अडानी समूह की कंपनियों के ख़िलाफ़ अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग समूह द्वारा लगाए गए आरोपों की जाँच एसआईटी से नहीं की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि इसके लिए कोई वैध आधार नहीं बनाया गया है। इसके साथ ही इसने साफ़ कर दिया कि आरोपों की जांच भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानी सेबी करेगी। सेबी ने अडानी समूह के खिलाफ लगाए गए आरोपों के संबंध में 22 मामलों में से 20 में जांच पूरी कर ली है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि अन्य दो लंबित मामलों की जांच तीन माह में पूरी कर ली जाए। एक समय पूरे देश की राजनीति को हिलाकर रख देने वाले इस मामले में अदालत के फ़ैसले को अडानी समूह के लिए राहत के तौर पर देखा जा रहा है। इस पर पूरे देश की नज़र थी।
सवाल है कि आख़िर यह इतना बड़ा मामला कैसे था कि पूरे देश की राजनीति को इसने प्रभावित किया? इस सवाल के जवाब से पहले यह जान लें कि यह पूरा मामला क्या था।
पिछले साल आई थी 'विस्फोटक रिपोर्ट'
पिछले साल 24 जनवरी की एक रिपोर्ट में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी ग्रुप पर स्टॉक में हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी का आरोप लगाया। रिपोर्ट में कहा गया कि उसने अपनी रिसर्च में अडानी समूह के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों सहित दर्जनों व्यक्तियों से बात की, हजारों दस्तावेजों की जांच की और इसकी जांच के लिए लगभग आधा दर्जन देशों में जाकर साइट का दौरा किया।
हिंडनबर्ग अमेरिका आधारित निवेश रिसर्च फर्म है जो एक्टिविस्ट शॉर्ट-सेलिंग में एकस्पर्ट है। रिसर्च फर्म ने कहा कि उसकी दो साल की जांच में पता चला है कि “अडानी समूह दशकों से 17.8 ट्रिलियन (218 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के स्टॉक के हेरफेर और अकाउंटिंग की धोखाधड़ी में शामिल था।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में कैरेबियाई देशों, मॉरीशस और संयुक्त अरब अमीरात तक फैले टैक्स हैवन देशों में अडानी परिवार के नियंत्रण वाली मुखौटा कंपनियों का कथित नेक्सस बताया गया है।
इसके बारे में दावा किया गया कि इनका इस्तेमाल भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और करदाताओं की चोरी को सुविधाजनक बनाने के लिए किया गया। जबकि धन की हेराफेरी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों से की गई थी। हालाँकि अडानी समूह ने इन आरोपों का खंडन किया है।
हिंडनबर्ग रिसर्च के इस आरोप पर अडानी समूह ने कहा था कि दुर्भावनापूर्ण, निराधार, एकतरफा और उनके शेयर बिक्री को बर्बाद करने के इरादे ऐसा आरोप लगाया गया। इसने कहा था कि अडानी समूह आईपीओ की तरह ही फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफ़र यानी एफ़पीओ ला रहा था और इस वजह से एक साज़िश के तहत कंपनी को बदनाम किया गया। यह रिपोर्ट अडानी समूह के प्रमुख अडानी एंटरप्राइजेज की 20,000 करोड़ रुपये की फॉलो-ऑन शेयर बिक्री से पहले आई थी। समूह ने फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर यानी एफपीओ को बाद में वापस ले लिया था।
हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद से अडानी कंपनियों के शेयरों की क़ीमतें धड़ाम गिरी हैं। एक समय तो अडानी की कंपनियों के शेयर के भाव तो आधे से भी कम हो गए थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया और जाँच आगे बढ़ती गई कंपनियों के शेयरों की स्थिति ठीक होती गयी।
पिछले साल मई महीने में अडानी समूह के आरोपों की जाँच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक विशेषज्ञ समिति ने कहा था कि यह निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है कि स्टॉक मूल्य हेरफेर के आरोपों पर नियामक विफल रहा है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पैनल ने प्रथम दृष्टया कोई गड़बड़ी नहीं पाई और एक तरह से 'क्लीन चिट' देते हुए कहा था कि अडानी समूह द्वारा कोई उल्लंघन नहीं किया गया है और यह निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है कि बाजार नियामक सेबी की ओर से कोई नियामक विफलता थी।
हिंडनबर्ग के आरोपों की जाँच कर रहे विशेषज्ञों के पैनल ने कहा था कि पहली नज़र में ऐसा लगता है कि अडानी समूह की ओर से कीमतों में कोई हेरफेर नहीं किया गया है।
इस बीच द गार्जियन और तमाम विश्वसनीय मीडिया आउटलेट ने रिपोर्ट प्रकाशित की जिनमें आरोप लगाया गया कि अडानी समूह ने गंभीर वित्तीय धोखाधड़ी करते हुए अपना पैसा गुप्त रूप से अपने ही शेयरों में लगाया। यह रिपोर्ट नए दस्तावेजों के हवाले से आई थी। भारत के प्रमुख उद्योग समूह अडानी ने द गार्जियन और कुछ अन्य विदेशी मीडिया आउटलेट के उन आरोपों का खंडन किया, जिसमें उस पर घोटाले के आरोप लगाए गए।
बहरहाल, इस मुद्दे को कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने जमकर उठाया। राहुल गांधी तो गौतम अडानी और प्रधानमंत्री मोदी के संबंधों को लेकर खूब हमलावर रहे। अडानी समूह से जुड़ी कई रिपोर्टों को टीएमसी सांसद रहीं महुआ मोइत्रा ने उजागर किया और बढ़चढ़ कर संसद में भी उठाया। इस दौरान मोदी 'सरनेम' विवाद मामले में दो साल से ज़्यादा सजा होने पर राहुल गांधी की सांसदी भी चली गई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसला पलटने के बाद उनकी सांसदी बहाल की जा सकी। संसद में सवाल पूछने के बदले कथित पैसे लेने के मामले में महुआ मोइत्रा की भी सांसदी चली गई। पूरे एक साल से अडानी-हिंडनबर्ग का यह मुद्दा कमोबेश बना हुआ है। लेकिन लोकसभा चुनाव से ऐन पहले अडानी समूह को अब बड़ी राहत मिली है!
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