गुजरात का चुनाव अब हर दिन रंग बदल रहा है। आम आदमी पार्टी सक्रिय तो काफी समय से थी लेकिन अब उसने अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया है और उसकी प्रतिक्रिया में पार्टी के एक महत्वपूर्ण सदस्य ने इस्तीफा भी दे दिया है। लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि कांग्रेस फिर से सक्रिय हो गई है जिसकी सीटें छीनने की फिराक में पार्टी थी। पार्टी ने फिर से जोर लगाया है ताकि पिछला इतिहास दोहराया जा सके।
पिछली बार पार्टी ने सत्तारुढ़ बीजेपी के छक्के छुड़ा दिये थे और कई क्षेत्रों में तो बराबरी का मुक़ाबला भी किया था। लेकिन इस बार पार्टी सक्रिय नहीं दिख रही थी और उसका फायदा आम आदमी पार्टी उठाती दिख रही है। उसके गुजराती नेताओं की तिकड़ी ने समां बांधना शुरू कर दिया था और राज्य के कई हिस्सों में वह बीजेपी को टक्कर देती दिख रही थी। अब चूँकि पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने इसुदन गढ़वी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है तो लड़ाई में नया मोड़ आ गया है।
इसुदन गढ़वी के शीर्ष पद के दावेदार बन जाने से केजरीवाल की समस्याओं का अंत नहीं हुआ बल्कि वे शुरू हुई हैं। सबसे पहले तो पार्टी के महत्वपूर्ण नेता इंद्रनील राज्यगुरु पार्टी छोड़कर चले गये। वह पार्टी के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण थे क्योंकि वह राज्य के सबसे अमीर एमएलए थे और उन्होंने पिछली बार चुनाव में जब अपनी संपत्ति घोषित की तो पता चला कि उनके पास 140 करोड़ रुपए की संपत्ति है। उनकी लोकप्रियता सौराष्ट्र क्षेत्र में बहुत है जहाँ बीजेपी को भी वोटों के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। यही कारण है कि इस बार भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सौराष्ट्र के दो दिनों के दौरे पर जा रहे रहे हैं। यहाँ इस बार आम आदमी उनकी पार्टी को टक्कर देती दिख रही है लेकिन राज्यगुरु के पार्टी छोड़कर पुनः कांग्रेस में जाने से आम आदमी पार्टी को उस सौराष्ट्र में धक्का लगा है। उनके पास कार्यकर्ताओं की फौज तो है ही, धन बल भी है।
आम आदमी पार्टी को दूसरा धक्का लगा है पाटीदार नेता गोपाल इटालिया की नाराज़गी से। वह अपने विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते हैं। और गढ़वी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार बना दिये जाने से वह खासे नाराज़ हैं। ध्यान रहे कि पिछली बार सूरत के स्थानीय निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी को 120 में से 27 सीटें दिलाने वाले इटालिया की भूमिका काफी महत्वपूर्ण समझी जा रही है। हालाँकि वह खुले तौर पर अपनी नाराज़गी नहीं दिखा रहे हैं लेकिन उनके कार्यकर्ताओं में उबाल है।
केजरीवाल का हिन्दूवादी चेहरा
लेकिन इन सबसे अलग जो विषय आम आदमी पार्टी को चोट पहुंचायेगी वह है, अरविंद केजरीवाल का हिंदुत्व वाला चेहरा। इस बार उन्होंने एक नया पत्ता फेंका है। नोटों पर लक्ष्मी-गणेश के चित्र छापने वाली बात कहकर उन्होंने मुस्लिम मतदाताओं को निराश कर दिया जो उनमें हिन्दुत्व से अलग चेहरा देखना चाह रहे थे। यह उनके लिए बड़ा धक्का है। उर्दू के वरिष्ठ पत्रकार मुज़फ्फर हुसैन गजाली कहते हैं कि केजरीवाल का लक्ष्मी-गणेश वाला बयान मुस्लिम जन मानस को नहीं भाया है। उनका आरोप है कि आम आदमी पार्टी की मंशा दरअसल कांग्रेस को हटाने और बीजेपी का रास्ता साफ़ करने की है। दोनों पार्टियों की आइडियोलॉजी एक जैसी है। उन्होंने आरोप लगाया कि कलकत्ता स्थित विवेकानंद इंस्टीट्यूट से अरविंद केजरीवाल का सीधा संबंध रहा है जो आरएसएस द्वारा बनाया गया था ताकि विदेशों से फंडिंग मिल सके।
यह बात कई और पत्रकारों ने भी कही। वे औवैसी की इस बात से सहमत हैं कि आम आदमी पार्टी संघ के इशारे पर खेलती है। अब उसका असली चेहरा सामने आ गया है।
अल्पसंखयक समुदाय में यह भावना घर कर जाने का आम आदमी पार्टी का कांग्रेस के विकल्प के रूप में उभरने का सपना अधूरा रह सकता है।
मुस्लिम मतदाता आम आदमी पार्टी में संघ विरोधी चेहरा देखते रहे हैं लेकिन केजरीवाल के तौर-तरीक़ों और हालिया बयानों ने उनके मन में संशय डाल दिया है। अब यह कांग्रेस पर निर्भर करता है कि वह कैसे इन वोटों को समेटे। इस वर्ग का साथ मिल जाने से कांग्रेस फिर से उठने की कोशिश कर सकेगी। इस समय पार्टी अहमद पटेल के निधन के धक्के से उबरने की कोशिश कर रही है और उसके लिए यह ज़रूरी है कि अपने वोट बैंक को संभाले। एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि हालाँकि अहमद पटेल ने मुस्लिम समुदाय का कोई भला नहीं किया लेकिन पार्टी के रणनीतिकार के तौर पर उन्हें ज़रूर याद किया जा सकता है।
कांग्रेस में फिर से जान आई
यहां कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरों में अशोक गहलोत माने जाते हैं जो इस चुनाव में फिर से कूद पड़े हैं। पिछले चुनाव में वह राज्स्थान के मुख्यमंत्री नहीं थे और एक विपक्षी नेता के तौर पर सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। राजस्थान और गुजरात की सीमा हजार किलोमीटर से भी ज़्यादा की है और इस वज़ह से दोनों राज्यों में बहुत सी चीजें कॉमन रही हैं। अशोक गहलोत इस वजह से और अपने ग्रामीण परिवेश की वज़ह से भी यहाँ लोकप्रिय रहे हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने पार्टी को जीत के क़रीब ला खड़ा किया था। लेकिन इस बार यह उतना आसान नहीं होगा। आम आदमी पार्टी ने पूरी ताक़त कांग्रेस की सीटें छीनने में लगा दी है। उसका इरादा साफ़ है कि वह कांग्रेस के विकल्प के रूप में उभरे। इसलिए पार्टी ने उन्हीं सीटों पर ज्यादा ज़ोर लगाया है जो कांग्रेस के पास है।
पिछली बार कांग्रेस ने उत्तरी गुजरात और सौराष्ट्र-कच्छ क्षेत्र में बीजेपी को धूल चटा दी थी। यही दो इलाक़े हैं जहां आम आदमी पार्टी टारगेट कर रही है। लेकिन इंद्रनील के पार्टी छोड़ जाने से हालात बदल गये हैं। आप को पिछली बार विधानसभा चुनाव में महज 0.1 प्रतिशत वोट मिले थे और पार्टी ने मुंह की खाई थी।
हल्की बातें पड़ेंगी भारी
आम आदमी पार्टी इस बार अपना खाता खोलने के लिए बेताब है। हमेशा की तरह अरविंद केजरीवाल और उनके लेफ्टिनेंट मनीष सिसोदिया अपने आक्रामक ढंग से हमले कर रहे हैं। यहाँ पर वे दोनों एक ग़लती कर रहे हैं। गुजरात दिल्ली या उत्तर भारत नहीं है और यहाँ शालीनता और शब्दों की मर्यादा का बड़ा महत्व है। गुजराती बहुत सामाजिक लोग हैं और वे कभी भी हल्के शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते। लेकिन आम आदमी पार्टी के नेताओं, खासकर, गोपाल इटालिया ने बहुत हल्की बातें कहीं और अड़े भी रहे।
दरअसल, गुजराती मुख्य रूप से कारोबारी या यूं कहें कि उद्यमी कौम है जो अपने बिज़नेस में राजनीति से ज्यादा दिलचस्पी रखती है। अरविंद केजरीवाल हर जगह आक्रामक होकर दूसरों पर वार करते हैं जो सभी को पसंद नहीं आ रहा है।
अहमदाबाद में लोगों ने उनकी पार्टी और खुद उनके बयानों पर काफी आपत्ति जताई। दूसरों को बेईमान बताने में वह सीमाएँ लांघ जाते हैं। यह बात वहाँ के पत्रकारों और कई दुकानदारों ने भी कही। एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि गुजरात के लोगों की राजनीतिक विचारधाराएँ अलग-अलग होने के बावजूद वे आपस में कटुता नहीं रखते। बहस एक सीमा तक ही जाती है और फिर चुनाव के बाद सब भूल भी जाते हैं।
गुजरात में बेरोजगारी भी है और बढ़ती महंगाई का दंश भी। इसके बावजूद लोगों में जोरदार तीखी बहस देखने में नहीं मिलती। अहमदाबाद के ज़्यादातर इलाक़ों में लोग राजनीतिक चर्चा में पुरजोर बहस करते नहीं दिखते।
आम आदमी पार्टी के ख़िलाफ़ एक बात जो जाती है वह है नरेन्द्र मोदी का कद। उनके सामने अरविंद केजरीवाल कहीं नहीं ठहरते। राज्य में सत्ता से नाराज़ लोग भी इस तरह की तुलना करते नहीं दिखे। वह उनके लिए गर्व का विषय हैं, यह बात वहाँ के लोग खुलकर कहते हैं। वह 19 नंवबर से वहाँ चुनाव प्रचार करेंगे और आठ रैलियां करेंगे। पार्टी के सबसे बड़े प्रचारक के रूप में वहां उनकी प्रतीक्षा है। पार्टी के सूत्रों ने बताया कि पीएम मोदी ज़रूरत के हिसाब से कई और दौरे भी कर सकते हैं। वह आम आदमी पार्टी को पैर जमाने का मौक़ा नहीं देना चाहते हैं।
अपनी राय बतायें