एक समय था जब भारत के गाँवों में लोग अपने रेडियो और ट्रांज़िस्टर में शॉर्ट वेब का वह बिंदु खोजते थे जिसपर सुई टिक जाए और वे बीबीसी सुन सकें। अपने मुल्क की ख़बर जानने के लिए एक विदेशी समाचार संस्था को सुनना किसी को अपमानजनक नहीं लगता था। क्योंकि उस वक़्त लोगों की दिलचस्पी यह जानने में थी कि उनकी सरकार उनके साथ क्या कर रही है। वह ख़बर आकाशवाणी या ऑल  इंडिया रेडियो से उन्हें नहीं मिलेगी, यह वे जानते थे। उन्हें अपने-अपने समाज के भले की फिक्र थी इसलिए वे सच जानना चाहते थे। वे सरकार द्वारा अधिकृत किसी भी सूचना को संदेहपूर्वक ही ग्रहण करते थे। अपनी सरकार पर स्वस्थ संदेह करना और उसके दावों की दूसरे स्रोतों से जाँच करवाना अपनी सेहत के लिए अच्छा है, यह उन्हें मालूम था। हम अपनी इस पिछली पीढ़ी के मुक़ाबले कहाँ खड़े हैं?