सरकार ने निजी क्षेत्र को देने के लिए जितने कोरोना टीके सुरक्षित रखे, उसमें से आधा टीके सिर्फ 9 कॉरपोरेट अस्पतालों ने ले लिए, जिनके अस्पताल बड़े शहरों में हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि मझोले व छोटे शहरों के निजी अस्पतालों को कोरोना वैक्सीन नहीं मिले और इस तरह इन शहरों के लोगों को निजी अस्पतालों में टीका नहीं दिया जा सका।
यह केंद्र सरकार की कोरोना टीका नीति की नाकामी उजागर करता है क्योंकि इससे यह साफ हो गया कि कोरोना टीके का समान व न्यायोचित वितरण नहीं हुआ।
बता दें कि केंद्र सरकार ने यह तय किया था कि कंपनियाँ जितने कोरोना टीके बनाएगी, उसका आधा केंद्र सरकार लेगी, आधे में आधा राज्य सरकारों को मिलेगा और आधा निजी क्षेत्र के लिए होगा।
60.57 लाख खुराक़ें नौ अस्पतालों को
'इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, यह फ़ॉर्मूले तय होने के बाद के पहले महीने में 1.20 करोड़ खुराकें निजी क्षेत्र के लिए सुरक्षित रखी गईं। इनमें से 60.57 लाख खुराक़ें नौ कॉरपोरेट अस्पताल कंपनियों को मिल गए। इन कंपनियों के कुल मिला कर 300 अस्पताल हैं और ये सभी अस्पताल महानगरों व बड़े शहरों में स्थित हैं।
- इस फ़ार्मूले के तहत 1 मई से 31 मई के बीच अपोलो हॉस्पिटल को 16.14 लाख खुराक़ें और मैक्स हेल्थकेअर को 12.97 लाख खुराकें मिलीं।
- इसके अलावा एच. एन. रिलायंस को 9.89 लाख, मेडिका हॉस्पिटल को 6.26 लाख, फ़ोर्टिस हॉस्पिटल को 4.48 लाख, गोदरेज मेमोरियल हॉस्पिटल को 3.35 लाख खुराक़ें दी गईं।
- इसी तरह मणिपाल हेल्थ को 3.24 लाख, टेक्नो इंडिया को 2.26 लाख और नारायण हृदयालय को 2.02 लाख कोरोना टीके की खुराक़ें दी गईं।
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मुनाफ़े के लिए?
इसमें सीरम इंस्टीच्यूट का कोविशील्ड और भारत बायोटेक का कौवैक्सीन दोनों ही टीके शामिल हैं। सीरम इंस्टीच्यूट ने कोविशील्ड की प्रति खुराक 600 रुपए और भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन की प्रति खुराक़ के लिए 1,200 रुपए लिए।
लेकिन इन कॉरपोरेट अस्पतालों ने लोगों से इससे भी ऊपर की कीमतें वसूलीं और मुनाफ़ा कमाया। कोविशील्ड के लिए प्रति खुराक 850-1,000 रुपए तो कोवैक्सीन के लिए प्रति खुराक 1,250 रुपए टीका लगवाने वालों से लिए गए।
यह भी देखा गया है कि इन कॉरोपोरेट अस्पतालों ने मझोले व छोटे शहरों में ये टीके नहीं दिए हैं, उनका पूरा ध्यान बड़े शहरों पर ही रहा है। दिल्ली राजधानी क्षेत्र, मुंबई महानगर क्षेत्र, कोलकाता, बेंगलुरु और हैदराबाद के अस्पातलों में ही ये टीके सिमट कर रह गए।
दूसरी ओर छोटे शहरों के अस्पतालों को बहुत ही कम टीके मिले, जो उनकी ज़रूरतों से बहुत ही कम थे। उदाहरण के लिए, कर्नाटक के शिमोगा की जनसंख्या 3.22 लाख है, पर यहां स्थित सरजी अस्पताल को सिर्फ 6 हज़ार टीके ही मिले। इसी तरह, जलगाँल के विश्व प्रभा अस्पताल को सिर्फ 5,120 खुराकें दी गईं।
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लाइनों में लगे हैं लोग
दूसरी ओर, महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने पत्रकारों से कहा कि सरकार ने फ़ैसला लिया था कि वह 18-44 साल के लोगों के मिले टीकों को उन लोगों को लगाएगी जो 45 साल से ऊपर के थे और ऐसे में 18-44 साल के लोगों का टीकाकरण कुछ वक़्त के लिए रोकना होगा।
हालात यह थाकि राज्य सरकारों के पास टीके नहीं हैं और दूसरी ओर, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन कह रहे थे कि दुनिया का सबसे तेज़ टीकाकरण अभियान भारत में चल रहा है।
वैक्सीन को लेकर ऐसे ही हालात राजस्थान, पंजाब और कुछ अन्य राज्यों के भी हैं। राजस्थान से ख़बर है कि वहां पर कई सेंटरों पर वैक्सीन ख़त्म हो गई है और लोग कई सेंटर्स पर दौड़ लगा रहे हैं। वैक्सीन लगाने के लिए सुबह से लाइनों में खड़े लोग कहते हैं कि दूसरी डोज छह हफ़्ते के अंदर लग जानी चाहिए और यह वक़्त निकलता जा रहा है।
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