गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दी है।
उनकी याचिका में गुजरात यूनिवर्सिटी को दिए केंद्रीय सूचना आयोग के पूर्व निर्देश को रद्द करने वाले आदेश की समीक्षा करने की मांग की गई थी।
मार्च 2023 में गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस बीरेन वैष्णव ने केंद्रीय सूचना आयोग के खिलाफ गुजरात यूनिवर्सिटी की अपील मंजूर की थी। तब दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को पीएम नरेंद्र मोदी की एमए की डिग्री के बारे में जानकारी देने के सीआईसी के आदेश को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था।
हाईकोर्ट ने अरविंद केजरीवाल पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था। इसके बाद केजरीवाल ने पुनर्विचार याचिका दायर कर कहा था कि गुजरात यूनिवर्सिटी ने पीएम मोदी की डिग्री के ऑनलाइन उपलब्ध होने का दावा किया था, लेकिन उनकी वेबसाइट पर इसकी कोई जानकारी नहीं थी।
लॉ से जुड़ी खबरों की वेबसाइट लाईव लॉ के मुताबिक गुजरात हाईकोर्ट ने अरविंद केजरीवाल द्वारा केंद्रीय सूचना आयोग के 2016 का आदेश रद्द करने के 31 मार्च के आदेश पर पुनर्विचार की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है।
इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस बीरेन वैष्णव की बेच ने 30 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखने के करीब एक महीने बाद यह आदेश पारित किया है।
अपने आदेश में गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस बीरेन वैष्णव की बेंच ने आरटीआई एक्ट के मूल इरादे और उद्देश्य का मजाक बनाने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था। इसके बाद केजरीवाल ने गुजरात हाईकोर्ट के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर की।
मानहानि के मामले का सामना कर रहे हैं केजरीवाल
लाईव लॉ वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में केजरीवाल की ओर से पेश होते हुए सीनियर एडवोकेट पर्सी कविना ने जस्टिस वैष्णव के समक्ष दलील दी कि उनके मुवक्किल का आचरण ऐसा नहीं है कि अदालत की टिप्पणियों को आकर्षित किया जा सके जैसा कि समीक्षाधीन आदेश में किया गया। सीनियर एडवोकेट पर्सी कविना ने यह भी दलील दी कि अदालत द्वारा की गई टिप्पणियां अनुचित हैं। उन्होंने कहा कि केजरीवाल अब अहमदाबाद की एक अदालत में मानहानि के मामले का सामना कर रहे हैं। अदालत के फैसलों में सबसे सहजता से बोले गए सबसे छोटे शब्दों का भी एक जबरदस्त डोमिनो प्रभाव होता है, जिसका हम सामना कर रहे हैं।
आदेश में जुर्माना लगाने के संबंध में उन्होंने कहा कि सुनवाई के समापन के समय केजरीवाल के सामने जुर्माने का पहलू कभी नहीं रखा गया और कार्यवाही की प्रकृति को देखते हुए, “अदालत को लग सकता है कि आवेदक का आचरण ऐसा नहीं था। इसने मुक़दमेबाजी को भड़काया या लम्बा खींचा।” इस संबंध में यह भी तर्क दिया गया कि केजरीवाल हमेशा कार्यवाही के शीघ्र निपटान की मांग करते हैं और मुकदमे को लंबा खींचने में उनकी कभी कोई दिलचस्पी नहीं है।
यह मामला उनकी एमए डिग्री के बारे में है
लाईव लॉ की रिपोर्ट कहती है कि सीनियर एडवोकेट पर्सी कविना ने कहा कि गुजरात यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर उपलब्ध दस्तावेज (पीएम मोदी की) डिग्री नहीं है, बल्कि बीए ( पार्ट II) परीक्षा के कुछ अंकों का कार्यालय रिकॉर्ड है और यह मामला उनकी एमए डिग्री के बारे में है, न कि बीए डिग्री के बारे में। इस बात पर जोर देते हुए कि उन्होंने कहा कि डिग्री कोई मार्कशीट नहीं है, उन्होंने तर्क दिया कि गुजरात यूनिवर्सिटी का यह तर्क कि संबंधित डिग्री इंटरनेट पर पहले से ही उपलब्ध है, गलत है।
दूसरी तरफ इस मामले में गुजरात यूनिवर्सिटी की ओर से पेश होते हुए भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि केजरीवाल की पुनर्विचार याचिका सिर्फ मामले को गर्म रखने और बिना किसी कारण के विवाद को जीवित रखने की एक कोशिश है।
मेहता ने कहा कि वर्तमान पुनर्विचार याचिका दायर करने के लिए भी दिल्ली के मुख्यमंत्री पर जुर्माना लगाया जाना आवश्यक है, क्योंकि उचित उपाय अपील दायर करना है न कि पुनर्विचार याचिका। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि गुजरात यूनिवर्सिटी किसी तीसरे व्यक्ति को किसी छात्र की व्यक्तिगत जानकारी दिए जाने के लिए बाध्य नहीं है।
उनकी इस दलील पर सीनियर एडवोकेट पर्सी कविना ने कहा कि एसजी तुषार मेहता का आग्रह असहमति के हर कानूनी रूप को रद्द करने के रवैये के अनुरूप है।
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