फिलवक़्त बहरे कानों पर दस्तक देकर दिल्ली से किसान वापस खेतों की ओर लौट गये पर वे फिर आएँगे क्योंकि उनके दिल्ली आने की वजह ज्यों-की-त्यों है।
क्या दुबारा दिल्ली आने के लिए लौटे हैं किसान?
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- 1 Dec, 2018
देश भर से दिल्ली आए हज़ारों किसान फिलवक़्त बहरे कानों पर दस्तक देकर वापस खेतों की ओर लौट गए। हालाँकि उनके दिल्ली आने की वज़ह ज्यों-की-त्यों है। तो क्या वे फिर आएँगे?

ज्ञात और स्वीकृत इतिहास के अनुसार सिंधु घाटी की सभ्यता के समय और उसके पूर्व से दुनिया के इस भूभाग में, जो अब अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान-भारत और बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है, खेती होती रही है।
आज के भौगोलिक बँटवारे के नज़रिये से देखें तो भारत में दुनिया के सबसे बड़े भूभाग में खेती होती है। भले ही देश की जीडीपी का यह क़रीब 15 % है पर क़रीब 31% मज़दूरों और 60 % से ज्यादा आबादी का बोझ भारत में खेती ही ढोती है।
खेती के उत्पादों के निर्यात में हम लगातार विकास कर रहे हैं। पर बीते तीन दशकों में हमारे यहाँ उतने किसान सल्फ़ास खाकर, फाँसी लगाकर या अन्य किसी तरीक़े से काल के गाल में समा गए जितने वयस्क इराक़, लीबिया, सीरिया में संयुक्त रूप से युद्ध/गृहयुद्ध में बीते कुछ सालों में मारे गए हैं।
मोदीजी के प्रधानमंत्री बनने के बाद किसान छिटपुट तौर पर और संगठित रूप से भी उनके वादों के लगातार झूठे पाए जाने के ख़िलाफ़ लाठी-गोली तक खाने सामने आए हैं। मंदसौर में गोली खाने से लेकर नाशिक से मुंबई तक तपती गर्मी में हज़ारों किसानों ने पैदल मार्च निकालकर देश के मध्य-वर्ग के मानवीय हिस्से को अपनी तकलीफ़ के पक्ष में आकृष्ट किया है। इसी वज़ह से इस बार के दिल्ली मार्च को न चाहते हुए भी राष्ट्रीय मीडिया को दर्ज़ करना पड़ा, विश्लेषण करने के प्रयास हुए और सोशल मीडिया ने तो उसे हाथों हाथ लिया।