इतिहासकार रोमिला थापर को प्रोफ़ेसर एमिरेटस पद पर बनाए रखने के लिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय पर दबाव पड़ना शुरू हो गया है। इतिहासकारों के सबसे बड़े संगठन अमेरिकन हिस्टॉरिकल एसोशिएसन ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से कहा है कि वह इतिहासकार रोमिला थापर के प्रोफ़ेसर एमिरेटस पद पर रखे जाने के मामले में पुनर्विचार न करे। इसका मतलब यह है कि रोमिला थापर को इस पद पर बने रहने देने का आग्रह किया है।
एसोशिएसन के अध्यक्ष जॉन मैक्नील ने जेएनयू के उपकुलपति को चिट्ठी लिख कर थापर के योगदान और उनकी उपलब्धियाों की याद दिलाई है। चिट्ठी में कहा गया है कि रोमिला थापर 'भारत की सबसे प्रतिष्ठित इतिहासकार' हैं और इसे देखते हुए ही उन्हें एसोशिएसन ने 2009 में मानद विदेशी सदस्य बनाया था।
बता दें, जेएनयू ने रोमिला थापर से कहा कि वह अपनी
सीवी फिर से विश्वविद्यालय को भेजें ताकि प्रोफ़ेसर एमिरेटस पद पर उनके बने रहने पर पुनर्विचार किया जा सके। थापर ने सीवी नहीं भेजी थी और कहा था कि उनकी सीवी ख़ुद विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर मौजूद है।
क्या होता है प्रोफ़ेसर एमिरेटस?
दरअसल प्रोफ़ेसर एमिरेटस का पद मानद होता है, जिसमें न कोई वेतन या भत्ता मिलता न ही नियमित पढ़ाना होता है। यह सिर्फ़ सम्मान के लिए होता है। इसके साथ ही विश्वविद्यालय में इस पद की कोई निश्चित संख्या या सीट नहीं होती है कि एक को हटा कर दूसरे को मौका दिया जाए। विश्वविद्यालय किसी भी तादाद में इस पद पर लोगों को नियुक्त कर सकता है। जेएनयू के इस कदम के बाद देश भर में इसका विरोध शुरू हुआ। अर्थशास्त्री
प्रभात पटनायक ने एक लेख लिख कर जेएनयू प्रशासन को याद दिलाया कि प्रोफ़ेसर एमिरेटस का पद जीवन भर के लिए होता है। एक बार इस पद पर चुने जाने के बाद लोग मृत्यु पर्यंत बने रहते हैं, इस पद से किसी को हटाया नहीं जाता है। जेएनयू टीचर्स एसोशिएसन ने विश्वविद्यालय से कहा कि वह रोमिला थापर से माफ़ी माँगे। उसने यह भी कहा कि यह फ़ैसला राजनीतिक कारणों से किया गया है और
जो लोग सरकार की आलोचना कर रहे हैं, उन्हें परेशान किया जा रहा है।
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