नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ एक महीने से ज़्यादा समय से दिल्ली के शाहीन बाग़ में चल रहे आंदोलन की चर्चा दुनिया भर में है। शाहीन बाग़ की ही तर्ज पर दिल्ली में खुरेजी, चांद बाग़ सहित कई जगहों पर महिलाएं धरना दे रही हैं और उनके समर्थन में पुरूष भी सड़क पर हैं। शाहीन बाग़ की महिलाओं को जोरदार समर्थन मिल रहा है और उनके पक्ष में सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक लोग आंदोलन को ताक़त दे रहे हैं। लेकिन बीजेपी की दिल्ली इकाई के कुछ नेताओं और दूसरे दक्षिणपंथी संगठन लगातार शाहीन बाग़ के आंदोलन को निशाना बना रहे हैं। ये लोग कभी ‘शाहीन बाग़ की बिकाऊ औरतें’ हैशटैग ट्विटर पर ट्रेंड कराते हैं तो कभी नागरिकता क़ानून के विरोध में आंदोलन करने वालों को कुत्तों की तरह मार देने की बात करते हैं।
दिल्ली में विधानसभा का चुनाव सिर पर है। बीजेपी ने दिल्ली जीतने के लिए पूरा जोर लगाया हुआ है। बीजेपी नेताओं की कोशिश है कि शाहीन बाग़ के आंदोलन को सिर्फ़ मुसलिम समुदाय का आंदोलन बताया जाए लेकिन जब से सभी धर्मों के लोग शाहीन बाग़ के आंदोलन में आने लगे हैं तो उनके इस ‘दावे’ की हवा निकलने लगी है।
दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने ट्वीट किया है कि शाहीन बाग़ के आंदोलन को 39 दिन हो गए हैं और इस कारण यातायात ठप है और लाखों लोग परेशान हैं। उन्होंने लिखा है कि बच्चे परीक्षा के समय पर भी 2-2 घंटे सड़कों पर बर्बाद कर रहे हैं, ऑफ़िस जाने वाले लोगों को परेशानी हो रही है और व्यापारियों को नुक़सान हो रहा है। उन्होंने ट्वीट में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी को टैग करके पूछा है कि वे बताएं कि क्या यह जायज है।
आम आदमी पार्टी से बीजेपी में आए और दिल्ली चुनाव का टिकट पाने में सफल रहे कपिल मिश्रा ने ट्वीट कर कहा है कि शाहीन बाग़ के बाद अब दिल्ली के चांद बाग में भी मुसलिम भीड़ ने सड़क पर कब्जा कर लिया है। मिश्रा ने लिखा है कि दिल्ली के चांद बाग में हजारों मुसलिम सड़कों पर उतरे हुए हैं और खुलेआम गुंडागर्दी की जा रही है।
आंदोलन से दूर है ‘आप’
दिल्ली में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी (आप) इस आंदोलन से पूरी तरह दूर है। जबकि कांग्रेस ने इस क़ानून के विरोध में दिल्ली से लेकर देश भर में जमकर प्रदर्शन किये हैं। दुनिया भर में गूंज रहे इस आंदोलन को लेकर ‘आप’ पूरी तरह निष्क्रिय दिखाई देती है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों के प्रदर्शन के हिंसक होने के बाद ‘आप’ के स्थानीय विधायक अमानतुल्ला ख़ान पर लोगों को भड़काने का आरोप लगा था लेकिन उसके बाद से शाहीन बाग़ के आंदोलन में अमानतुल्ला ख़ान नहीं दिखाई दिये।
बीजेपी के जाल में ‘फंसने’ का डर
सवाल यह है कि ‘आप’ इस आंदोलन पर चुप क्यों है जबकि संसद में उसने इस क़ानून के विरोध में मतदान किया है। इस क़ानून के बारे में पूछने पर ‘आप’ के नेता अर्थव्यवस्था और रोज़गार के मुद्दे की ओर मुड़ जाते हैं। शायद ‘आप’ को यह बात पता है कि अगर उसने कोई बयान दिया तो बीजेपी इसे लपक कर उसका सियासी इस्तेमाल कर सकती है और दिल्ली चुनाव में पार्टी को इसका नुक़सान हो सकता है। ‘आप’ जानती है कि ऐसा करने से वह बीजेपी के जाल में फंस सकती है, इसलिए शायद वह इस पर चुप है।
सर्जिकल स्ट्राइक पर फंस चुकी है ‘आप’
‘आप’ ऐसा करके एक बार फंस चुकी है जब केजरीवाल ने 2016 में एक वीडियो जारी कर कहा था कि पाकिस्तान भारत द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग रहा है तो मोदी सरकार को उसे सबूत दे देने चाहिए। इसे बीजेपी के नेता आज तक मुद्दा बना रहे हैं। इसे ‘आप’ की बड़ी ग़लती माना गया था और विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद हुए निगम चुनाव में उसे बड़ी हार मिली थी। इसलिए ‘आप’ और केजरीवाल ने चुनाव में अपने काम को मुद्दा बनाया हुआ है और वह विवादास्पद मुद्दों पर मुंह नहीं खोलने को तैयार नहीं है।
मोदी सरकार के पहले और दूसरे कार्यकाल में बीजेपी और संघ परिवार के लोग इस बात को समाज के एक हिस्से के जेहन में पहुंचाने में सफल रहे हैं कि मुसलिम और वामपंथी हिंदुत्व के ख़िलाफ़ हैं और वे पश्चिमी सभ्यता को मानने वाले हैं। वे इस बात को भी लोगों के जेहन में पहुंचाने में सफल रहे हैं कि ये लोग रहते भारत में हैं लेकिन पाकिस्तान की भाषा बोलते हैं और अफज़ल गुरू जैसे आंतकवादियों का समर्थन करते हैं।
मुसलिमों का आंदोलन बताने में जुटे
जब दुनिया भर के लोग शाहीन बाग़ के आंदोलन को गाँधी द्वारा देश की आज़ादी के लिये चलाये गये सत्याग्रह के रूप में देख रहे हैं तो बीजेपी, संघ परिवार इसे मुसलिमों का आंदोलन बताने में जुटे हैं और बीजेपी के प्रवक्ता इस बात को खुलकर कहते भी हैं। उन्होंने इस दौरान ‘इंतिफादा’ और ‘जिन्ना वाली आज़ादी’ जैसी बातें उछाली हैं और मुंबई में इस क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान एक महिला के द्वारा हाथ में लिये गये ‘फ़्री कश्मीर’ के पोस्टर को भी मुद्दा बनाया है। बीजेपी और संघ परिवार का कहना है कि इस आंदोलन को हिंदुओं का समर्थन नहीं मिला है और यह पूरी तरह इस्लामिक रैडिकलाइजेशन का सबूत है।
मुसलिम मतदाता मजबूत स्थिति में
दिल्ली में मुसलिम मतदाता मजबूत स्थिति में हैं। दिल्ली की 15 सीटें ऐसी हैं, जहां वे हार-जीत तय करने की क्षमता रखते हैं। ‘आप’ को पता है कि कांग्रेस अब इतनी मजबूत स्थिति में नहीं है कि मुसलिम मतदाता उसकी ओर रुख करेंगे और वह यह बता रही है कि संसद के दोनों सदनों में उसने इस क़ानून का विरोध किया है। लेकिन कोई छोटा सा भी बयान उसके लिए मुसीबत बन सकता है और राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को अपने एजेंडे में शीर्ष पर रखने वाले बीजेपी और संघ परिवार उसे घेर सकते हैं। इसलिए वह इस पर ख़ामोश है और उसका पूरा ध्यान दिल्ली का चुनाव जीतने पर है।
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