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प्रतीकात्मक तसवीर

इच्छामृत्यु पर फिर से बहस क्यों? जानें क्या है पैसिव यूथेनेशिया

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विधायिका को गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए एक कानून बनाना चाहिए जिन्होंने अपनी ज़िंदगी ख़त्म करने के लिए चिकित्सा उपचार बंद करने का फ़ैसला किया है। चिकित्सा उपचार बंद करने का फ़ैसला यानी इच्छामृत्यु का फ़ैसला। इच्छामृत्यु के लिए ही सुप्रीम कोर्ट ने 'पैसिव यूथेनेशिया' शब्द का इस्तेमाल किया था। पाँच साल पहले 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए इच्छामृत्यु को मंजूरी दी कि व्यक्ति को गरिमा के साथ मरने का अधिकार है। तब 'लिविंग विल' यानी इच्छामृत्यु के लिए विरासत लिखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी किए थे। अब इसी में बदलाव की मांग की जा रही है।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 'लिविंग विल' पर अपने 2018 के दिशा-निर्देशों को संशोधित करने पर सहमति व्यक्त की है। लेकिन उन्होंने संसद में इस पर क़ानून बनाने की वकालत की है। तो सवाल है कि दिशा-निर्देशों में संशोधन की ज़रूरत क्यों पड़ी? आख़िर यह पैसिव यूथेनेशिया क्या है? 

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इस मामले को जानने से पहले यह जान लें कि 2018 में पैसिव यूथेनेशिया को लेकर सुप्रीम का फ़ैसला क्या रहा था। शीर्ष अदालत में कॉमन कॉज नाम की ग़ैर सरकारी संस्था ने याचिका लगाई थी कि किसी भी इंसान को होशो हवास में अपनी लिविंग विल यानी इच्छा मृत्यु के लिए वसीयत लिखने का अधिकार मिले। 

तब सुप्रीम कोर्ट ने जो फ़ैसला दिया उसमें शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति के ठीक होने की उम्मीद नहीं है तो उसे यह फ़ैसला लेने का अधिकार है कि लाइफ़ सपोर्ट सिस्टम की मदद से ज़िंदा ना रखा जाए। उस व्यक्ति के फ़ैसले का डॉक्टर और उनके परिवार को सम्मान करना होगा।

अदालत ने कहा था कि कोई भी व्यक्ति लिविंग विल छोड़कर जा सकता है कि अगर वो अचेतअवस्था में चला जाए और स्थिति ऐसी हो कि अब सिर्फ कृत्रिम लाइफ़ सपोर्ट सिस्टम की मदद से ही उसे ज़िंदा रखा जा सकता है तो उस हालात में उसकी वसीयत का सम्मान किया जाए। यदि कोई शख्स अचेत है और उसने वसीयत नहीं लिखी है और उसे सिर्फ़ लाइफ सपोर्ट सिस्टम से ही ज़िंदा रखा जा सकता है तो उसका इलाज करने वाले डॉक्टर और उसके परिजन मिलकर यह फ़ैसला ले सकते हैं।
2018 के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को लेकर कहा गया कि पैसिव यूथेनेशिया की प्रक्रिया काफ़ी जटिल है और इसे शीर्ष अदालत के सामने लाया भी गया।

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में इंडियन सोसाइटी फॉर क्रिटिकल केयर का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी दातार ने तर्क दिया कि कई हितधारकों की भागीदारी के कारण, शीर्ष अदालत के दिशानिर्देशों के तहत प्रक्रिया असाध्य हो गई है।

शीर्ष अदालत को बताया गया कि पहले एक मेडिकल बोर्ड को यह घोषित करना होगा कि रोगी के ठीक होने की कोई गुंजाइश नहीं है, फिर जिला कलेक्टर को दूसरी राय प्राप्त करने के लिए एक स्वतंत्र मेडिकल बोर्ड का गठन करना होगा और इसके बाद मामले को रेफर कर दिया जाएगा एक न्यायिक मजिस्ट्रेट को। दातार ने तर्क दिया कि न्यायिक मजिस्ट्रेट की भूमिका को बाहर रखा जा सकता है।

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देश में इच्छामृत्यु का अधिकार मिले होने के बावजूद इसके लिए क्या विदेश जाने की नौबत आ सकती है? लेकिन ऐसा ही एक मामला हाल में आया था। दरअसल, एक शख्स इच्छामृत्यु के लिए यूरोप जाना चाहता है। वह 2014 से क्रोनिक फटीग सिंड्रोम नाम की बिमारी से पीड़ित है। इसकी वजह से उसकी आंत में दिक्कत है। लेकिन पिछले आठ सालों में उनकी दिक्कत बेहद ज़्यादा बढ़ गई है, अब वह चल-फिर भी नहीं सकते हैं।

यह मामला तब सामने आया जब बेंगलुरु की रहने वाली 49 साल की एक महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उन्होंने इच्छामृत्यु के लिए जाने वाले अपने दोस्त की यूरोप यात्रा पर रोक लगाने की मांग की। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार याचिका में कहा गया है कि बेल्जियम में इलाज के लिए वीजा बनवाकर स्विट्ज़रलैंड में यूथेनेशिया यानी इच्छामृत्यु के लिए संपर्क किया गया। 

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कई देशों में है इच्छामृत्यु की अनुमति

तो सवाल है कि वह भारत में ऐसा क्यों नहीं करवा रहे और स्विट्ज़रलैंड क्यों जा रहे हैं? इसका जवाब है कि स्विट्ज़रलैंड में यूथेनेशिया की प्रक्रिया आसान है। वैसे, दुनिया भर के कई देशों में यूथेनेशिया की अनुमति है। 

  • स्विट्ज़रलैंड में इसे असिस्टेड सुसाइड कहा जाता है। इसमें एक शख़्स कानूनी अनुमति के साथ किसी अन्य शख़्स की आत्महत्या करने में मदद कर सकता है। लेकिन मदद करने वाले शख़्स को ये लिखित में देना होता है कि इसमें उसका कोई फायदा नहीं है।
  • वर्षों तक बहस चलने के बाद साल 2016 में कनाडा में भी इच्छामृत्यु की इजाज़त दे दी गई।
  • अमेरिका के वॉशिंगटन, ओरेगन, मोन्टाना और वेरमॉन्ट, कैलिफोर्निया जैसे राज्यों ने इच्छामृत्यु की इजाजत दी है। 
  • ब्रिटेन, नॉर्वे, स्पेन, रूस, चीन, फ़्रांस और इटली जैसे कई बड़े देशों में या तो इच्छामृत्यु ग़ैर-क़ानूनी है या फिर सशर्त इजाजत दी जाती है।

हालाँकि, इच्छामृत्यु की प्रक्रिया आसान करने के ख़तरे भी हैं। हाल ही में कनाडा से चिंतित करने वाली ख़बर आई थी। क़रीब एक महीने पहले ही एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि कनाडा में साल 2021 में ही 10 हजार से ज्यादा लोगों ने इच्छा मृत्यु के ज़रिए जान दे दी। 

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क़मर वहीद नक़वी
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