ऐसे समय जब पेगासस सॉफ़्टवेअर के ज़रिए ग़ैरक़ानूनी जासूसी का मामला छाया हुआ है, एक सुनियोजित साजिश के तहत यह भ्रम फैलाने की कोशिश की गई कि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जासूसी से इनकार किया है।
यह अफवाह फैलाई गई कि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पेगासस सॉफ़्टवेअर से संक्रमित फोन की जाँच कराने और उसमें अपनी किसी भूमिका से इनकार किया है।
एक वेबसाइट पर इज़रायली वेबसाइट (Calclist) के हवाले से कहा गया कि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एनएसओ पेगासस स्पाइवेअर सूची से इनकार किया है।
इसके साथ ही एक पत्रकार किम जेटर के हवाले से कहा गया कि एमनेस्टी ने इस सूची से इनकार किया है।
इसी तरह सोशल मीडिया पर भी कुछ लोगों ने दावा किया कि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने यू-टर्न ले लिया है।
क्या कहना है एमनेस्टी का?
पर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इससे इनकार किया है। उसने कहा है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल इज़रायल ने हिब्रू भाषा में जो बयान जारी किया है, उसका ग़लत अनुवाद पेश किया गया है, जानबूझ कर उसकी ग़लत व्याख्या की गई है।
एमनेस्टी इंटरनेशल ने कहा है कि वह अपने पहले के बयान पर कायम है।
Laughable 'snooping' story was spun around an 'indicative' list manufactured by Amnesty Int.
— Kanchan Gupta 🇮🇳 (@KanchanGupta) July 22, 2021
"Amnesty has never presented this list as NSO's Pegasus Spyware List...Amnesty makes clear this is a list *indicative* of the interests of (Pegasus) clients." 1n
See @KimZetter thread: https://t.co/drQwQKMO4U pic.twitter.com/u8KvdESDsP
उसने एक बयान जारी कर कहा है, "एमनेस्टी इंटरनेशनल पेगासस प्रोजेक्ट के नतीजों पर कायम है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि ये आँकड़े एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाइवेअर के संभावित टारगेट से जुड़े हुए हैं।"
इस मानवाधिकार संस्था ने इसके आगे कहा है,
जैसा कि हमने पेगासस प्रोजेक्ट से पता लगाया है, ग़ैरक़ानूनी जासूसी से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए सोशल मीडिया पर झूठी अफवाह फैलाई गई है।
'द वायर' ने एमनेस्टी इंटरनेशल इज़रायल के प्रवक्ता गिल नावेह से बात की है। नावेह ने साफ कहा है कि हिब्रू बयान को अंग्रेजी में ग़लत ढंग से पेश किया गया है।
नावेह ने कहा कि सूची में जो नाम हैं, पेगासस के ग्राहकों ने उनमें दिलचस्पी दिखाई है। इस सूची में पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने, राजनेताओं और वकीलों के नाम हैं।
क्या है पेगासस प्रोजेक्ट?
फ्रांस की ग़ैरसरकारी संस्था 'फ़ोरबिडेन स्टोरीज़' और 'एमनेस्टी इंटरनेशनल' ने लीक हुए दस्तावेज़ का पता लगाया और 'द वायर' और 15 दूसरी समाचार संस्थाओं के साथ साझा किया।
इसका नाम रखा गया पेगासस प्रोजेक्ट। 'द गार्जियन', 'वाशिंगटन पोस्ट', 'ला मोंद' ने 10 देशों के 1,571 टेलीफ़ोन नंबरों के मालिकों का पता लगाया और उनकी छानबीन की। उसमें से कुछ की फ़ोरेंसिक जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनके साथ पेगासस स्पाइवेअर का इस्तेमाल किया गया था।
प्रोटोकॉल का हवाला
सरकार ने पेगासस प्रोजेक्ट पर कहा है, "सरकारी एजंसियाँ किसी को इंटरसेप्ट करने के लिए तयशुदा प्रोटोकॉल का पालन करती हैं। इसके तहत पहले ही संबंधित अधिकारी से अनुमति लेनी होती है, पूरी प्रक्रिया की निगरानी रखी जाती है और यह सिर्फ राष्ट्र हित में किया जाता है।"
सरकार ने ज़ोर देकर कहा कि इसने किसी तरह का अनधिकृत इंटरसेप्शन नहीं किया है।
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि पेगासस स्पाइवेअर हैकिंग करता है और सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून 2000 के अनुसार, हैकिंग अनधिकृत इंटरसेप्शन की श्रेणी में ही आएगा।
सरकार ने अपने जवाब में यह भी कहा है कि ये बातें बेबुनियाद हैं और निष्कर्ष पहले से ही निकाल लिए गए हैं।
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