एक नये और बेहद ख़तरनाक अमरीकी कीड़े की भारत में घुसपैठ से भारतीय कृषि विज्ञानी काफ़ी चिन्तित हैं। इस कीड़े का नाम है फ़ॉल आर्मीवर्म या 'फ़ॉ' (FAW)। छह महीने पहले यानी इसी साल मई में इसे सबसे पहले कर्नाटक में देखा गया। लेकिन अब पता चला है कि यह आन्ध्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल से लेकर महाराष्ट्र तक फैल चुका है।

वैसे तो यह कीट क़रीब 186 वनस्पति प्रजातियों को अपना निशाना बनाता है, लेकिन मक्का और ज्वार इसे ख़ासतौर पर पसन्द है। मक्के की फ़सल को तो वह बड़े पैमाने पर नुक़सान पहुँचाता है। सोयाबीन पर भी यह लगता है। लेकिन महाराष्ट्र में तो इसका हमला गन्ने पर भी देखा गया। हालाँकि ब्राज़ील की प्रयोगशालाओं के अध्ययन में यह पाया गया था कि गन्ना इस कीट के लिए ज़्यादा अच्छा भोजन नहीं है, फिर भी मजबूरी में वे उसे खा लेते हैं।

अफ़्रीका को 5 अरब डॉलर का नुक़सान

यह कीट मूल रूप से अमरीका का है और इसे अमरीका से  बाहर पहली बार 2016 में अफ़्रीका में देखा गया। 'सेंटर फ़ार ऐग्रिकल्चर ऐंड बायोसाइन्सेज़ इंटरनैशनल' यानी कैबी (CABI) के विज्ञानियों ने पिछले महीने ही यह अनुमान लगाया था कि मक्का उगाने वाले दस बड़े अफ़्रीकी देशों में इस कीड़े ने हर साल क़रीब 2-5 अरब डॉलर तक की फ़सल चट कर ली होगी। यानी कह सकते हैं कि क़रीब 300-400 अरब रुपये के बराबर की फ़सल अफ़्रीका में हर साल नष्ट हो गई होगी। 

विज्ञानियों का कहना है कि अफ़्रीका के बाद अब इसके एशिया में फैलने की आशंका है। इस कीड़े को पूरी तरह नष्ट करने का कोई उपाय अभी तक नहीं खोजा जा सका है, इसलिए सावधानी, बचाव और इस कीड़े के प्रकृतिक शत्रु कीटों या वनस्पतियों के द्वारा ही इसके फैलने और नुक़सान को सीमित करने की सलाह कृषि विज्ञानी देते हैं। 

भारतीय किसानों के लिए फॉल आर्मीवर्म का फैलना बड़ी चिन्ता की बात है क्योंकि आम तौर पर मक्के की खेती अधिक वर्षा वाले इलाक़ों के छोटे किसान ही करते हैं। ज्वार की खेती भी ज़्यादातर छोटे किसान ही करते हैं।