क्या गंगा में बह रहे शवों पर कविता लिखना अराजकता है? और इसका माओवाद या नक्सलवाद से क्या रिश्ता है?
क्या गंगा में बहते शवों पर कविता लिखना साहित्यिक नक्सलवाद है?
- गुजरात
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- 10 Jun, 2021
क्या गंगा में बह रहे शवों पर कविता लिखना अराजकता है? और इसका माओवाद या नक्सलवाद से क्या रिश्ता है?

लेकिन गुजरात साहित्य अकादमी के अनुसार यह अराजकता है। इतना ही नहीं, यह साहित्यिक नक्सलवाद है।
क्या है मामला?
गुजरात साहित्य अकादमी के प्रकाशन 'शब्दसृष्टि' के जून अंक के संपादकीय में गुजराती कवियित्री पारुल खाखर की कविता 'शव वाहिनी गंगा' का नाम लिए बग़ैर उस पर टिप्पणी की गई है और कवियित्री की तीखी आलोचना की गई है।