सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विधायिका को गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए एक कानून बनाना चाहिए जिन्होंने अपनी ज़िंदगी ख़त्म करने के लिए चिकित्सा उपचार बंद करने का फ़ैसला किया है। चिकित्सा उपचार बंद करने का फ़ैसला यानी इच्छामृत्यु का फ़ैसला। इच्छामृत्यु के लिए ही सुप्रीम कोर्ट ने 'पैसिव यूथेनेशिया' शब्द का इस्तेमाल किया था। पाँच साल पहले 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए इच्छामृत्यु को मंजूरी दी कि व्यक्ति को गरिमा के साथ मरने का अधिकार है। तब 'लिविंग विल' यानी इच्छामृत्यु के लिए विरासत लिखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी किए थे। अब इसी में बदलाव की मांग की जा रही है।
इच्छामृत्यु पर फिर से बहस क्यों? जानें क्या है पैसिव यूथेनेशिया
- स्वास्थ्य
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- 18 Jan, 2023
भारत में इच्छामृत्यु का अधिकार तो पाँच साल पहले ही मिल गया है, लेकिन अब यह फिर से चर्चा में क्यों है? इच्छामृत्यु की वसीयत लिखने के लिए दिशा-निर्देशों में बदलाव की मांग क्यों?

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 'लिविंग विल' पर अपने 2018 के दिशा-निर्देशों को संशोधित करने पर सहमति व्यक्त की है। लेकिन उन्होंने संसद में इस पर क़ानून बनाने की वकालत की है। तो सवाल है कि दिशा-निर्देशों में संशोधन की ज़रूरत क्यों पड़ी? आख़िर यह पैसिव यूथेनेशिया क्या है?