जिस दक्षिण कोरिया ने बिना लॉकडाउन लगाए ही कोरोना की पहली लहर को बेहतर तरीक़े से निपटा था वह अब कोरोना के बेहद ख़राब दौर से गुजर रहा है। वियतनाम और हांगकांग जैसे देशों की भी स्थिति वैसी ही है। चीन में संक्रमण के मामले बढ़े हैं। यूरोपीय देश जर्मनी में भी हर रोज़ क़रीब 2 लाख केस आ रहे हैं तो अमेरिका में ओमिक्रॉन का बीए.2 सब-वैरिएंट तेज़ी से फैल रहा है।
दक्षिण कोरिया में अब हालात इतने ख़राब हैं कि हर रोज़ 2 लाख से भी ज़्यादा केस आ रहे हैं और 300 से ज़्यादा मौतें हो रही हैं। क़रीब हफ़्ते भर पहले वहाँ हर रोज़ 6 लाख केस आ रहे थे। 5 करोड़ की आबादी वाले देश में हर रोज़ 6 लाख केस बेहद ज़्यादा है। यदि वहाँ की आबादी भारत जितनी होती तो इस अनुपात में वहाँ उस दिन 1.5 करोड़ केस आए होते।
यह उस देश की स्थिति है जहाँ पहले जबरदस्त तरीके से कोरोना को नियंत्रित किया गया था। जब 2020 में कोरोना संक्रमण दुनिया भर में फैल रहा था तब दक्षिण कोरिया को दुनिया के लिए एक मॉडल के तौर पर देखा जा रहा था।
उसके पास इटली, अमेरिका और स्पेन जैसे विकसित देशों की तरह मज़बूत स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं है फिर भी इसने इन देशों व चीन की तरह सख्ती नहीं की। यानी बिना लॉकडाउन या कर्फ्यू लगाए ही इसने कोरोना को नियंत्रित कर लिया था। इसके पीछे कारण बताया गया था कि उसने कोरोना से निपटने के लिए जबरदस्त तैयारी की थी और संसाधनों का बेहतरीन इस्तेमाल किया था। टेस्टिंग और ट्रैकिंग पर जबरदस्त काम किया था। तो वहाँ अब क्या हो गया कि जहाँ दिसंबर तक कुल मामले 6 लाख 30 हज़ार आए थे वे अब बढ़कर 90 लाख से ज़्यादा हो गये हैं। अब संक्रमण इतनी ज़्यादा तेजी से कैसे फैला?
कोरिया रोग नियंत्रण और रोकथाम एजेंसी (केडीसीए) ने कहा है कि रिकॉर्ड उछाल के पीछे अत्यधिक संक्रामक ओमिक्रॉन वैरिएंट है। इसके बावजूद दक्षिण कोरियाई सरकार ने आने वाले दिनों और हफ्तों में लगभग सभी सोशल डिस्टेंसिंग को हटाने के साथ आगे बढ़ने का फ़ैसला किया है।
वियतनाम में भी ऐसी ही स्थिति है। वहाँ हर रोज़ क़रीब 1 लाख 30 हज़ार से ज़्यादा केस आ रहे हैं। यहाँ पाँच दिन पहले हर रोज़ क़रीब 2 लाख तक केस आ रहे थे।
वियतनाम में पिछले साल जुलाई तक कुल मिलाकर 2 लाख संक्रमण के मामले आए थे, लेकिन अब वहाँ 80 लाख से भी ज़्यादा संक्रमण के मामले हो चुके हैं।
हांगकांग में हर रोज़ क़रीब 14 हज़ार केस आ रहे हैं। हाल ही में वहाँ हर रोज़ 20 हज़ार केस हर रोज़ आ रहे थे। यह संख्या भले ही कम लग रही हो, लेकिन देश की आबादी के हिसाब से यह काफ़ी ज़्यादा है। आबादी के अनुपात से निकाला जाए तो यह माना जा सकता है कि भारत जितनी आबादी होने पर वहाँ हर रोज़ 35 लाख से ज़्यादा पॉजिटिव केस आ रहे होते। तब वहाँ हर रोज़ क़रीब 300 मौतें हो रही थीं। अस्पताल मरीजों से भर गए। ताबूत ख़त्म कम पड़ गए। मुर्दाघर इतने भर गए कि शवों को रेफ्रिजरेटर वाले कंटेनरों में रखना पड़ा।
अमेरिका में ओमिक्रॉन का बीए.2 वैरिएंट
बता दें कि भारत में भी कोरोना की संभावित चौथी लहर को लेकर तैयार रहने के निर्देश दिए गए हैं। केंद्र ने तीन दिन पहले ही सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को चिट्ठी लिखकर उन्हें अलर्ट किया है। इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने चिट्ठी में सबको सावधान रहते हुए पांच उपायों पर अमल करने के लिए कहा है। इनमें जांच में तेजी लाना, ट्रैसिंग करना, इलाज करना, संपूर्ण टीकाकरण और कोविड अनुकूल व्यवहार करना शामिल है। हालाँकि, कहा जा रहा है कि फ़िलहाल चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन सावधानियाँ बरती जानी चाहिए।
ऐसा इसलिए भी ज़रूरी है कि आईआईटी कानपुर के शोधकर्ताओं ने फ़रवरी महीने में कहा था कि देश में कोरोना की चौथी लहर अगले 4 महीने में यानी जून तक आ सकती है। यह लहर 4 महीने तक रह सकती है।
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