तृत तर्क है। यहां बताना जरूरी है कि 2024 के आम चुनाव में भाजपा को 240 सीटें मिलीं और अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई, उसे दूसरे दलों का सहारा लेना पड़ा। उसके बाद यह तर्क दिया गया कि भाजपा की संभावनाओं को नुकसान इसलिए हुआ है क्योंकि दलितों और पिछड़ों के एक वर्ग ने भाजपा को वोट नहीं दिया। दलितों को डर था कि अगर भाजपा की "अबकी बार 400 पार" का नारा सफल हुआ तो वो संविधान बदल देगी और आरक्षण खत्म कर देगी।

सांस्कृतिक मार्क्सवाद पर हमला

भागवत ने कहा- 'डीप स्टेट', 'वोकिज्म', 'कल्चरल मार्क्सिस्ट' जैसे शब्द इन दिनों चर्चा में हैं। वस्तुतः वे सभी सांस्कृतिक परंपराओं के घोषित शत्रु हैं। मूल्यों, परंपराओं और जो कुछ भी सात्विक और शुभ है उसको खत्म करना इस समूह की कार्यप्रणाली का एक हिस्सा है। एक साथ रहने वाले समाज में किसी पहचान आधारित समूह को उसकी वास्तविक या कृत्रिम रूप से निर्मित विशेषता, मांग, आवश्यकता या किसी समस्या के आधार पर अलग होने के लिए प्रेरित किया जाता है। उनमें पीड़ित होने की भावना पैदा हो जाती है।” उन्होंने संकेत दिया कि यह देश का मौजूदा राजनीतिक माहौल है। यानी भागवत यह कह रहे हैं कि हिन्दू समुदाय की विभिन्न जातियों को उनकी समस्या के जरिये उन्हें पीड़ित बताया जाता है, फिर उन्हें हिन्दू समाज और भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है।

भागवत ने कहा- “असंतोष को हवा देकर, उस तत्व को समाज के बाकी हिस्सों से अलग कर दिया जाता है, और व्यवस्था के खिलाफ आक्रामक बना दिया जाता है। समाज में दोष ढूँढ़कर सीधे-सीधे झगड़े पैदा किये जाते हैं। व्यवस्था, कानून, शासन, प्रशासन आदि के प्रति अविश्वास और नफरत को बढ़ाकर अराजकता और भय का माहौल बनाया जाता है। इससे उस देश पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना आसान हो जाता है।” यानी भागवत के इस बयान के हिसाब से देश में जो लोग सरकार के खिलाफ अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, वे इसी श्रेणी में आते हैं। भागवत के हिसाब से बेरोजगारों का आंदोलन भी इसी का हिस्सा है।

कुछ राजनीतिक दलों पर सीधा हमला करते हुए भागवत ने कहा कि सत्ता हासिल करने के लिए पार्टियों के बीच प्रतिस्पर्धा है। उन्होंने कहा- “समाज में क्षुद्र स्वार्थ आपसी सद्भाव या राष्ट्र की एकता और अखंडता से अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। ऐसी पार्टी की राजनीति ' अपने विनाशकारी एजेंडे को आगे बढ़ाना' है। यह वैकल्पिक राजनीति नहीं है।''

बहरहाल, आरएसएस प्रमुख ने कहा कि स्वस्थ और सक्षम समाज के लिए पहली शर्त सामाजिक सद्भाव और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच आपसी सद्भावना है। उन्होंने कहा, ''केवल कुछ प्रतीकात्मक कार्यक्रम आयोजित करने से यह काम पूरा नहीं हो सकता। समाज के सभी वर्गों में व्यक्तियों और परिवारों के बीच मित्रता होनी चाहिए। मैं जहां भी जाता हूं और जहां भी काम करता हूं, हर तरह के लोगों के बीच मेरे दोस्त होने चाहिए। भाषाएं विविध हो सकती हैं, संस्कृतियां विविध हो सकती हैं, भोजन विविध हो सकता है, लेकिन व्यक्तियों और परिवारों की यह दोस्ती समाज में सद्भाव लाएगी।”

इसी तर्क को आगे बढ़ाते हुए भागवत ने कहा कि सार्वजनिक इस्तेमाल और पूजा के स्थानों जैसे मंदिर, पेयजल, श्मशान आदि में समाज के सभी वर्गों की भागीदारी का माहौल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी को समाज के कमजोर वर्गों की जरूरतों को समझना चाहिए। जो उनके सामने आने वाली परिस्थितियों से उत्पन्न होते हैं।

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भागवत ने कहा- “मैं एक बैठक में था जहाँ हमारे वाल्मिकी भाई थे। उन्होंने कहा कि हमारे बच्चों के पास स्कूल नहीं हैं। वहां राजपूत समुदाय के लोग मौजूद थे। वे उठे और बोले आपकी कॉलोनी हमारी कॉलोनी से सटी हुई है और हमारा स्कूल है। हम आपकी कॉलोनी से 20% छात्रों को लेंगे और उन्हें बिना किसी फीस के पढ़ाएंगे। जिस तरह एक परिवार के मजबूत सदस्य कमजोर सदस्यों के लिए अधिक प्रावधान करते हैं, कभी-कभी अपने नुकसान की कीमत पर भी, उसी तरह ऐसी जरूरतों पर एक-दूसरे के प्रति अपनेपन की भावना के साथ विचार किया जाना चाहिए।”

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क़मर वहीद नक़वी
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