अरविंद केजरीवाल सरकार की आबकारी नीति पर बार-बार सवाल उठे। जब उन्होंने आबकारी नीति बदली तब भी और जब गड़बड़ियों के आरोप लगे तब भी। नयी आबकारी नीति पर खूब विवाद हुआ और फिर मामला धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में भी चला गया। लेकिन तब इस नयी आबकारी नीति से बड़ा विवाद हो गया जब दिल्ली के एलजी विनय कुमार सक्सेना ने इसमें गड़बड़ियों का आरोप लगाते हुए सीबीआई जाँच की सिफ़ारिश कर दी। तो सवाल है कि आख़िर नयी आबकारी नीति में ऐसा क्या बदला कि इसने इतना तूल पकड़ लिया?
एलजी ने क्या आरोप लगाए हैं, यह जानने से पहले यह समझ लें कि आख़िर नयी आबकारी नीति क्या थी और इसके आने से क्या-क्या बदला था। नई आबकारी नीति 2021-22 को पिछले साल 17 नवंबर से लागू किया गया था।
केजरीवाल सरकार के अनुसार नई नीति का मक़सद शराब की दुकानों को पॉश और स्टाइलिश शराब की दुकानों में बदलना रहा था। कहा जाता रहा कि नई नीति शहर के राजस्व को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई। सरकार का दावा था कि इससे शराब माफियाओं पर भी लगाम लगी।
शहर में शराब का कारोबार पूरी तरह से निजी कंपनियों को सौंप दिया गया जिसमें वे नई नीति के लागू होने के बाद कम से कम 500 वर्ग मीटर के 32 क्षेत्रों में 849 ठेके खोल सकते थे। दिल्ली सरकार ने अब प्रत्येक शराब ब्रांड और उसके सामान का अधिकतम खुदरा मूल्य निर्धारित किया। खुदरा विक्रेता उस एमआरपी के भीतर कुछ भी वसूलने के लिए स्वतंत्र थे, लेकिन उससे ज़्यादा नहीं। पुरानी आबकारी नीति के कारण पहले ऐसी प्रतिस्पर्धी दरों का प्रयोग नहीं किया जा सकता था।
नई नीति के तहत शराब पीने वाले सुबह 3 बजे तक होटल, क्लब और रेस्तरां, बार में इसका आनंद ले सकते थे। इससे पहले तक, खुले में शराब परोसने पर रोक थी। नई शराब की दुकानों में वॉक-इन शराब खरीदने की सुविधा थी और खरीदार अपनी पसंद का ब्रांड चुन सकते थे।
एक रिटेल लाइसेंसधारी के पास प्रति जोन 27 शराब की दुकानें हो सकती थीं। एल-17 लाइसेंसधारियों में स्वतंत्र रेस्तरां या गैस्ट्रो-बार शामिल थे जो बालकनी, छत, रेस्तरां के निचले हिस्से में भारतीय या विदेशी शराब परोस सकते थे।
उसी नई आबकारी नीति के अनुसार कई शराब ब्रांडों की दरें सस्ती हो गईं। जब नयी नीति लागू हुई तो रिपोर्टों में कहा गया कि कई शराब विक्रेता एमआरपी पर 40 प्रतिशत छूट देकर शराब बेच रहे थे। कुछ वेंडर 1 बोतल पर एक फ्री का ऑफर भी दे रहे थे। इसका नतीजा यह हुआ था कि मार्च महीने में दिल्ली में शराब के लिए लंबी कतारें देखी गई थीं।
नयी शराब नीति के कुछ अहम बिंदु
- सड़कों और फुटपाथों पर लोगों की भीड़ के साथ ग्रिल वाली दुकानों के माध्यम से विक्रेता या दुकानें शराब नहीं बेच सकती हैं।
- दुकान को लेकर आसपास के लोगों की कोई बड़ी शिकायत नहीं आनी चाहिए। दुकान के चलते आसपास रहने वालों को कोई समस्या न हो।
- यह देखना होगा कि कम उम्र के व्यक्ति को शराब न बेची जाए और खरीदारों का आईडी चेक किया जाए।
- शराब की दुकान के बाहर स्नैक्स या खाने-पीने की दुकान नहीं खुल सकेगी ताकि खुले में शराब पीना कम हो।
- दिल्ली में शराब की दुकानें इस तरह हों कि कोई इलाका छूट न जाए और कहीं ज्यादा दुकानें न हो जाएं। एक वार्ड में शराब की अधिकतम 27 दुकानें होंगी।
- किसी भी शराब की दुकान के लिए कम से कम 500 वर्ग फीट की दुकान होना जरूरी होगा। दुकान का कोई भी काउंटर सड़क की तरफ नहीं खुलेगा।
केजरीवाल सरकार की इस नीति की आलोचना की जाती रही। विरोधी तर्क देते थे कि बाजार में केवल 16 खिलाड़ियों को इजाजत दी जा सकती है और यह एकाधिकार को बढ़ावा देगी। एक आरोप यह भी है कि दिल्ली में शराब के कई छोटे वेंडरों को दुकानें बंद करनी पड़ी हैं। विपक्षी दलों का आरोप था कि नई आबकारी नीति के जरिए केजरीवाल सरकार ने भ्रष्टाचार किया।
इसी कथित भ्रष्टाचार को लेकर अब एलजी ने सीबीआई जाँच की सिफारिश की है। एलजी सक्सेना ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर एलजी की मंजूरी के बिना लाइसेंसधारियों को लाभ देने का आरोप लगाया। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि आप सरकार ने पंजाब चुनाव के लिए लाइसेंस देने के पैसे का इस्तेमाल किया।
एलजी के कार्यालय से एक मीडिया विज्ञप्ति में कहा गया है कि मुख्य सचिव द्वारा 8 जुलाई को दी गई एक रिपोर्ट से क़ानून के कई उल्लंघनों का पता चलता है।
इसमें यह भी आरोप लगाया गया कि शराब लाइसेंसधारियों को टेंडर के बाद अनुचित लाभ देने के लिए जानबूझकर और प्रक्रियात्मक खामियाँ की गई हैं।
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पिछले महीने अरविंद केजरीवाल ने उन आरोपों को खारिज किया था और फर्जी मामला क़रार दिया। मुख्यमंत्री ने कहा था, 'सीबीआई जल्द ही एक फ़र्ज़ी केस में मनीष सिसोदिया को गिरफ़्तार करने वाली है। मनीष एक कट्टर ईमानदार आदमी हैं, जिन पर झूठे आरोप लगाये जा रहे हैं। अब देश में नया सिस्टम लागू हो गया है। पहले तय किया जाता है किसे जेल भेजना है, फ़िर उसके ख़िलाफ़ फ़र्ज़ी केस बनाया जाता है।'
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