गुजरात में मुस्लिम आबादी महज 10 फीसदी (2011 जनगणना आंकड़े) है लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव जैसे मुसलमानों के इर्द-गिर्द सिमट आया हो। तीन पार्टियां बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मुख्य रूप से चुनाव लड़ रही है। लेकिन बीजेपी नेताओं के बयान सुनें तो लग रहा है कि चुनाव बीजेपी बनाम मुसलमान हो रहा है। मीडिया का एक बड़ा वर्ग भी इस तरह की तस्वीर पेश करने की कोशिश में जुटा है। मुसलमान चुप है। वो कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कथित मुस्लिम परस्त असदुद्दीन ओवैसी गुजरात दंगों से लेकर आफताब पूनावाला, दाऊद इब्राहीम, मजार को चुनावी जुमलों में लाए लेकिन मुसलमानों की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।
ऐसा नहीं है कि मुसलमान प्रत्याशी बीजेपी को छोड़कर अन्य दलों या स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। लेकिन मुस्लिम बहुल इलाकों में भी मुस्लिम मतदाताओं के दिल की बात जानना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। टीवी चैनलों के रिपोर्टर माइक लेकर सारा दिन मुस्लिम बहुल इलाकों में घूम रहे हैं। अमित शाह और ओवैसी के बयानों के बाद तमाम मुसलमानों के मुंह में माइक घुसेड़ कर उनके विचार पूछे गए। मुसलमानों का एक ही जवाब- हम उस दौर को याद नहीं करना चाहते। हमें काम धंधा करने दो। आगे का देखने दो। बीजेपी अच्छा काम कर रही है। बीजेपी जीतेगी। लेकिन माइक लेकर टहलने वालों को पता नहीं क्यों ऐसे मुसलमानों पर विश्वास नहीं हो रहा है। वो फौरन माइक वापस हाथ में लेकर यह बात जरूर कह देते हैं कि इस जवाब पर यकीन करना मुश्किल है।
गुजरात के पाटन विधानसभा क्षेत्र में एक टीवी चैनल का रिपोर्टर चाय की दुकान पर बैठे मुसलमानों से पूछता है कि किसका जोर है। वो सारे एक स्वर में बोलते हैं -बीजेपी। उसे यकीन नहीं होता। वो फिर पूछता है - सही बताइए, मजाक मत करिए। वो लोग गुजराती भाषा में अपशब्द बोलते हैं और पूछते हैं कि हमसे क्या कहलवाना चाहते हो। यहां कुछ नहीं मिलेगा। बीजेपी है बीजेपी।
सूरत जिले में लिम्बायत सीट मुस्लिम बहुल सीट है। लेकिन यहां खड़े 44 प्रत्याशियों में से 36 मुसलमान हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट बताती है कि वोट बिखरने का पूरा खतरा है लेकिन मुस्लिम मतदाताओं से आप मजाल है कि यह जान सकें कि किसका जोर है या किसका पलड़ा भारी है। टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्टर को तब हैरानी हुई जब कुछ मुस्लिम वोटरों ने उसे बीजेपी के हिन्दू प्रत्याशी का पलड़ा भारी होने की बात कह दी। यानी मुसलमानों ने गुजरात चुनाव में तय कर लिया है कि वो ऐसे नाजुक मुद्दों को किस तरह डील करेंगे। इसी तरह अहमदाबाद की बापूनगर सीट पर 29 प्रत्याशी मैदान में हैं। इनमें 10 मुसलमान हैं। इस विधानसभा में 28 फीसदी मुस्लिम मतदाता हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन मुस्लिम मतदाता बीजेपी के गुण गा रहे हैं।
सूरत ईस्ट विधानसभा सीट का मामला तो बहुत ही रोचक है। यहां खड़े 14 उम्मीदवारों में से 12 मुस्लिम उम्मीदवार हैं। कांग्रेस टिकट पर यहां से लड़ रहे असलम साइकिलवाला को इसके बावजूद उम्मीद है कि मुस्लिम वोट बंटेगा नहीं और वो आसानी से निकाल लेंगे। लेकिन एक प्रमुख टीवी चैनल ने यहां की रिपोर्टिंग करते हुए मुस्लिम मतदाताओं से बात की तो वो बीजेपी को जीतने की बात कहते नजर आए और खुद उस चैनल के रिपोर्टर को उन मुस्लिम मतदाताओं की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
इसी तरह अहमादाबाद की दरियापुर सीट पर 46 फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं। 7 प्रत्याशियों में से 5 मुस्लिम हैं। 2017 के पिछले चुनाव में यहां से कांग्रेस जीती थी। प्रमुख चैनल के रिपोर्टर को साफ लग रहा है कि कांग्रेस फिर से जीत जाएगी लेकिन जब वो मुस्लिम मतदाताओं की बाइट लेने की कोशिश करता है तो उसमें वो लोग गुजरात में हुए कथित विकास के लिए बीजेपी का शुक्रिया अदा करते नजर आते हैं।
लिम्बायत से कांग्रेस प्रत्याशी गोपाल पाटिल के हवाले से टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजेपी ने बिना टिकट दिए आजाद प्रत्याशी के रूप में तमाम मुस्लिम इलाकों से मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। बाकी रहा-सहा काम ओवैसी की पार्टी ने किया है। ऐसा सिर्फ मुस्लिम वोटों के बंटवारे के लिए किया गया है। उसी रिपोर्ट में यही बात लिम्बायत से एआईएमआईएम प्रत्याशी अब्दुल शेख ने भी कही। लेकिन शेख का कहना था कि बीजेपी ने आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम के डर में आजाद मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं।
इसीलिए नेता से लेकर मीडिया तक चकराए हुए हैं कि मुस्लिम प्रत्याशी प्रतिक्रिया के जवाब में आखिर प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रहे हैं। वो चुप क्यों हैं और अगर बीजेपी के हक में बोल रहे हैं तो क्यों बोल रहे हैं। समाज विज्ञानी और राजनीतिक पर्यवेक्षक घनश्याम शाह के हवाले से टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि मुसलमान मतदाता के तौर पर एकजुट नहीं हैं। उनके वोटों का बंटवारा होने पर दूसरे प्रत्याशी को फायदा मिलेगा। सच तो यह है कि गुजरात का मुस्लिम मतदाता न तो बीजेपी और न ही कांग्रेस या आप पर यकीन करता है। बाकी जहां से मुस्लिम प्रत्याशी आजाद खड़े हैं, वे सिर्फ अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए खड़े हैं।
समाज विज्ञानी घनश्याम शाह के इस विश्लेषण को माना जाए तो मुस्लिम मतदाताओं की कोई भूमिका गुजरात चुनाव में नहीं है। वो बिखरे हुए हैं। इसका फायदा जाहिर है कि बीजेपी को ही मिलेगा। लेकिन अमित शाह को फिर भी यकीन नहीं है तो वो कोई कमी न रह जाए, इसलिए गुजरात दंगों और आफताब पूनावाला का जिक्र अपनी चुनावी रैलियों में ले आए।
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