पूरे देश में एनआरसी लागू करने की बात कहकर दहाड़ने वाले गृह मंत्री अमित शाह अब नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर यानी एनपीआर पर क्यों झुक गए हैं? आख़िर संसद में उन्हें क्यों यह कहना पड़ा कि एनपीआर के लिए न तो किसी को कोई काग़ज़ दिखाने की ज़रूरत होगी और न ही किसी को संदिग्ध (डाउटफ़ुल या 'डी') श्रेणी में रखा जाएगा? क्या सरकार पर आम लोगों का दबाव है? क्या बीजेपी के ही सहयोगी दलों के विरोध का नतीजा है या इस मामले में मोदी-शाह की जोड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते दबाव को झेल नहीं पा रही है?