आरएसएस ने राम मंदिर मामले पर पैर पीछे खींचने शुरू कर दिए हैं। पाँच राज्यों में बीजेपी की हार के बाद संघ परिवार ने पाया कि मंदिर मुद्दे से वोट नहीं मिल रहे हैं। 2018 के आख़िरी दिन तक और शीतकालीन संसद सत्र के आख़िरी दिन यानी 5 जनवरी तक राम मंदिर संबंधी कोई बिल प्रस्तावित नहीं है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठतम नेताओं में से एक इंद्रेश कुमार ने हरियाणा भवन में आयोजित प्रेस कॉन्फ़्रेंस में क़बूल किया, ‘टाइम टेबल बाद में जस्टिस पहले’। यानी संघ अब कोर्ट के फ़ैसले तक इंतज़ार करेगा।
वे इस सवाल को टालते रहे कि आख़िर राम मंदिर कब और कैसे बनेगा। इस पर 5 राज्यों के चुनावों के दौरान तो संघ, विश्व हिंदू परिषद और तमाम साधु-संत संगठन आसमान सिर पर उठाए हुए थे लेकिन मतदान होते ही मतों की तरह राम मंदिर मुद्दा भी बक्से में बंद हो गया है!
ग़ौरतलब है कि विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने छह अक्तूबर को दिल्ली में प्रायोजित प्रेस कॉन्फ़्रेंस में सीना ठोककर कहा था, ‘संतों का धैर्य समाप्त हो रहा है, अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए यह अंतिम लड़ाई है। सरकार इस साल के आख़िर तक अध्यादेश लाकर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे।’
सुब्रमण्यन स्वामी तो अक्तूबर 2018 से ही मंदिर निर्माण शुरू करवा रहे थे। वे भी वायदे समेत ग़ायब हैं। वे सुप्रीम कोर्ट से फ़ैसला ला रहे थे।
राज्यसभा के लिए इसी वर्ष संघ कोटे से चुने गए टीवी के जाने-माने चेहरे राकेश सिन्हा ने घोषणा की थी कि वे राम मंदिर निर्माण के लिए प्राइवेट मेंबर बिल इसी शीतकालीन सत्र में पेश करेंगे पर वे भी ग़ायब हो गए हैं।
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने संघ के प्रमुख नेताओं को साफ़-साफ़ बता दिया है कि पाँच राज्यों के चुनाव के वक़्त उनके राम मंदिर पर ढोल पीटने से मध्यम वर्ग के उनके समर्थक भी पार्टी की जगह नोटा पर जा पहुँचे या कांग्रेस को वोट दे आए। उन्होंने कहा कि लोगों में धारणा बनी कि सरकार की उपलब्धियों की अनुपस्थिति में राम मंदिर को आगे किया गया है जो चुनावों में भारी पड़ा।
अमित शाह के कड़े विरोध के प्रभाव चलते ही आज इंद्रेश कुमार राम मंदिर के बारे में पूछे गए हर सवाल को टालते दिखे। वे मुद्दा बदलने को आतुर थे। अब वे देश में आंतरिक सुरक्षा का सवाल खड़ा करना चाहते हैं जिसके लिए इसी 27 दिसंबर को आंबेडकर भवन में एक सेमिनार आयोजित किया गया है।
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