बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शनिवार को गुजरात के लिए पार्टी का घोषणा पत्र जारी किया। इस घोषणा पत्र में 5 साल में युवाओं के लिए 20 लाख रोजगार के अवसर पैदा करने, मजदूरों के लिए श्रमिक क्रेडिट कार्ड बनाए जाने जैसे कई अहम वादे किए गए हैं लेकिन जो चौंकाने वाली बात है वह यह कि पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में एंटी रेडिकलाइजेशन सेल बनाने का वादा किया है।
जेपी नड्डा ने इस मौके पर कहा कि एंटी रेडिकलाइजेशन सेल कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठनों की स्लीपर सेल और भारत विरोधी ताकतों की पहचान करेगा और उन्हें खत्म करने का काम करेगा।
शुक्रवार को ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुजरात के खेड़ा जिले में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए ‘2002 में सबक सिखाने’ वाला बयान दिया था जिसे लेकर सोशल मीडिया पर अच्छी-खासी प्रतिक्रिया हुई है। सवाल पूछा जा रहा है कि लगातार 27 साल से गुजरात की सत्ता में बैठी बीजेपी को आखिर 2002 के गुजरात दंगों या एंटी रेडिकलाइजेशन सेल बनाने का वादा क्यों करना पड़ रहा है।
इससे पहले असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने गुजरात में चुनाव प्रचार करते वक्त श्रद्धा हत्याकांड के आरोपी आफताब पूनावाला को मुद्दा बनाने की कोशिश की थी। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी श्मशान और कब्रिस्तान के नाम पर वोट मांग चुकी है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी रैलियों में श्मशान बनाम कब्रिस्तान का मुद्दा उठाया था।
2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पूरा जोर लगाने के बाद भी बीजेपी को 99 सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी। 182 सीटों वाली गुजरात की विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 92 विधायक चाहिए। इस तरह बीजेपी पिछले विधानसभा चुनाव में बहुमत से सिर्फ 7 सीटें ज्यादा जीत पाई थी। हालांकि पिछले कुछ सालों में उसने कांग्रेस के कई विधायकों को तोड़ लिया है।
लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि 27 साल तक लगातार सत्ता में रहने के बाद पार्टी हिंदुत्व के मुद्दे पर चुनाव लड़ने को क्यों विवश हुई है। वह 27 साल तक किए गए अपने कामों को लेकर जनता के बीच क्यों नहीं जाती।
क्या उसे विधानसभा चुनाव में हार का डर सता रहा है। क्या उसे ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस उसे बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने से रोक सकते हैं।
पाकिस्तान की भी एंट्री
राजनीतिक विश्लेषकों की बातों, पिछले कुछ विधानसभा चुनाव के आंकड़ों और टीवी अखबारों पर नजर दौड़ाएं तो ऐसा नहीं लगता कि बीजेपी गुजरात में विधानसभा का चुनाव हार रही है लेकिन बावजूद इसके केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 2002 के दंगे की बात क्यों करते हैं। क्यों पार्टी अपने घोषणापत्र में एंटी रेडिकलाइजेशन सेल का वादा करती है। क्यों हिमंता बिस्वा सरमा आफताब पूनावाला को मुद्दा बनाते हैं और क्यों सरमा कहते हैं कि पाकिस्तान को पता है कि अगर भारत में दो धमाके हुए तो उसके यहां 20 धमाके होंगे।
मोरबी हादसा है वजह?
पिछले महीने हुए मोरबी हादसे को लेकर जिस तरह का आक्रोश लोगों के मन में है और इसे जिस तरह कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने मुद्दा बनाया है, क्या उससे बीजेपी को किसी तरह का सियासी नुकसान होने का डर है। यहां सवाल यह खड़ा होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जैसे ताकतवर नेताओं के राज्य गुजरात में भी बीजेपी को हिंदुत्व के मुद्दे का सहारा क्यों लेना पड़ रहा है और बीजेपी अपने 27 साल के काम को आधार बनाकर चुनाव क्यों नहीं लड़ना चाहती।
गुजरात में 1 और 5 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे और मतों की गिनती 8 दिसंबर को होगी। पहले दौर का मतदान होने में अब कुछ ही दिन का वक्त शेष है। क्या बीजेपी गुजरात में ध्रुवीकरण की सियासत करना चाहती है और इसके जरिए वह पिछली बार मिली 99 सीटों के आंकड़े को बढ़ाना चाहती है या वाकई में उसे गुजरात के चुनाव में हार का डर सता रहा है।
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