गुजरात में भी चुनावी बिगुल बज गया है। गुरुवार को चुनाव आयोग ने राज्य में विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान कर दिया है। गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए दो चरणों में मतदान होगा। 182 सीटों के लिए हो रहे इस चुनाव में पहली दिसंबर दिसंबर को 89 सीटों पर और पांच दिसंबर को 93 सीटों पर वोट पड़ेंगे। नतीजे 8 दिसंबर को यानी हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के साथ ही आएंगे।
दिलचस्प होगा सत्ता का संग्राम
गुजरात विधानसभा चुनाव में इस बार सत्ता का संग्राम काफी दिलचस्प होने के आसार हैं। पिछले तीन दशकों से यहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता रहा है। इसमें 1995 से बीजेपी लगातार बाजी मारती रही है। लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी भी पूरी ताकत से चुनाव में ताल ठोक कर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने कोशिश कर रही है। इस लिहाज से देखें तो मुकाबला काफी रोचक होता नजर आ रहा है। बीजेपी के आक्रामक प्रचार के मुकाबले आम आदमी पार्टी उसे सीधी टक्कर देती हुई दिख रही है। जबकि लगभग तीन दशकों से राज्य में मुख्य विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस हाशिए पर जाती नजर आ रही है।
कांग्रेस के कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी ने गुजरात से पूरी तरह किनारा किया हुआ है। अभी तक इन्होंने एक भी सभा गुजरात में नहीं की है। इसके विपरीत अरविंद केजरीवाल लगातार गुजरात दौरे पर जाकर अपनी और अपनी पार्टी की मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं।
क्या है बीजेपी का लक्ष्य?
बीजेपी के लिए गुजरात विधानसभा चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। गुजरात की जीत उसके लिए 2024 के लोकसभा चुनाव की जीत की गारंटी है। जबकि गुजरात हारना उसके लिए केंद्र की सत्ता से विदाई का संकेत होगा। लिहाजा बीजेपी इस चुनाव मे पूर ताकत झोंक रही है। बीजेपी ने इस बार 182 सीटों में से 160 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए बीजेपी ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है। बीजेपी में इस बार टिकटों के लिए अभूतपूर्व मारामारी है। टिकट बांटने का जिम्मा खुद गृहमंत्री अमित शाह ने संभाल रखा है। वो उम्मीदवारों के नाम तय करने के लिए गांधीनगर में डेरा डालेंगे। बीजेपी को अब तक 4,340 लोगों के नाम मिले हैं। सबसे ज्यादा 1,490 उत्तर गुजरात से हैं। सौराष्ट्र से1,163, मध्य गुजरात से 962 और दक्षिण गुजरात से सबसे कम बायोडाटा 725 मिले हैं।
पिछले चुनाव में क्या हुआ था?
160 सीटों का लक्ष्य हासिल करना बीजेपी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। पिछले चुनाव में बीजेपी ने 150 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था लेकिन वो 99 सीटों पर ही सिमट गई थी। पिछले चुनाव में उसे कांग्रेस से जबर्दस्त चुनौती मिली थी।
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुए गुजरात के पहले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को करारा झटका लगा था। 2017 में कांग्रेस ने 2.57% को की बढ़ोतरी के साथ ही 2012 के मुकाबले 16 सीटें बढ़ाते हुए 77 सीटें जीत कर बीजेपी कड़ी टक्कर दी थी। तब बीजेपी को 2012 के मुकाबले 1.15% ज्यादा वोट मिले थे लेकिन सीटें 115 से घटकर सिर्फ 99 रह गई थी।
मोदी के बाद गिरा बीजेपी का ग्राफ
नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहे गुजरात में बीजेपी की जड़ें मजबूत हुईं। 2014 में उनके प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली आने के बाद विधानसभा चुनाव में बीजेपी की पहली जैसी ताकत नहीं रही। ये बात पिछले चुनाव के नतीजों से साबित हुई है। मोदी के मुख्यमंत्री रहते उनके नतृत्व में हुए 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 127 सीटें जीती थीं और उसे 49.98% वोट मिला था। इसके मुकाबले कांग्रेस को 51 सीटें और 39.28% वोट मिला था। जबकि 2007 में बीजेपी ने 117 सीटों और 49.12% वोटों के साथ सत्ता पर अपना कब्जा बरकरार रखा था। तब कांग्रेस को 59 सीटें और 38% वोट मिले थे।
2012 में कांग्रेस में 38.93% वोट और 61 सीटें हासिल की थी। लेकिन बीजेपी ने 115 सीटों और 47.85% वोटों के साथ सत्ता पर अपना कब्जा बरकरार रखा था। 2002 से 2017 तक के चुनावी नतीजों के आंकड़े बताते हैं कि हर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बीजेपी को मजबूती से टक्कर देती रही है। लेकिन इस चुनाव में तारीखों के ऐलान के वक्त तक कांग्रेस सत्ता की जंग से बाहर नजर आ रही है।
कहां खड़ी है आम आदमी पार्टी?
पिछले कई महीनों से आम आदमी पार्टी गुजरात में विधानसभा चुनाव के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। वह ऐसा माहौल बना रही है मानो इस बार उसका बीजेपी से सीधा मुकाबला है। आम आदमी पार्टी गुजरात में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ेगी। लिहाजा उसके पास पुराना कोई आंकड़ा नहीं है जिसके बूते ये अंदाजा लगाया जा सके कि उसे कितनी सीटें और कितने प्रतिशत वोट मिल सकते हैं। स्थानीय निकाय चुनाव में पहली बार कुछ बता रही थी।
तब सूरत महानगर पालिका में उसके 120 में से 27 उम्मीदवार जीते थे और उसे 28.47% वोट मिले थे। जबकि गांधीनगर में उसने 44 में से 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था। यहां उसका एक उम्मीदवार जीता था और उसे 21.70% वोट मिले थे। आप ने राजकोट की सभी 72, भावनगर की सभी 52 और अहमदाबाद की सभी 192 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन यहां उसे एक भी भी सीट नहीं मिली थी। अलबत्ता राजकोट में 17.40% भावनगर में 8.41% और अहमदाबाद में 6.99% वोट मिले थे।
कितना अलग है इस बार का चुनाव?
आम आदमी पार्टी की मौजूदगी ने गुजरात के विधानसभा चुनाव को पिछले कई चुनावों से अलग बना दिया है। वहीं पाटीदार आंदोलन की आग भी इस बार शांत है। पाटीदार आंदोलन के सबसे बड़े चेहरे हार्दिक पटेल भी अब बीजेपी में शामिल हो गए हैं। पिछले चुनाव में वो कांग्रेस के साथ थे। कांग्रेस अपने जिन कद्दावर समझे जाने वाले नेताओं के सहारे गुजरात में बीजेपी सरकार को उखाड़ फेंकने की कोशिश करती दिखती थी उनमें से कई पाला बदल कर बीजेपी के साथ हो गए हैं। इसका नुकसान भी कांग्रेस को हो सकता है। असदुद्दीन ओवैसी भी पहली बार गुजरात विधानसभा चुनाव में पूरे दमखम के साथ उतर रहे हैं। मुस्लिम बहुल इलाकों में उन्हें देखने सुनने के लिए बड़ी भीड़ उमड़ रही है। मुस्लिम वोट उनकी तरफ खिसकना भी कांग्रेस के लिए नुकसानदेह और बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकता है।
कौन होगा अगला मुख्यमंत्री?
गुजरात चुनाव में मुख्यमंत्री को लेकर भी सस्पेंस बना हुआ है। हालांकि अभी भूपेन्द्र पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री हैं। लेकिन बीजेपी के एक बार फिर चुनाव जीतने के बाद भी वही मुख्यमंत्री बनेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। हालांकि गुजरात के बीजेपी अध्यक्ष सीआर पाटिल पहले ही संकेत दे चुके हैं कि राज्य में कोई बदलाव नहीं होगा। लेकिन ये वो तय नहीं करेंगे बल्कि ये फैसला पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के स्तर पर होगा।
कांग्रेस ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया है। लेकिन कांग्रेस में भरत सोलंकी, अर्जुन मोढवाडिया, शक्ति सिंह गोहिल के बीच रस्साकशी है। आम आदमी पार्टी में अभी तक गोपाल इटालियन ओर इशुदान गढवी मुख्यमंत्री पद के दावेदार बताए जा रहे हैं। अरविंद केजरीवाल जल्द ही इस राज पर से पर्दा हटा सकते है कि उनकी तरफ से उम्मीदवार का उम्मीदवार कौन होगा।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि गुजरात का विधानसभा चुनाव बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए काफी अहम है। बीजेपी के सामने जहां लगातार पांच बार चुनी हुई अपनी सरकार को बचाने की चुनौती है। उसे सत्ता विरोधी लहर के आगे टिके रहकर अपनी मजबूती साबित करनी है। वहीं कांग्रेस को ये साबित करना है कि वो बीजेपी को उसी के गढ़ में पटखनी दे सकती है। इन दोनों के बीच आम आदमी पार्टी अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराने राष्ट्रीय राजनीति को एक नई दिशा देने का कोशिश कर रही है।
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