बीजेपी की राजनीति मंदिर-मसजिद की जंग से ऊपर नहीं उठ सकती यह बात एक बार फिर सही साबित होती दिख रही है। दिल्ली में अगले साल के शुरू में ही विधानसभा के चुनाव होने हैं और बीजेपी इन चुनावों की तैयारियों में जुटी हुई है। दिल्ली का चुनाव जीतने के लिए बीजेपी ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की तैयारियाँ शुरू कर दी हैं। पश्चिमी दिल्ली से बीजेपी के सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा ने दिल्ली में तेज़ी से मसजिदों की तादाद बढ़ने का आरोप लगाते हुए फ़ौरन कार्रवाई करने की माँग करके इसकी शुरुआत कर दी है। प्रवेश वर्मा की इस माँग से दिल्ली की सियासत गर्माने लगी है।
अब उप-राज्यपाल क्या करेंगे?
प्रवेश वर्मा की चिट्ठी पर दिल्ली के उप-राज्यपाल की तरफ़ से किसी भी तरह की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया गया। उप-राज्यपाल भवन के प्रवक्ता डी.जी. विनोद ने 'सत्य हिंदी' से बात करते हुए कहा कि इस मामले में जो भी कार्रवाई करनी होगी वह दिल्ली सरकार करेगी, उप-राज्यपाल की इसमें कोई भूमिका नहीं होती है। उन्होंने इस बारे में दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से बात करने की सलाह दी। बता दें कि दिल्ली में धार्मिक स्थलों के मामले में आख़िरी फ़ैसला उप-राज्यपाल की तरफ़ से गठित की गई धार्मिक कमेटी लेती है। इस समिति के चेयरमैन ख़ुद उप-राज्यपाल होते हैं।
समिति की तरफ़ से निर्देश होने पर ही अवैध रूप से बनाए गए धार्मिक स्थलों पर कार्रवाई की जाती है। ऐसे में प्रवेश वर्मा की चिट्ठी में जनहित की चिंता कम है और यह चिट्ठी राजनीति से प्रेरित ज़्यादा लगती है। लिहाज़ा उप-राज्यपाल भवन गेंंद दिल्ली सरकार के पाले में फेंक रहा है।
चिट्ठी राजनीति से प्रेरित: हारुन यूसुफ़
दिल्ली कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हारुन यूसुफ़ प्रवेश वर्मा की चिट्ठी को पूरी तरह राजनीति से प्रेरित मानते हैं। 'सत्य हिंदी' से फ़ोन पर बातचीत में उन्होंने कहा कि जब-जब चुनाव नज़दीक आते हैं, बीजेपी जनता से जुड़े मुद्दे छोड़कर हिंदू-मुसलमान, शमशान-कब्रिस्तान और मंदिर-मसजिद जैसे मुद्दों को तूल देती है। उन्होंने कहा कि बीजेपी जानबूझकर दिल्ली में बिजली-पानी की कमी के साथ-साथ बेरोज़गारी के मुद्दों को धार्मिक भावनाओं की आड़ में पीछे धकेल देना चाहती है और मंदिर-मसजिद के मुद्दे उठाकर चुनाव से पहले दिल्ली में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की साज़िश कर रही है। उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि प्रवेश वर्मा की यह चिट्ठी बीजेपी के इसी एजेंडे के तहत है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रवेश वर्मा सांसद हैं और उन्हें मालूम होना चाहिए कि दिल्ली में अवैध रूप से बनाए जाने वाले धार्मिक स्थलों को लेकर राज्यपाल की अध्यक्षता में पहले से ही एक समिति है। यह समिति ऐसे मामलों पर ख़ुद नज़र रखती है। इसके बावजूद अगर उन्होंने उप-राज्यपाल को चिट्ठी लिखी है तो वह इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं।
वर्मा के आरोप बेबुनियाद: इमाम
दिल्ली की फतेहपुरी मसजिद के इमाम मुफ़्ती मुहम्मद मुकर्रम ने प्रवेश वर्मा के आरोपों पर हैरानी जताई है। उन्होंने तमाम आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि दिल्ली में मुसलिम आबादी वाले इलाक़ों में मुसलमान अपने पैसों से ज़मीन ख़रीदकर बाकायदा प्रशासन से इजाज़त लेकर मसजिदें बनाते हैं। कई बार प्रशासन इजाज़त देने में आनाकानी करता है। उन्होंने कहा कि मदन लाल खुराना और साहिब सिंह वर्मा के दिल्ली के मुख्यमंत्री रहते कभी भी मंदिर-मसजिद के मुद्दे नहीं उठे, अगर प्रवेश वर्मा इस तरह के मुद्दे उठा रहे हैं तो ज़रूर उन्हें किसी ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ बरगलाया है या उन्हें कोई ग़लतफ़हमी हुई है।
'ज़बरदस्ती मसजिद बनाने की इजाज़त नहीं'
मुफ़्ती मुकर्रम कहते हैं कि इसलाम ज़ोर ज़बरदस्ती से किसी दूसरे की ज़मीन पर या सरकारी ज़मीन कब्ज़ा कर मसजिद बनाने की इजाज़त नहीं देता। उन्होंने कहा कि अगर मुसलमानों ने कहीं सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा करके मसजिद बनाई है तो उस मसजिद को गिरा देना चाहिए। ऐसा पहले भी दिल्ली में कई बार हुआ है। यमुना की तलहटी में ग़ैर-क़ानूनी रूप से लोग बसे हुए थे। वहाँ कई मसजिदें भी बनी हुई थीं। जब सरकार ने वहाँ से आबादी को हटाने का फ़ैसला किया तो मसजिद भी हटा दी गई। इसी तरह राजघाट के पीछे फ्लाईओवर निर्माण के दौरान भी वहाँ अवैध रूप से बनी कई मसजिदों को हटाया गया था। इस पर मुसलमानों ने कोई एतराज़ नहीं किया।
इमाम मुफ़्ती मुकर्रम का कहना है कि दिल्ली में अवैध धार्मिक स्थलों के बारे में बाकायदा क़ानून है और एक समिति है। इस समिति को सभी मज़हब को ग़ैर-क़ानूनी धर्म स्थलों के बारे में एक जैसा रवैया अपनाते हुए कार्रवाई करनी चाहिए ताकि किसी समुदाय को ऐसा न लगे कि उसके साथ नाइंसाफ़ी हो रही है।
धार्मिक स्थलों का अवैध निर्माण बड़ी समस्या
दरअसल, दिल्ली में धार्मिक स्थलों का अवैध निर्माण एक बड़ी समस्या है। इनकी वजह से कई जगह पर यातायात प्रभावित होता है और आम लोगों को परेशानी भी होती है। इसे लेकर कई बार कई लोगों और सामाजिक संस्थाओं ने सवाल भी उठाए हैं। मामला अदालत तक भी गया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने अवैध धार्मिक स्थलों को हटाने के निर्देश भी दिए हैं। लेकिन लोगों की धार्मिक भावनाओं को देखते हुए दिल्ली सरकार और उप-राज्यपाल इस मामले में कड़ी कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं दिखा पाते। धार्मिक स्थलों पर कार्रवाई के लिए काफ़ी लंबी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है। जन भावनाओं के जुड़े होने के कारण सरकार में बैठे लोग और अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं।
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