प्रदेश में कांग्रेस अब कई गुटों में बँटी नज़र आ रही है। चुनावी सभाओं में वीरभद्र सिंह के आग उगलते तेवर कांग्रेस के लिये मुसीबत बनते जा रहे हैं। पता ही नहीं चल पा रहा है कि वीरभद्र सिंह कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं या विरोध।
आश्रय को टिकट मिलने से हैं नाराज
दरअसल, जिस तरीक़े से पिछले दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम ने बीजेपी छोड़ कांग्रेस का दामन थामा और अपने पोते आश्रय शर्मा के लिये मंडी से टिकट झटका, वह वीरभद्र सिंह को क़तई रास नहीं आया है। हालाँकि सुखराम की ओर से वीरभद्र सिंह को मनाने की कोशिशें भी हुईं।
लेकिन वीरभद्र सिंह जब मंडी में कांग्रेस प्रत्याशी आश्रय शर्मा के चुनाव प्रचार में गये तो उन्होंने चुनावी सभाओं में सुखराम यानी आश्रय के दादा, को ही निशाने पर ले लिया। वीरभद्र सिंह ने एक चुनावी सभा में कहा कि वह सुखराम को कभी माफ़ नहीं करेंगे क्योंकि उन्होंने हमेशा पार्टी को धोखा दिया है। वीरभद्र सिंह का यह बयान सुखराम की ओर से माफ़ी माँगने के बाद आया जिसे सुनकर सभी दंग रह गये। हैरानी की बात यह है कि वीरभद्र सिंह पोते के समर्थन में आयोजित सभाओं में दादा का विरोध कर रहे हैं।
मंडी में वीरभद्र सिंह का भी प्रभाव रहा है। जानकारों का मानना है कि वीरभद्र एक तरह से मंडी से कांग्रेस प्रत्याशी के ख़िलाफ़ ही मोर्चा खोल रहे हैं और ऐसा इसलिए क्योंकि वह उनकी पंसद का प्रत्याशी नहीं है। हमीरपुर में भी पार्टी वीरभद्र सिंह की पसंद का नहीं है।
कांग्रेस प्रत्याशी को कहा पुराना पापी
यही नहीं, शिमला में कांग्रेस प्रत्याशी धनी राम शांडिल को भरी सभा में वीरभद्र सिंह ने पुराना पापी कह डाला तो शांडिल को शर्मसार होना पड़ा। इसी तरह हमीरपुर में कांग्रेस प्रत्याशी के नामांकन के बाद कांग्रेस की रैली में वीरभद्र सिंह ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह सुक्खू को निशाने पर लेते हुए कहा कि पार्टी में आये बदलाव से पुरानी गंद निकल गयी है। इस पर वीरभद्र सिंह के भाषण के दौरान ही सुक्खू व वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा को मंच छोड़ कर वहाँ से जाना पड़ा।वीरभद्र सिंह जब कांगड़ा गये तो कांग्रेस प्रत्याशी पवन काजल के समर्थन में आयोजित रैली में उन्होंने आनंद शर्मा को ख़ूब खरी-खोटी सुनाई। इससे पहले वीरभद्र सिंह, सुक्खू की ओर से नियुक्त कांग्रेस पदाधिकारियों को कबाड़ भी कह चुके हैं।
आलम यह है कि वीरभद्र सिंह से कांग्रेसी भी परेशान हैं, उन्हें हर समय यही डर सता रहा है कि पता नहीं कब वीरभद्र सिंह किसके ख़िलाफ़ बोल दे। वहीं, दूसरी ओर वीरभद्र सिंह के रवैये से बीजेपी ख़ूब मजे ले रही है। बीजेपी ने वीरभद्र सिंह के भाषणों को भी चुनावी मुद्दा बना लिया है।
हिमाचल में हालाँकि लोकसभा की चार ही सीटें हैं और पिछले चुनाव में बीजेपी ने ही चारों सीटों पर क़ब्जा जमाया था। इस बार बीजेपी ने दो सीटों पर अपने प्रत्याशी बदले हैं। कांग्रेस हालाँकि संसाधनों की कमी की वजह से अभी प्रचार में पीछे ही है, लेकिन वीरभद्र सिंह के बग़ावती तेवर भी पार्टी के लिये मुसीबत बनते जा रहे हैं।
पार्टी के एक बड़े वर्ग का मानना है कि वीरभद्र सिंह की अंदरखाने बीजेपी नेताओं से साँठगाँठ हो चुकी है। उनके ख़िलाफ़ चल रहे भ्रष्टाचार के मामलों की वजह से वीरभद्र सिंह कहीं न कहीं सुनियोजित तरीके़ से बीजेपी के प्रति नरम रवैया रखने लगे हैं। पिछले दिनों जिस तरीके़ से वीरभद्र सिंह की बेटी अभिलाषा सिंह को देश के पहले लोकपाल का न्यायिक सदस्य नियुक्त किया गया है, उससे अभिलाषा की ताज़पोशी की टाइमिंग को लेकर भी सवाल उठाये जा रहे हैं।
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